क्या ये “पारस ” पैंतरे कांग्रेस को जिता सकेंगे !

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भोपाल। बीते एक हफ्ते से मध्यप्रदेश में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए अच्छी खबरें नहीं आ रही है जबकि इससे ठीक उलट कांग्रेस के लिए लगातार अच्छी खबरों के जरिए शुभ संकेत नजर आ रहे हैं। हालाँकि कांग्रेस जमीनी रूप से संगठन को मजबूत करने का कोई काम नहीं कर पाई है. कांग्रेस वही पुराने पैंतरे आजमा रही है, बीजेपी से नाराज नेताओं को शामिल करवाने का. पर क्या संगठन को जिन्दा किये बिने ये पैंतरे कुछ कमाल कर पायेंगे ?

28 फरवरी को उपचुनावों में कोलारस और मुंगावली दोनों सीटों कांग्रेस की जीत के बाद सोमवार को रीवा से बीजेपी के पूर्व विधायक और रीवा जिला पंचायत के अध्यक्ष अभय मिश्रा ने बीजेपी से नाता तोडकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। मिश्रा की पत्नी नीलम सेमरिया से बीजेपी की विधायक है। मिश्रा सत्ता के केन्द्रीकरण से नाराज थे। मंगलवार को दिल्ली में एआईसीसी (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) के दफ्तर से कांग्रेस के लिए फिर एक खुशखबरी आई। मुख्यमंत्री शिवराज को व्यापम और ड्रग ट्रायल मामले में चौतरफा घेरने वाले व्हिसिल ब्लोअर, रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने भी मंगलवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया।

बीजेपी के लिए हाल ही में ये तीन खबरें तो बुरी साबित हुई ही है इसके अलावा बगावत जैसी खबरें भी बीजेपी के लिए मुश्किल खडी करने वाली है। शिवराज की सरकार में ही मंत्री रहे बीजेपी के एक बडे नेता सरताज सिंह ने भ्रष्ट शिवराज सरकार का चिट्ठा जगजाहीर कर दिया। उन्होनें सरकार के सिस्टम पर बडा सवाल खडा करते हुए आरोप लगाया कि उनके इलाज के पैसों के बदले अफसरों ने उनसे खुलेआम कमिशन की मांग की। सरताज सिंह ने कहा कि बीजेपी में ठीक नहीं चल रहा है, ऐसे माहौल में दम घुटने लगा है।

