अक्षय सिंह राजपूत
बेगूसराय. लोकसभा चुनाव को मद्देनजर हर जगह चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है। सभी राजनैतिक दल सज -धज कर मैदान में ताल ठोक रहे हैं। रैलियों में मंच सज रहे हैं, मीडिया में खबर, सोशल साईट पर भी हर उम्मीदवार इमेज क्रियेशन के इस दौर में खुद को सजाने में लगे हए हैं। चुनाव का ये सज्जा हर चुनावी पर्व में देखने को मिलता है .. हाँ वक्त के साथ चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों का सजने -संवरने का कम्पीटीशन अब हार्ड होते जा रहा है। 2019 के इस चुनाव में मेरे ख्याल से बिहार के बेगूसराय जिले का मुकाबला भी बहुत दिलचस्प है। बेगूसराय वही धरती है जहाँ से कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्यार्ध
जो तठस्ठ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध
बेगूसराय के इस समर में जे.एन.यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और सी.पी आई के उम्मीदवार कन्हैया कुमार हैं तो दूसरी ओर भाजपा के कद्दावर नेता गिरिराज सिंह और राजद के तनवीर हसन हैं। तनवीर हसन का अपने खुद का और राजद के काडर में मजबूत पकड़ मानी जाती है। 2014 के मोदी लहर में भी तनवीर महज 64 हजार वोट से पटकनी खाए थे।
एन.डी.ए उमीदवार गिरिराज सिंह केंद्रीय राज्यमंत्री हैं साथ ही साथ अपने बयानों से देश भर में मीडिया के सुर्खियों में रहने वाले कुछ गिने-चुने नेताओं के फेहरिस्त में एक नाम इनका भी है।
डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया के इस दौर में हम कितना भी विकसित हो जाने का प्रपंच रच लें, सच्चाई तब जमीन पर दिखती है जब आज भी भारतवर्ष में उम्मीदवारों को टिकट और वोट जातीय आधार पर ही दिया जाता है, लिहाजा बेगूसराय के जातीय समीकरण की बात करें तो यहाँ 19% भूमिहार होने की वजह से ये वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। गिरिराज सिंह और कन्हैया कुमार भूमिहार हैं जाहिर है इससे कहीं न कहीं एन. डी. ए. के वोट का धु्रवीकरण हो सकता है और फायदा तनवीर हसन को होगा। राजद काडर वाले वोट 14% मुस्लिम और 12% यादव में भी कन्हैया सेंघ लगाने का काम करेगें, जिससे एक बड़ा फायदा गिरिराज सिंह को मिलेगा। मुकाबला त्रिकोणीय है इसलिए कुछ भी हो सकता है। चुनावी समीकरण का विश्लेषण चुनाव परिणाम तक चलता रहेगा, सबसे बड़ी बात है जहाँ एक वक्त में कन्हेया कुमार को देशद्रोह बताया जा रहा था ..बेगूसराय की धरती को शर्मसार कर देने वाले जुमले गढ़े जा रहे थे आज वही कन्हैया कुमार उसी बेगूसराय की धरती से चुनावी समर में भाजपा को ललकार रहे हैं। कन्हैया अपने चुनावी सभाओं में कहते नजर आते हैं, जिसने इस शहर को बदनाम किया है ये शहर उसे कभी माफ नहीं करेगा। एक वक्त में ये कहा गया कन्हैया देश विरोधी नारा लगाने में लिप्त थे। आज कन्हैया कह रहे हैं लोकतंत्र को बचाना है.. तो भाजपा को हराना है। मतलब साफ है कन्हैया के उपर जो कलंक था या फिर मढ़ा गया था वही कलंक आज कन्हैया का औजार साबित हुआ। जीत -हार कुछ भी हो मगर देश नें और खासकर बेगूसराय नें कन्हैया को लेकर जो तस्वीर मन में बनाई हुई थी। चुनाव के इस बहती गंगा में कन्हैया के बेगूसराय से डुबकी लगाने से, बेगूसराय के लोगों के मन में बनी उस तस्वीर में कहीं न कहीं बदलाव देखने को जरूर मिला है। बेगूसराय को वामपंथ का लालकिला भी कहा जाता है अब इस लालकिले पर इस बार लाल झण्डा फहराता है या नहीं ये चुनाव परिणाम के दिन पता चलेगा लेकिन हाँ बिहार से तिहाड़ के इस सफर से भाजपा भी कभी अंदाजा नहीं लगाई होगी ये सफर इतना मजबूत और परिपक्व कर देगा की हर पार्टियों का सजना, संवरना, गर्जना और दहाड़ना इसके सामने सब फीका पर जाएगा।
चुनाव है तो जाहिर है जीतना- हारना किसी का भी और कुछ भी सम्भव है 23 मई को देखते हैं लाल, हरा या फिर भगवा किस रंग के झंडे को बेगूसराय नें अपने शहर के समर में फहराना पसंद किया।
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