राकांपा सुप्रीमो ने भतीजे अजित को बताया अपना नेता, सुप्रिया सुले बोलीं राकांपा एकजुट
Top Banner देश

राकांपा सुप्रीमो ने भतीजे अजित को बताया अपना नेता, सुप्रिया सुले बोलीं राकांपा एकजुट

मुंबई । महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। वे अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं इस समय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में आखिर चल क्या रहा है। शरद पवार भतीजे अजित पवार को अपना नेता बताया है। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि एनसीपी में कोई विभाजन नहीं हुआ है। संवाददाताओं से बातचीत में एनसीपी सुप्रीमो ने भतीजे अजित पवार के साथ किसी तरह के मतभेद की बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने प्रतिप्रश्न किया पार्टी में फूट कैसे पड़ती है? ऐसा तब होता है जब राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा समूह पार्टी से अलग हो जाए, लेकिन क्या राकांपा में तो ऐसी कोई स्थिति है।

कुछ लोगों की असहमति को फूट नहीं कह सकते
उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कहा, हां, कुछ नेताओं ने जरूर अलग रुख अपना रखा है, लेकिन इसे फूट नहीं कहा जा सकता। लोकतंत्र किसी को भी इतने अधिकार देता है। अगर उन्होंने निजी स्तर पर कोई फैसला ले लिया है, तो ‘फूट पड़ गई’ ऐसा कहने की कोई वजह नहीं है। उधर, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा एनसीपी में कोई टूट नहीं है। अजित पवार ने बस अलग कदम उठाया है। सुप्रिया सुले ने कहा डिप्टी सीएम अजित पवार एनसीपी के वरिष्ठ नेता हैं। सुप्रिया सुले ने यह भी कहा कि शरद पवार राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जबकि, जयंत पटेल एनसीपी के महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष हैं। सुप्रिया सुले ने टूट की बात को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि एनसीपी में कोई टूट नहीं हुई है, बस हमारी पार्टी के कुछ नेताओं ने अलग स्टैंड लिया है। हमने इस बारे में शिकायत की है।

जुलाई में अलग होकर गठबंधन का हिस्सा बने थे अजित पवार
जुलाई 2023 में अपने चाचा शरद पवार से अलग होकर अजित पवार शिंदे सरकार में शामिल हो गए थे और डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली थी। उनके साथ 8 और विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। तब अजित पवार ने दावा किया था कि उनके पास एनसीपी के 40 विधायकों का समर्थन है। पार्टी छोड़ने के बाद भी शरद पवार ने कभी अजित पवार की आलोचना नहीं की है। पार्टी से अलग होने के बाद अजित पवार उनसे चार बार मुलाकात भी कर चुके हैं। क्या इसका मतलब यह है कि शरद पवार, शिवसेना का सत्तासीन विद्रोही गुट और भाजपा अब एक मंच पर आ गए हैं। हालांकि वह प्रकट तौर पर इसकी घोषणा नहीं करना चाहते, क्योंकि वह जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के पहले ऐसा करने पर उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।