कांग्रेस आत्ममंथन -4 -वेंटिलेटर की तरफ जाती कांग्रेस अभी भी लीडरशिप पुख्ता करने का सोचे, वरना जीवाश्म को ही ढोते रह जायेंगे

Share Politics Wala News

 

सुनील कुमार (संपादक, डेली छत्तीसगढ़ 

कुछ हफ्ते पहले जब करीब दो दर्जन बड़े कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस पार्टी के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। पार्टी के अनमने मुखिया राहुल गांधी की लीडरशिप का नाम लिए बिना यह बुनियादी सवाल उठाया था कि पार्टी इस तरह कैसे चल सकती है ? उसके तुरंत बाद कांग्रेस संगठन की सबसे बड़ी कमेटी, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक थी, और उसमें कुछ नहीं किया गया।

इतना जरूर हुआ कि सवालिया नेताओं को बागी मानते हुए उनमें से कुछ के पर कतरे गए। लेकिन लोग चुप रहे क्योंकि पार्टी में सुधार की बात करने को बगावत मान लिया गया, और भाजपा के हाथ मजबूत करना करार दिया गया। लेकिन आग दबी भर थी, बुझी तो नहीं थी।

इसलिए अभी कपिल सिब्बल ने फिर से यह सवाल उठाया है कि देश की सबसे पुरानी और इतनी बड़ी पार्टी डेढ़ बरस से बिना अध्यक्ष किस तरह रह सकती है? एक सवाल गुलाम नबी आजाद ने भी उठाया है कि फाईव स्टार होटलों से बैठकर चुनाव नहीं लड़े जा सकते।

कुल मिलाकर कांग्रेस में आज पार्टी के तौर-तरीकों को लेकर तीखे सवाल उठ खड़े हो रहे हैं, और जो लोग इन 23 लोगों की चिट्ठी में दस्तखत करने वाले नहीं थे, उनके मन में भी सवाल उठ रहे हैं। ये सवाल हर उस कांग्रेसी के मन में उठ रहे हैं जिसे कांग्रेस की फिक्र है, और कांग्रेस की हालत आज बहुत बड़ी फिक्र के लायक ही रह गई है।

इस पार्टी से देश में सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ एक गठबंधन बनाने की उम्मीद की जाती है क्योंकि एनडीए के अलावा पूरे देश में मौजूदगी वाली यही एक पार्टी है। जिस यूपीए गठबंधन के तहत पिछला आम चुनाव लड़ा गया था, उसमें सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसकी मौजूदगी पूरे देश में है।

एनडीए और यूपीए से परे भी कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए के सामने खड़ी हो सके, और कुछ राज्यों में जिसका अस्तित्व हो। अधिकतर पार्टियां एक या दो राज्यों में मौजूदगी वाली हैं और उन राज्यों से परे किसी और का भरोसा बैठना नहीं है।

दूसरी तरफ एक और बात को समझने की जरूरत है कि यह चर्चा हिन्दुस्तान के इस ऐसे दौर में हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा के मातहत एनडीए चुनाव जीतने वाली एक ऐसी मशीन बन चुकी है जो या तो मतदान केन्द्र में जीत जाती है, या फिर राजभवन और विधानसभा में।

देश में यह तस्वीर अभूतपूर्व है, हिन्दुस्तान के चुनावी इतिहास के 10 बरस पहले तक के दौर में किसी ने ऐसे चुनावी माहौल की कल्पना भी नहीं की थी, जब एक-एक करके तमाम पार्टियां किनारे कर दी जाएंगी, और देश में सिर्फ कमल ही खिलने का माहौल रह जाएगा।

आज एनडीए की दूसरी पार्टियां भी देश में जगह-जगह भाजपा की पीठ पर सवार होकर सत्ता तक पहुंच रही हैं, और पूरे देश की चुनावी राजनीति न सिर्फ भाजपा-केन्द्रित हो गई है, बल्कि मोदी-केन्द्रित हो गई है।

ऐसे दौर में यूपीए नाम के गठबंधन की मुखिया कांग्रेस पार्टी की लीडरशिप चुनावी मैदान से और देश की राजनीति से गायब सरीखी हो गई है, रोजाना एक या दो ट्वीट तक सीमित हो गई है, तो यह न सिर्फ गैरएनडीए विपक्ष के लिए खतरे की बात है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी खतरे की बात है। किसी भी मजबूत लोकतंत्र में सत्ता जितनी जरूरी होती है उतनी ही जरूरी मजबूत विपक्षी पार्टियां भी होती हैं।

अब मुद्दे की बात पर आएं तो कांग्रेस पार्टी को जिस एडहॉक तरीके से हांका जा रहा है, उससे वह किसी मंजिल तक नहीं पहुंच रही है। जब मोदी की लीडरशिप में भाजपा ने इस देश के चुनाव प्रचार, राजनीतिक और सामाजिक एजेंडे, धार्मिक मुद्दे, और चुनाव प्रचार के तरीके, इन सबके नए पैमाने गढ़ दिए हैं, जब जनधारणा को चिकनी गीली मिट्टी की तरह मोडक़र मनचाहा आकार देना मोदी के बाएं हाथ का खेल हो चुका है, तब कांग्रेस पार्टी इस तरह अपने एक हाथ पर दूसरा हाथ धरे बैठी रहे, तो वह हाशिए के सिरे पर पहुंच जाने से बस दो ही कदम तो दूर है।

