ममता के साथ धरने पर बैठे अफसरों को बर्खास्त करने से ही सुधरेगा नेताओं की चापलूसी का रोग
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ममता के साथ धरने पर बैठे अफसरों को बर्खास्त करने से ही सुधरेगा नेताओं की चापलूसी का रोग

शर्मनाक है अफसरों का नेताओं के प्रति निष्ठा का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन !

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में जो तस्वीर सामने आ रही है वो ठीक नहीं। देश के लिए ये खतरनाक है। सीबीआई अफसरों को राज्य पुलिस द्वारा खींचकर हिरासत में लेना। सीबीसाई दफतर पर कब्ज़ा कर लेना। ये राज्यों की गुंडागर्दी की श्रेणी में आएगा। एक चुनी हुई मुख्यम्नत्री द्वारा ये अधिकारों का दुरुपयोग है। पुलिस और प्रशासन सरकारों के सहयोग के लिए हैं. सत्ता का उनपर अधिकार नहीं है। अफसर भी कोई ख़रीदे हुए वसूली बाउंसर नहीं है। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को पुछताछ में सहयोग करना ही चाहिए। ये उनकी जिम्मेदारी है। सबसे खराब है राज्य के डीजीपी, सुरक्षा सलाहकार और कोलकाता पुलिस कमिश्नर का ममता के साथ धरने पर बैठना। आखिर वे किस हैसियत से धरने पर मुख्यमंत्री के साथ बैठ सकते हैं। सिविल कोड ऑफ़ कंडक्ट के तहत किसी भी प्रशासनिक अधिकारी का हड़ताल धरने पर बैठना या सत्ता से जुड़े आयोजन में एक पार्टी की तरह शामिल होना अपराध है. अक्षम्य अपराध। राष्ट्रपति और प्रशासनिक सेवा बोर्ड को ऐसे अफसरों को तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए। किसी भी बड़ी कार्रवाई के बिना अधिकारी इसी तरह सत्ता के दलाल, करीबी बने रहेंगे और अपनी कर्तव्य निष्ठा के बजाय नेताओं की निष्ठा में कर्तव्य निभाते रहेंगे।

राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेते हुए ऐसे अफसरों पर बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो हर राज्य अपनी एक अलग ही दुनिया बना लेगा। केंद्रीय व्यवस्था, अदालत और केंद्रीय संस्थानों की हैसियत कुछ भी नहीं रह जायेगी। ममता बनर्जी को इस बात के पूरे अंक मिलने चाहिए। वे चतुर राजनेता साबित हुई, और अधिकारी एक दम नाकारा। राजनेता का राज्य के हित में धरने पर बैठना अच्छी पहल है (ये अलग बात है कि कानूनी और नैतिक रूप से ये पूरी तरह सही नहीं है। आज अधिकारीयों की नियुकित नेताओं से उनकी निकटता के आधार पर होती है। ये सब जानते है। पर क्या जरुरी है कि अपनी निष्ठा जताने के लिए अफसर हाथों में फूल माला लिए, जुत्ते उठाये नेताओं के पीछे घुमते रहें। क्यों जरुरी है ऐसी शर्मनाक निष्ठा का प्रदर्शन। आखिर आपका कोई वजूद है या नहीं, क्या सिविल सेवा में ऐसी ही जी हुजूरी के लिए आये थे साहब? इससे तो बेहतर वो सड़क पर ठेला लगाने वाले लोग हैं. कम से कम वो आज़ादी से अपना कर्तव्य तो निभा रहे है। आईएएस, आईपीएस संगठनों को भी ऐसे अफसरों पर कार्रवाई कर अपनी इज्जत बचानी चाहिए. आज सीबीआई की साख गिरी है, कल पूरे देश की पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की भी ऐसे ही इज्जत ख़त्म हो जाएगी।

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