‘कर्णप्रिय’ अजान के ‘अलौकिक’ अर्थ

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शिवसेना ने मस्जिदों पर चारों दिशाओं में मुंह फाड़ते मुकुट की तरह सजे लाउड स्पीकर्स को उतारने की मांग केंद्र से कर दी 

विजय मनोहर तिवारी (लेखक,पत्रकार )

महाराष्ट्र की सरकार में एक तरफ कांग्रेस और दूसरी तरफ राष्ट्रवादी कांग्रेस के टेके पर टिकी शिवसेना ने मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान पर रोक लगाने की मांग की है। मुखपत्र सामना में लाउड नमाज को ध्वनि प्रदूषण बताते हुए शिवसेना ने कहा है कि इसे बंद करने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आए।

एक ही दिन पहले मुंबई के एक शिवसेना नेता अजान पर दिलो-जान से न्यौछावर हो रहे थे। पांडुरंग सकपाल नाम के बाला साहेब ठाकरे के ये अनुयायी स्कूलों में अजान प्रतियोगिता कराने का आइडिया लेकर आए थे। इतना ही नहीं, वे और एक कदम आगे जाकर देश का सामान्य ज्ञान बढ़ा रहे थे कि अजान के सुर तो बड़े ही मधुर होते हैं और हम अगली अजान का इंतजार करते हैं।

दूसरे ही दिन उनका सामना अपनी पार्टी के और बड़े आइडिया से हो गया, जिसमें मस्जिदों पर चारों दिशाओं में मुंह फाड़ते मुकुट की तरह सजे लाउड स्पीकर्स को उतारने की मांग केंद्र सरकार से कर दी गई। लाउडस्पीकर पर अजान लंबे समय से विवाद का विषय है। वो भी महीने या हफ्ते में एक बार नहीं, दिन में गिनकर पूरे पांच बार।

सिनेमा जगत में सोनू निगम से लेकर अभिजीत जैसे नामी गायकों ने भी इसे दूसरों के आराम में खलल और बेवजह परेशान करने वाला ही बताया।

उनके बयानों पर लाउड स्पीकरों के शोर से ज्यादा विवाद हुआ। जावेद अख्तर ने शायरी के अलावा जीवन में दो-चार जो ढंग की बातें की हैं, उनमें लॉक डाउन के दौरान मस्जिदों पर कानफोड़ने वाले लाउडस्पीकरों को उतारने की ट्वीट पर की गई पैरवी शामिल है। कुछ महीने पहले उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट का भी एक आदेश है कि लाउडस्पीकर पर अजान इस्लाम का मजहबी हिस्सा नहीं है।

जब लाउड स्पीकर नहीं थे तब भी अजान होती थी और लोग नमाज में आते थे। मोअज्जिन बिना लाउडस्पीकर के अजान दे सकते हैं। शोर-शराबे के बिना बेफिक्र नींद आम नागरिक का मूल अधिकार है। किसी को भी इस मूल अधिकार के उल्लंघन का हक नहीं है। यही नहीं कोर्ट ने मुख्य सचिव को दिए आदेश में कहा था कि कलेक्टरों से इसका पालन कराया जाए।

एक बार हैदराबाद में एक टैक्सी वाला मुझे पुराने शहर के फलकनुमा इलाके के अंदर लेकर गया। शाम की नमाज का वक्त था। वह सड़क के एक किनारे पर टैक्सी खड़ा करके सिगरेट पीने लगा और बोला कि आप यहां से अजानें सुनिए। चारों तरफ दूर-दूर तक मुस्लिमों की अलग-अलग बिरादरियों की मस्जिदें थीं, जिनकी मीनारें दूर से ही दिखाई दे रही थीं।

उनकी नमाजों में कुछ सेकंड और मिनट का अंतर था। जब अजानें शुरू हुईं तो यह कमाल का अनुभव था। चारों तरफ फुल वॉल्यूम में बजते लाउडस्पीकर की अजानों के सुर एक दूसरे में घुलमिलकर हवाओं में तैरते हुए ईमान की रोशनी का शानदार अहसास करा रहे थे। टैक्सीवाला मजे से सिगरेट पीता रहा और बाद में हैदराबादी हिंदी में पूछा-‘कइसा लगा साहेब?’ मैंने भी मुस्कराकर जवाब दिया-‘अलौकिक अनुभव!’

आखिर अजान है क्या, जो एक दिन शिवसेना के एक नेता को ऐसी कर्णप्रिय लगती है कि वे स्कूली बच्चों में इसकी प्रतियोगिता के लिए आतुर हो जाते हैं और अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि दूसरे ही दिन शिवसेना को इस कर्णप्रिय पुकार में ध्वनि प्रदूषण सुनाई दिया।

इस्लाम के जाने-माने अध्येता तुफैल चतुर्वेदी का एक मशहूर वीडियो है, जिसमें उन्हाेंने अजान का सबसे सरल तजुर्मा और उसकी व्याख्या पेश की है। मस्जिदों में अजान देने वाला मोअज्जिन होता है, जो हर नमाज के पहले अजान देता है। मोअज्जिन को उत्तरप्रदेश के इलाकों में बांगी भी कहा जाता है। यानी बांग देने वाला। पुकार लगाने वाला।