कांग्रेस पार्टी आज एक बहुत ही अजीब से मुहाने पर पहुंची हुई है, वह सोनिया-परिवार की लीडरशिप को बचाए रखे, या कि कांग्रेस पार्टी को बचाए रखे, यह मुद्दा तय करना है। हम लंबे समय से चली आ रही कुनबापरस्ती की तोहमतों के इतिहास में जाना नहीं चाहते, लेकिन आज हकीकत यह है कि अगर कांग्रेस पार्टी अपने अनमने और अघोषित मुखिया राहुल गांधी से परे कुछ नहीं सोच पाती है, तो उसके पास बहुत जल्द खोने को कुछ नहीं बचेगा।

Read also 

दिग्विजय गुट का लेबल हटाकर विजयलक्ष्मी साधो नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में आगे, निमाड़ में अरुण यादव के सामने साधो को चेहरा बनाने की कोशिश

 

हम जिस छत्तीसगढ़ में बैठकर यह बात लिख रहे हैं यहां पर हमने पिछले 15 बरसों के भाजपा शासन के दौरान कांग्रेस को संघर्ष करते देखा है। और खासकर आखिरी के शायद 5 बरसों में भूपेश बघेल की अगुवाई में प्रदेश कांग्रेस ने यहां जितनी धारदार और हमलावर विपक्षी लड़ाई की थी, वह देखने लायक थी।

ये हमारे विशेषणों की बात नहीं है, पिछले विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में जिस तरह कांग्रेस ने भाजपा को अपना रोड रोलर चलाकर चपटा कर दिया था, उसे 15 सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया था, वह कांग्रेस की एक दमदार मेहनत के बिना नहीं हुआ था। हिन्दुस्तान बहुत बड़ा देश है, इसलिए यह कल्पना करना आसान या जायज नहीं होगा कि

कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ऐसी लड़ाई लडऩे वाला दमदार मुखिया चाहिए जैसा पिछले विधानसभा चुनाव के पहले छत्तीसगढ़ कांग्रेस को हासिल था।

यह बात भूपेश बघेल के खिलाफ इस्तेमाल भी की जा सकती है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की काबिलीयत के पैमानों में भूपेश बघेल के विपक्ष के कार्यकाल का जिक्र किया जा रहा है। कांग्रेस देश भर में से जिसे चाहे उसको अध्यक्ष बनाए, लेकिन उस व्यक्ति को चौबीसों घंटे राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर चौकन्ना रहना होगा।

कांग्रेस पार्टी, और उसके अगुवाई वाला गठबंधन आज देश में ऐसी हालत में नहीं हैं कि एक गैरगंभीर मुखिया के तहत वे जिंदा भी रह सकें। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लीडरशिप के तौर-तरीकों पर गठबंधन के भागीदार दूसरे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए हैं। उन्हें सार्वजनिक रूप से उठाना जायज था या नहीं, उस पर हम नहीं जाते, लेकिन वह सवाल तो जायज था।

Related  

भाजपा और अल्पसंख्यक- देश के भीतर राजनीतिक वोटों के बंटवारे के ‘जिन्ना’साबित होते ओवैसी और उनका साथ निभाता एक ख़ास दल

 

इसलिए इसके पहले कि यूपीए के बाकी साथी ऐसे सवाल उठाएं, वे इधर-उधर तितिर-बितिर हो जाएं, उसके पहले कांग्रेस को अपना घर सम्हालना चाहिए और पार्टी को सोनिया परिवार से बाहर का एक अध्यक्ष देना चाहिए। ऐसा करना राहुल गांधी के साथ भी इंसाफ होगा जिन्होंने पिछले डेढ़ बरस में अपने आपको पार्टी की औपचारिक लीडरशिप से अलग कर रखा है, और रोजाना एक ट्वीट, और बिहार चुनाव में तीन दिन प्रचार तक सीमित रखा है।

कांग्रेस को एक पूर्णकालिक, महत्वाकांक्षी, मेहनती, और लीडरशिप की बाकी खूबियों वाला नेता चाहिए। जब पूरा देश नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के कदमों तले रौंदा जा रहा था, उस वक्त भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने यह साबित किया था कि 15 बरसों की विपक्षी कंगाली के बावजूद वह सत्तारूढ़ भाजपा को, मोदी छाप पार्टी को नेस्तनाबूत कर सकती है।

आज देश भर में कांग्रेस को इसी किस्म की मेहनत की जरूरत है, एक विश्वसनीय नेता की जरूरत है जिस पर लोगों को यह भरोसा हो सके कि वे हर वक्त मोर्चे पर डटे रहेंगे, पार्टी के लोगों को हासिल रहेंगे। कांग्रेस पार्टी के मुसाहिबों को यह बात खल सकती है, खलेगी ही, लेकिन सच तो यह है कि पार्टी को एक जीवाश्म (फॉसिल) बनाकर सोनिया परिवार को उसका लीडर बनाए रखना समझदारी नहीं होगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *