ग्वालियर चम्बल में बसपा बर्बाद, महाराज से जनता नाराज़, कांग्रेस हुई मजबूत

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बहुजन समाजवादी पार्टी के मध्यप्रदेश के उप चुनाव में अकेले लड़ने से फैसले से दलित मतदाता का भरोसा उससे कम हुआ, ऐसे में कांग्रेस ग्वालियर चम्बल में सबसे मजबूत दावेदार बनी

कुमार दिग्विजय

जनाधार को जागीर समझने की गलती कितनी जानलेवा होती है,यह बसपा के हश्र को देखकर साफ समझ में आता है। उत्तरप्रदेश की राजनीति में सबसे
महारथी समझी जाने वाली बसपा कमल के दुष्चक्र में ऐसी फंसी की अर्श से फर्श पर आ गई।

इसके बाद भी बहिनजी यह तय नही कर पा रही है कि उन्हें कैसे उठ खड़ा होना है। अब मध्यप्रदेश के विधानसभा में होने वाले उपचुनावों की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करने का बसपा का दांव उसके वोट बैंक को समाप्तकरने जैसा नजर आता है।

दरअसल बसपा का परम्परागत दलित वोट ग्वालियर चम्बल संभाग में निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है,लेकिन बहिनजी केफैसले दलित वोटर आसानी से हजम नही कर पाता और इसीलिए बसपा की विश्वसनीयता लगातार घटी है। साल 2008 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में 8.72 फीसदी वोट पाने वाली बसपा को साल 2013 के विधानसभा चुनाव में घटकर 6.29 फीसदी वोट मिले थे, जबकि विधानसभा में उसे चार सीटें मिली थीं।

इन चुनावों में बसपा प्रत्याशी 12 सीटों पर दूसरे नंबर थे और 18 सीटों पर उसे तीसरा स्थान मिला था। लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट प्रतिशत गिरकर महज पांच फीसदी ही रह गया। इसके बाद घबराई बसपा ने सत्ता प्राप्ति की संकल्प यात्रा भी निकाली लेकिन उसमे जनता का कोई विश्वास या भागीदारी देखने को न मिली।

वास्तव में बसपा का जाना पहचाना और विश्वसनीय चेहरा फूलसिंह बरैया थे,जब तक वे बसपा में रहे,मेहनत भी करते रहे और अन्यों से दूरी भी बनाये रखी। लेकिनउनके बसपा छोड़ते ही दलित वोटर भी छिटक गया।

साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ग्वालियर चम्बल इलाके में बेहतरीन प्रदर्शन किया।  हाल में इस इलाके के कई बसपा नेता कांग्रेस में शामिल भी हुए जिसमे शिवपुरी केकरेरा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रागी लाल जाटव,डबरा नगरपालिका की पूर्व अध्यक्ष सत्य प्रकाशी,बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार, पूर्व विधायक सत्यप्रकाश और पूर्व सांसद देवराज सिंह पटेल समेत कई दिग्गज नेता और उनके समर्थक शामिल है।

जाहिर है इस बार बहिनजी कांग्रेस से हाथ मिलाकर अपना जनाधार बढ़ा सकती थी लेकिन एक बार फिर उन्होंने मध्यप्रदेश में ऐसा आत्मघाती दांव खेला है जिसे लेकर बसपा का दलित मतदाता भी ठगा महसूस कर रहा है और उसका बहिनजी पर से विश्वास उठना तय नजर आ रहा है।

ग्वालियर चंबल का दलित वोटर महाराज को लेकर पहले ही नाराज है और इसका सीधा नुकसान भाजपा को हो सकता है। वहीं कांग्रेस इस सारे घटनाक्रम में आश्वस्त नजर आ रही है। जाहिर है फूलसिंह बरैया का कांग्रेस में होना निर्णायक हो सकता है और बसपा का सत्ता वापसी का संकल्प इन उपचुनावों में हमेशा के लिए धराशाई हो सकता है।

राजनीतिक पंडितों की नजर में बहिनजी मध्यप्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करके फायदे में रह सकती थी और अपना वोट बैंक भी बचाएं रख सकती
थी। लगता है वह किन्हीं कारणों से स्वयं को बचाने की जुगत में है और उनका मध्यप्रदेश में बसपा को लड़ाने का दांव भी आशंका बढ़ाने वाला है।

संदेह इसीलिए भी गहराया है क्योंकि उपचुनावों से दूर रहने वाली बसपा अचानक सक्रियता क्यों दिखा रही है। राजनीतिक समझ आम जनता में बढ़ी है औरइसीलिए इस हालात में बसपा के उपचुनावों के उतरने की घोषणा से बहिनजी की विश्वसनीयता खतरे में पड़ गई है। इस प्रकार कांग्रेस एक बार फिर ग्वालियर चंबल संभाग में मजबूत होती नजर आ रही है।

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