कबीर ने भी मुल्ला को बांग देने वाला कहा है। पांच सौ साल पहले जब लाउड स्पीकर का आविष्कार नहीं हुआ था तब तो मस्जिदों के ऊपर खड़े होकर मोअज्जिन चिल्लाकर अजान दिया करते थे। कबीर को यह तरीका भी अटपटा लगा। कबीर साहब ने सवाल उठाया कि क्या अल्लाह को ऊंचा सुनाई देता है जो मुल्ला इतना जोर से बांग दे रहा है।

उनका यह दोहा मशहूर है-‘कंकड़-पत्थर जोड़कर मस्जिद दई बनाए, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे बैरा हुआ खुदाय!’ कबीर के समय अखबार नहीं थे, वर्ना उनके बयान पर हेडलाइन यही होती-‘बनारस में कबीर के दोहे पर विवाद, दारुल-उलूम के फतवे के बाद कबीर बनारस से गायब।’

बहरहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना लाउडस्पीकर वाली अजान को ही इस्लाम का मजहबी हिस्सा माना है। ऐसा कहने के पहले शायद जज साहेबान ने अजान के पूरे तजुर्मे पर गौर नहीं किया हाेगा। इस्लाम के आलिम तुफैल चतुर्वेदी अजान के हर अल्फाज और एक-एक वाक्य का अनुवाद करते हैं।

मोअज्जिन अरबी के अल्फाजों को एक कायदे से ऊंचे सुर में एक खास मुद्रा में खड़े होकर आलापता है। तुफैल साहब बताते हैं कि अजान के आरंभ में मोअज्जिन ‘अल्लाहो-अकबर’ कहता है। यानी अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह सबसे महान है। अब मैं कहूं कि नोएडा में या एनसीआर में मैं सबसे बड़ा हूं तो इसका मतलब क्या होगा? इसका मतलब यह होगा कि बाकी सब मुझसे छोटे हैं।

क्या मुझे बिना परीक्षण के यह कहने का अधिकार है कि मैं सबसे बड़ा हूं? लोकतंत्र में सबके अधिकार बराबर हैं। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वो ही सही है और एकमात्र वो ही सही है। यह कानूनी तौर पर भी गलत है। इसके बाद अगली पंक्ति में मोअज्जिन दो बार दोहराता है कि मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई पूजनीय नहीं है।

अब अल्लाह कौन हैं? इस्लाम के पहले अरब समाज मूर्तिपूजक था, यह सबको पता है। सबको यह भी पता है कि मक्का में 360 बुत काबे में हुआ करते थे। इनमें से एक बुत अल्लाह का भी था, जिसे पैगंबर ने मूर्तियों को साफ करके अपनाया। तुफैल एक मिसाल देते हैं। वे बताते हैं कि मेरी कुलदेवी जगदंबा माता हैं। अब उनकी दलील है कि मैं यह दावा कैसे कर सकता हूं कि बाकी सब भी इन्हीं की उपासना करें। यही सबसे बड़ी हैं और सबसे महान हैं।

बुनियादी रूप से ही यह गलत है, क्योंकि देश में कोई कृष्ण का भक्त है, कोई बुद्ध को मानता है, कोई बाबा साहेब आंबेडकर में महानता के दर्शन करता है। सबको आजादी है। मैं यह कैसे दावा कर सकता हूं कि मैं ही सही हूं। बाकी कोई नहीं। अजान की अगली प्रक्रिया में मोअज्जिन दो बार दाईं तरफ मुंह करके कहता है कि आओ नमाज की ओर। यह ठीक है। इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। जो चाहें नमाज के लिए जाएंं। वह उन्हें आमंत्रण दे रहा है।

इसके बाद मोअज्जिन बाईं ओर मुंह करके कहता है कि आओ कामयाबी की ओर। यह भी ठीक है। अगर अल्लाह की इबादत कामयाबी है तो उसकी ओर बुलाने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। तुफैल साहब इस व्याख्या में कहते हैं कि फ्रांस में जिस स्टुडेंट ने अपने टीचर का सरेआम गला काटा, वह कौन है। वह इसी चिंतन प्रणाली में पला-बढ़ा एक नौजवान है, जो खुद काे सबसे श्रेष्ठ होने का दावा करती है।

किसी और को बराबरी पर लाना भी उनके लिए गुनाह है। इसके लिए वह गला काट सकते हैं। खून-खराबे पर उतारू हो सकते हैं। तुफैल का मानना है कि अजान उसी चिंतन प्रणाली की एक आवाज है और कुछ और नहीं।

कनाडा के सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद सहारन लाहौर समेत पाकिस्तान के कुछ शहरों की यात्रा करके लौटे तो अपने यूट्यूब चैनल पर एक शो में उन्हाेंने सवाल उठाया कि अगर मैं लाहौर के किसी मैदान पर खड़ा होकर यह आवाज लगाऊं कि राम ही सबसे बड़े हैं।

राम ही एकमात्र पूजनीय हैं। उनके अलावा और कोई न बड़ा है, न पूजनीय है। अगर मैं ऐसा कहंू तो क्या होगा? शो में मौजूद एक मुस्लिम बेरिस्टर ने मुस्कुराकर कहा कि ऐसा करने के फौरन बाद वहीं आपके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे।

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