इंदौर में शुरू हुआ मदरसों की पुस्तकों की जांच का काम

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हाल ही में राज्य बाल संरक्षण आयोग ने कुछ मदरसों का औचक निरीक्षण किया था और पाया था कि वहां पढ़ाई जा रही कुछ सामग्रियां आपत्तिजनक हैं।

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भोपाल। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बयान के बाद मदरसों की जांच को लेकर प्रदेश में सबसे पहले इंदौर में जिला शिक्षा विभाग का अमला हरकत में आया है। अधिकारियों का कहना है कि संकुल प्रभारी और मदरसे प्रभारी पढ़ाए जाने वाले सामग्री को लेकर जांच कर रहे हैं। नियमित रूप से भी मदरसों की जांच की जाती है। फिलहाल विवादास्पद विषय अभी देखने में नहीं आया है।

मालूम हो कि गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने रविवार को दिए बयान में कहा कि ‘प्रदेश के कुछ मदरसों में आपत्तिजनक पढ़ाने से संबंधित विषय संज्ञान में आया है। इस तरह की किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए मदरसों की पठनीय सामग्री को लेकर कलेक्टर महोदय को कहेंगे कि संबंधित शिक्षा विभाग से वह इसकीजांच करवा लें और उसकी व्यवस्था सुनिश्चित करें कि पठनीय सामग्री भी व्यवस्थित रहे। इसके लिए विचार किया जा रहा है। इससे यह भी पता चल सकेगा कि मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में और कितने सुधार की जरूरत है।

जिला शिक्षा अधिकारी मंगलेश व्यास ने बताया कि जिले में फिलहाल 63 मदरसे संचालित हो रहे हैं। 9 मदरसे कोविड के बाद बंद हुए है। इसकी सूचना जिला शिक्षा कार्यालय में आई है। हाई स्कूल वाले दोनों मदरसे बंद हो गए हैं। जो मदरसे संचालित हो रहे है वे प्राथमिक और माध्यमिक वाले हैं। शहरी क्षेत्र में जूना रिसाला, खजराना, चंदन नगर, विजय नगर क्षेत्र में मदरसे संचालित हो रहे हैं।

व्यास ने बताया कि ‘मदरसे की जांच रेग्यूलर रूप से बीआरसी व अन्य अधिकारी करते हैं। मैंने भी 5-7 मदरसों की जांच की है। विवादास्पदविषय अभी देखने में नहीं आया है। संकुल प्रभारी और मदरसे प्रभारी भी देख रहे हैं।’ वहीं लोकशिक्षण संचालनालय द्वारा भी निरीक्षण के आदेश हर हाल निकलते हैं। प्राचार्यों के जरिए मदरसों के निरीक्षण होते हैं।

पहले मुस्लिम तबके में बच्चों को उर्दू-अरबी पढ़ाते थे। स्कूली शिक्षा पढ़ाने पर जोर नहीं दिया जाता था। मदरसों में अब स्कूली शिक्षा के तहत हिन्दी, गणित, पर्यावरण आदि जो स्कूली शिक्षा है वो दी जाती है। अतिरिक्त सब्जेक्ट अलग से रहते है जो उर्दू और अरबी है। उर्दू में कहानी, दुआएं, शब्द आदि बच्चों को सिखाए जाते हैं। मेनस्ट्रीमिंग से जो बच्चे दूर है। बच्चों को स्कूली शिक्षा भी मिले इसलिए मदरसे संचालित किए जाते है। ताकि स्कूली शिक्षा भी मदरसे में दी जाए। इसलिए सरकार की तरफ से भी मदरसों को अनुदान दिया जाता है।

ज्यादातर मदरसों में बच्चों की संख्या 50 से 100 के बीच

जिले में बड़े मदरसे करीब एक दर्जन हैं, जिनमें बच्चों की संख्या 300 या अधिक है। ये मदरसे मदरसे माध्यमिक स्तर तक के हैं। अधिकांश मदरसों में 50 से 100 के बीच ही बच्चे हैं। कई मुस्लिम परिवार अब बच्चों को मदरसे भेजने की बजाए बड़े निजी स्कूलों में भी भेज रहे हैं।

दरअसल, मदरसे में फीस को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। नॉमिनल फीस ली जा सकती है। अधिक फीस मदरसों में नहीं ली जा सकती है। सरकार की तरफ से भी मदरसों को मदद मिलती है। तीन साल के बाद सरकार मदरसे को अनुदान के लिए चयनित करती है। इसके लिए राज्य शासन के जरिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जाता है। केंद्र से ही अनुदान मदरसे के लिए आता है।दरअसल, हाल ही में राज्य बाल संरक्षण आयोग ने कुछ मदरसों का औचक निरीक्षण किया था और पाया था कि वहां पढ़ाई जा रही कुछ सामग्रियां आपत्तिजनक हैं।

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