मंगलवार को रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा के कांग्रेस में शामिल होने से बीजेपी की सांसे फूल रही है। पारस सकलेचा को ‘पारस दादा’ के नाम से पुकारा जाता है। पारस दादा बेहद तेज तर्रार, कानून की समझ रखने वाला, पढा-लिखा और लोगो के बीच बेहद लोकप्रिय एक ऐसा नेता है जो लोगों का लाडला है। यह नेता जमीन से जुडा हुआ आम लोगों के बीच रहने वाला नेतागिरी का ऐसा अपवाद है जिसकी खूबियों के बारे में आप भी सुनेगें तो यही कहेगें की राजनीति में क्या अब भी ऐसे लोग बचे हैं। पारस दादा बीते कई सालों से ‘युवाम’नाम की शैक्षणिक संस्था चलाते हैं। हर दिन सुबह-शाम दो-दो घंटे पारस दादा खुद यहां उन बच्चों को पढाते हैं जो किसी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने जा रहे होते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे ऐसे होते हैं जिनके पास पैसा नहीं है। पारस दादा यह काम पूरी तरह से नि:शुल्क करते हैं। अभी तक ‘युवाम’ के जरिए करीब 50 हजार लोग प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होकर नौकरी पा चुके हैं। पारस दादा बेहद, मिलनसार और सामाजिक व्यक्ति हैं। घरों के बाहर ओटलों पर बैठकर लोगों के सुख-दुख बांटना उनके जीवन का हिस्सा है।
इन्हीं सबके कारण पारस दादा को लोगों ने एक बार रतलाम का महापौर और एक बार विधायक के रुप मे चुना। दोनों ही बार वे निर्दलिय चुनाव लडे और मध्यप्रदेश की दोनों ही बडी राजनैतिक पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस को पटखनी दी। पारस दादा मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले के व्हिसिल ब्लोअर हैं। इससे पहले उन्होनें प्रदेश में चल रहे ड्रग ट्रायल के मामले को भी जमकर उछाला और कई डॉक्टरों पर एक्शन करवाया। पीडित लोगों के लिए कानूनी लडाई के लिए दादा अपना पैसा खर्च कर साथ निभाते हैं। बीते चुनाव में संसदीय चुनाव में पारस दादा आम आदमी पार्टी से मंदसौर-नीमच सीट से चुनाव लडे थे लेकिन मोदी लहर की वजह से चुनाव हार गए थे। माना जा रहा है कि पारस दादा के कांग्रेस में आने की खबर ने रतलाम सहीत आसपास की सीटों पर बीजेपी की मुश्किलें बढा दी है।
रतलाम शहर में पारस दादा के अकेले 15 से 20 हजार अपने वोट हैं। जिन परिवार के गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढा कर नौकरी दिलवाई उनका पूरा परिवार दादा को अन्नदाता मानता है। दूसरी तरफ रतलाम शहर में बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक भी अच्छा खासा है। मौजूदा वक्त में इस सीट पर बीजेपी से चेतन कश्यप विधायक है। मौजूदा विधायक कश्यप से स्थानीय लोग खफा है। इसकी बडी वजह कश्यप की लोगों से लागातार बढ रही दूरी है। कश्यप बडे आसामी है। वे लोगों के लिए आसानी से सुलभ नहीं होते हैं इसलिए उनकी छबि बीते सालों में जननेता के तौर पर कतई नहीं बदल पाई। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी भी रतलाम शहर की सीट से कई बार चुनाव जीत चुके हैं। हिम्मत कोठारी फिलहाल वित्त निगम के अध्यक्ष हैं। 75 साल के फार्मुले की वजह से उन्हे पिछली बार विधानसभा का टिकट नहीं मिला था लेकिन अब इस फार्मुले के साईड लाईन होने से उनके करीबियों में एक बार फिर उम्मीद जाग गई है। 2008 के विधानसभा चुनाव में तत्कालिन विधायक हिम्मत कोठारी से बडी संख्या में नाराज लोगों ने पारस सकलेचा को वोट दिया था। लोगों की नाराजगी से सकलेचा को अच्छा बहूमत मिला था।
बताया जा रहा है कि जिले में पांच विधानसभाओं में से ज्यादातर पर बीजेपी की स्थिती अच्छी नहीं है। रतलाम सिटी की इस सीट पर कांग्रेस के कमजोर होने से यहां बीजेपी को उम्मीद थी लेकिन पारस दादा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह सीट मजबूत होती दिखाई दे रही है हालांकि रतलाम के कुछ पुराने कांग्रेसी नेता पारस दादा के आने से नाखुश हैं। पारस दादा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बीजेपी को अपने उम्मीद्वार पर अब नए सिरे से मंथन करना होगा क्योंकि माना जा रहा है कि सकलेचा रतलाम शहर की सीट से कांग्रेस के उम्मीद्वार होगें।
मंदसौर से सटे हुए रतलाम जिले में भी किसान बीजेपी की शिवराज सरकार से नाखुश है। मंदसौर में हुए गोलीकांड में 6 किसानों की मौत की आंच यहां भी है। किसानों और व्यापारियों में बीजेपी के प्रति गुस्सा कांग्रेस को फायदा पंहुचा सकता है। बताया जा रहा है कि पारस दादा का पूरे जिले में अच्छा नेटवर्क है। कांग्रेस के लिए पारस दादा पारस का पत्थर साबित हो सकते हैं। गौरतलब है कि पारस दादा जब विधायक थे तब जनहीत के कई मुद्दे विधानसभा के जरिए उठाते रहे हैं और सरकार को बुरी तरह घेरते रहे हैं। बताया जाता है कि खुद शिवराज सिंह चौहान भी पारस दादा के तर्कों का लोहा मानते हैं। खबर यह भी है कि पारस दादा बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के कई विधायकों के लिए आज भी विधानसभा सवाल तैयार करते उन्हें मजबूत करते हैं। पारस दादा ने कई आरटीआई एक्टिविस्ट और व्हिसिल ब्लोअर का ‘विचार मध्यप्रदेश’ के नाम से एक संगठन भी बनाया है जिससे अक्सर सरकार की घेराबंदी की जाती है। बीते कई महीनों से पारस सकलेचा के कांग्रेस में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे।
पारस सकलेचा बीते कुछ हफ्तों से रतलाम में ‘चाय की चौपाल’ लगा रहे हैं। चौपाल में चाय के साथ लोगों से उनकी समस्याओँ के बारे में लंबी बातचीत और निराकरण के रास्तों पर बात की जाती है जबकि बीजेपी के नेता अभी चुनावी मुड से बेहद दूर नजर आ रहे हैं। रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट से कांग्रेसी सांसद कांतिलाल भूरिया भी सकलेचा के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खडे हैं। यह संसदीय सीट आदिवासी के लिए आरक्षित होने से भूरिया को पारस सकलेचा से कोई खतरा नहीं है बल्कि रतलाम सिटी की सीट पर भूरिया कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं ताकि उनकी सीट को और भी मजबूती मिल सके।

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