क्योंकि मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव की हार और महाराष्ट्र और गुजरात मेंभाजपा के कमजोर होती स्थिति में मोदी के मध्यप्रदेश से लड़ने पर पार्टी जीत सकती है सौ से जयादा सीटें।
अभी – राजनीतिक विश्लेषक ये मान रहे हैं कि बीजेपी को पिछली बार से सौ सीटों को नुकसान हो सकता है, उत्तरप्रदेश में पुरानी जीत दोहराना नामुकिन है,ऐसे में जहां मोदी करिश्मा बरक़रार है, वहां से उन्हें लड़ना चाहिए।
इंदौर। मंगलवार को भाजपा की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंदौर से लड़ने का प्रस्ताव आया। ये नाम खुद सांसद सुमित्रा महाजन ने रखा। इसपर सभीबड़े नेताओं ने सहमति भी जताई। बाद में ये कहकर मामले से किनारा किया गया कि ये सिर्फ मज़ाक है। भाजपा को बहुत करीब से जानने वालों का मानना हैकि ये एक तय पटकथा का ही हिस्सा है। तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थानऔरछत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों की हार के बाद से ही इस पर मंथन चल रहा है। गुजरात विधानसभा में बेहद कम अंतर से बहुमत और महराष्ट्र में फडणवीस सरकार के कमजोर प्रदर्शन भी इसके साथ जुड़ रहा है। इन पांचों राज्यों मेंकुल 140 सीटें हैं। पिछली बार भाजपा ने यहां से 130 पर जीत हासिल की थी।तीन न राज्यों की हार और उत्तरप्रदेश में मायावती और अखिलेश के गठबंधन ने बीजेपी की वहां भी उम्मीदें आधी कर दी हैं। पिछली बार भी मोदी वाराणसी के अलावा गुजरात की वड़ोदरा सीट से लड़े थे। इस बार उन्हें प्रदेश से लड़वानेकी योजना के चलते ही वे गुजरात से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। प्रदेश में इंदौर के अलावा दूसरा विकल्प विदिशा है। पर मोदी जिस तरह से स्मार्ट सिटी और दूसरे विकासवादी प्रोजेक्ट के जरिये जगह बनाना चाहते हैं,इंदौर पहली पसंद हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाहहमेशां चौंकाने वाले फैसले करते है। शाह की गांधीनगर की दावेदारी की तरह ही मोदी का नाम प्रदेश की सूची से घोषित हो सकता है।
जानकारों के अनुसार मध्यप्रदेश से मोदी के चुनाव लड़ने से पार्टी को करीब सौ से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद दिख रही है। मोदी इंदौर के अलावा विदिशा सीट से भी चुनाव लड़ सकते है। संभवतः इसी कारण ये दोनों सीटें अभी तक अटकी हुई है। इन दोनों में से किसी एक पर उनके लड़ने से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान के साथ-साथ गुजरात और महाराष्ट्र में भी इसका बड़ा असर होगा। ये पूरी पट्टी अभी भी मोदी पर भरोसा रखती है। पार्टी के सर्वे में भी ये बात सामने आई है कि पांचों राज्यों में स्थानीय नेतृत्व से लोग नाराज है। मोदी की लहर में कमी जरुर आई है, पर वो अभी भी यहां करिश्माई नेता के तौर पर देखे जाते हैं। दूसरा बड़ा कारण ये है कि महाराष्ट्र को छोड़ दें तो बाकि चार राज्यों में मुकाबला सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के बीच है। जातिवादी राजनीति भी यहां बहुत प्रभाव नहीं रखती। ऐसे में सबसे बड़ा चेहरा मोदी ही रहेंगे, राज्यों में मोदी की टक्कर का कोई नेता नहीं है। पिछली बार कुछ इसी तरह की रणनीति के चलते मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ा था। वहां से उन्होंने उत्तरप्रदेश और बिहार में बड़ी जीत हासिल की थी। उत्तरप्रदेश में अब बड़ी जीत की उम्मीद कम है, जबकि बिहार में नीतीश कुमार से गठबंधन के बाद वहां की सीटों को लेकर भाजपा थोड़ी राहत में है।