वाकई 56 इंची होता तो काफिले की तलाशी पर इनाम देते सजा नहीं !

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पीएम के काफिले की तलाशी में बुराई क्या थी जो  आयोग ने निलंबित कर दिया?

ओडिशा के चुनावी दौरे पर गए हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले की तलाशी लेने की कोशिश करने वाले, कर्नाटक के एक आईएएस अधिकारी को चुनाव आयोग ने निलंबित कर दिया है। वे चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में तैनात थे, और आयोग की तरफ से जांच के बाद बताया गया है कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त लोगों की तलाशी न लेने के निर्देशों को न मानने की वजह से इस अफसर को निलंबित किया गया है। चुनाव नियमों के तहत प्रधानमंत्री को न सिर्फ विशेष सुरक्षा जारी रहती है, बल्कि वे वायुसेना के विमानों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। ऐसी हालत में उनका एक अलग दर्जा रहता है, और उनके काफिले की तलाशी को आयोग ने गलत माना है।

अभी दो-चार दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक हवाई दौरे का एक वीडियो सामने आया था जिसमें उनके हेलीकॉप्टर से निकालकर एक बड़ा सा काला बक्सा लेकर कई सुरक्षा कर्मचारी दौड़ते हुए एक इंतजार करती निजी कार तक पहुंचे थे, और वीडियो में ही यह भी दिखता है कि वह कार बक्सा लेकर वहां से रवाना हो गई थी। बाद में दूसरी पार्टियों ने चुनाव आयोग को शिकायत करके इसकी जांच की मांग की थी कि उस बक्से में क्या था? और यह सवाल इस हिसाब से जायज लगता है कि जिस भारत में आतंकी हमलों में अपने दो-दो प्रधानमंत्रियों को खोया है, उनके हेलीकॉप्टर में इतना बड़ा कोई सामान क्यों ढोया जा रहा है? चुनाव के वक्त जब कालाधन नगद शक्ल में लेकर आवाजाही होती है, और छत्तीसगढ़ में तो सरकारी एम्बुलेंस में भी पिछले विधानसभा चुनाव में एक कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ नगद रकम ढोने के आरोप सामने आए थे, आज जब देश भर में जगह-जगह करोड़ों रूपए की नगद पकड़ा रही है, तब प्रधानमंत्री को मिली विशेष हिफाजत के बीच एक ऐसी पारदर्शिता रखने की जरूरत भी है कि उनके सामानों में इतना बड़ा बक्सा क्यों चल रहा है? प्रधानमंत्री के साथ जो लोग चलते हैं, उनका आना-जाना जो लोग देखते हैं, उन्हें कभी भी ऐसा कोई सामान देखने नहीं मिलता।

अब सवाल यह है कि चुनाव आयोग का पर्यवेक्षक ऐसी शिकायतों के बाद अगर काफिले की तलाशी लेना चाहता है, तो वह अफसर देश का एक वरिष्ठ आईएएस अफसर भी है, और वह सुरक्षा कर्मचारियों की मदद से ही तलाशी लेता। प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के प्रचारक भी हैं, और चुनावी उम्मीदवार भी रहेंगे। ऐसे में उन्हें हिफाजत देना ठीक है, लेकिन जांच से रियायत देना न्यायसंगत नहीं लगता, और न ही उसकी कोई जरूरत होनी चाहिए। दुनिया के राजपाट के पुराने सिद्धांतों में यह कहा जाता है कि राजा को संदेह से ऊपर जीना चाहिए। अब जब यह संदेह सामने आ चुका है कि इतना बड़ा संदिग्ध बक्सा इस तरह प्रधानमंत्री के काफिले में क्यों हवाई सफर कर रहा था, और उसे इस तरह दौड़कर ले जाकर किसी गाड़ी में क्यों रखा गया, सुरक्षा कर्मचारियों का कुलियों की तरह इस्तेमाल क्यों किया गया? तो ऐसे में सबसे पहले तो पीएम की तरफ से स्पष्टीकरण आना चाहिए था, और उसके बाद उन्हें खुद होकर पारदर्शिता बरतना था कि उनके काफिले की भी जांच हो।

अभी तक जितने किस्म की छूट चुनाव आयोग की तरफ से नेताओं और पार्टियों को मिली हुई है, वह जरूरत से अधिक है, और यह दो दिन पहले तब साबित हुआ जब सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद आयोग की नींद खुली, और उसने बकवासी नेताओं पर कार्रवाई की। चुनाव आयोग को शिकायतों और संदिग्ध गतिविधियों को इस तरह अनदेखा नहीं करना चाहिए। आयोग में जिन लोगों को बिठाया गया है उनके पास भारत की संवैधानिक व्यवस्था में आगे पाने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए उनको ईमानदारी के साथ काम करना चाहिए, अपनी साख बचानी चाहिए। एक वक्त था जब चुनाव आयोग से सत्ता भी घबराती थी, और विपक्ष भी घबराता था। अब चुनाव आयोग का रंग-ढंग एक सरकारी विभाग की तरह होकर रह गया है जो कि सत्तारूढ़ नेताओं के मातहत काम कर रहा है।

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