“शिव के पात्रों” ने न अभिनय ठीक किया न ताली बटोरी

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सतीश जोशी
इंदौर,भारतीय जनता पार्टी खुश हो सकती है कि उसे कांग्रेस ने  छत्तीसगढ़,राजस्थान की तरह बुरी तरह शिकस्त नहीं   दी। सवाल यह है कि 165 और अबकी बार 200 पार के आत्मविश्वास से चुनाव मैदान में शिवराज की फौज 109 पर क्यूं सिमट गई..। अपनी आर्शीवाद यात्रा में उमड़ी भीड़ से लबरेज आत्मविश्वास,ईवीएम मशीन तक क्यों नहीं पहुंचा। क्या सत्ता की चकाचौंध से आर्शीवाद यात्रा में भीड़ जुटाई गई थी। यह भीड़ उम्मीदवारों के चयन, फ्री हैंड पाने की शिवराजसिंह की रणनीति ही उसे जमीनी हकीकत से परिचित नहीं करा सकी। तंत्र के भरोसे बसों में भर कर लाई गई भीड़ आम भाजपा कार्यकर्ताओं से सत्ता की दूरी ही हार का बड़ा कारण है। आम कार्यकर्ताओं से ‘संवाद और पंचायत’ का नाटक  पार्टी की जमीन पर नहीं था,बल्कि तंत्र द्वारा खड़े किए गए मंच पर अभिनीत किया गया था,जिसके पात्र स्वयं शिवराजसिंह ने चयन किए थे। ऐसे पात्रों का न अभिनय ठीक था न वे ताली बटोर पाए।
कहने का मतलब यह कि उम्मीदवारों के चयन में कनफूकियों के भरोसे बनी सूची जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की सौंधी गंध से बहुत दूर थी। सत्ता की चासनी और सत्ता का मद ऐसी मधुमक्खियों का छत्ता बन गया,जो ईवीएम खुलते ही भाजपा के शिखर नेतृत्व को डंक मार रहा है। हार पर  विश्लेषण तो होगा,मगर चुनाव मैदान में जाने के पहले मंत्रियों ,विधायकों और स्वयं शिवराजसिंह चौहान के चाल,चेहरे और चरित्र पर विश्लेषण किया गया होता तो परिणाम यह नहीं होते। मध्यप्रदेश की सभी सीटों का विश्लेषण मुश्किल है पर यदि तीन चार सीटों का रस लें तो परिणाम के कड़वे रस का स्वाद समझ में आ जाएगा। गोपाल भार्गव,कृष्णा गौर, आकाश विजयवर्गीय तथा पारस जैन की जीत बताती है कि जनता में पकड़,365 दिन की सक्रियता और चुनावी रणनीति किस तरह विजय दिलाती है। गोपाल भार्गव जैसे नेताओं की जीत क्षेत्र में पकड़,कृष्णा गौर की जीत  मतदाताओं में जीवंत संपर्क और पारस जैन, आकाश विजयवर्गीय की जीत रणनीति की जीत है। सुनिए शिवराजजी.. आपकी जीत सहित 109 विधायकों की जीत इसी तरह की जीत कही जाएगी।
 अपनी पसंद के चेहरों, संपर्क और रिश्तों को तरजीह देना पार्टी के हितों पर भारी पड़ गया है। तमाम उम्मीदवारों का चयन इसी  परिभाषा में आता है। दूसरा बड़ा कारण तंत्र के भरोसे पार्टी की गतिविधियों को चलाना और जनहित के बड़े बड़े कार्यक्रमों को प्रशासन की आंकड़े बाजी को सचाई समझ लेना सबसे बड़ी भूल है। दिग्विजयसिंह के अंतिम दिनों में कारकुनों ने जिस तरह नगर सरकार और पंचायत राज का ढिंढोरा पीटा था और कांग्रेस को 15 साल के लिए सत्ता के लिए बेदखल कर दिया था,ठीक उसी तरह  शिवराजसिंह के कारकुनों ने नर्मदा यात्रा, बेटी बचाओं,बेटी पढ़ाओ से लेकर भावांतर,लाभ की खेती,बिना ब्याज कर्ज, पूंजी निवेश को पलीता लगाया है,यह ईवीएम खुलते ही नंगी आंखों से दिखार्ई पड़ रहा है।
(writer is a senior editor, journalist and political thinker…)

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