सुनील कुमार (संपादक, डेली छत्तीसगढ़ )
कोरोना के मोर्चे पर हिंदुस्तान में अब एक नई बहस शुरू हो गई है कि क्या कोरोना वायरस उतार पर है और यह भी कि किन-किन राज्यों में हालत सुधर रही है। एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने एक वक्त कहा था कि दुनिया में झूठ तीन किस्म के होते हैं, झूठ, सफेद झूठ, और आंकड़े। हिंदुस्तान में यही आंकड़ों का खेल चल रहा है। हम सरकारों की नीयत को संदेह का लाभ देते हुए इसे झूठ नहीं कह रहे, लेकिन इसे अपने आपको धोखा देने के लिए दिया गया झांसा जरूर मानते हैं कि कोरोना उतार पर है।
कल जब केंद्र सरकार ने यह गिनाया कि किन-किन प्रदेशों में कोरोना के आंकड़े कम हो रहे हैं, तो देश के विशेषज्ञों ने सरकार के ऐसे दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि अभी कोई गिरावट नहीं आ रही है, और कोरोना का पीक 15 जून तक आ सकता है, 15 जून यानी अभी से करीब 6 हफ्ते और !
जिस तरह आज कई दिनों के बाद देश में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े हैं, क्योंकि चुनावी मतगणना पूरी हो गई है। उसी तरह देश में अब धीरे-धीरे कुछ राज्यों में कोरोना की सच्ची जांच होने लगेगी। जांच के आंकड़े बढ़ेंगे। और उसके साथ ही यह हकीकत पता लगेगी कि वहां पर कोरोना की हालत कितनी खराब है। कितनी भयानक है।
जिन राज्यों में चुनाव नहीं था और जिन राज्यों की छवि बचा कर रखने की एनडीए के पास कोई खास वजह नहीं थी, ऐसे कुछ राज्यों ने तो ईमानदारी से जांच की और महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कोरोना के आंकड़े बहुत अंधाधुंध बढे हुए दिखाई पड़े। लेकिन क्या हिंदुस्तान में ऐसी कोई वजह हो सकती है कि बिहार और यूपी के चारों तरफ के राज्यों में कोरोना का भयानक प्रकोप हो और ये दोनों लापरवाह राज्य कोरोना से इतने बचे हुए रहें।
जबकि उनकी आबादी छत्तीसगढ़ जैसे राज्य से 5-10 गुना अधिक है? इसलिए जब देश के बहुत से लोग यह कहते हैं कि कुछ राज्य सोच-समझ कर कोरोना जांच कम कर रहे हैं।
कुछ राज्य गुजरात की तरह सोच-समझकर ऐसी किसी मौत को कोरोना मौत दर्ज नहीं कर रहे जिसमें मृतक को कोई भी और बीमारी रही हो, तो ऐसी नौबत में आंकड़े जो हैं, वे कहीं लोगों का अहंकार पूरा करने के काम आ रहे हैं। कहीं लोगों की इज्जत बचाने के काम आ रहे हैं, लेकिन ये हकीकत दिखाने के काम में नहीं आ रहे हैं. हिंदुस्तान के बाहर की बहुत सी एजेंसियों का, बहुत से विशेषज्ञों का, यह मानना है कि हिंदुस्तान में कोरोनाग्रस्त लोगों के जो आंकड़े बताए जा रहे हैं, हकीकत उनसे 10-20 गुना अधिक बुरी भी हो सकती है।
आज एक और किस्म की हकीकत है जिसे समझने की जरूरत है। पिछले 4 हफ्तों में देश के अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग किस्म के लॉकडाउन रहे, कहीं रात का कर्फ्यू रहा, कहीं दिन का। जिंदगी की रफ्तार को धीमा किया गया। यह भी तब जबकि पिछले एक महीने के पहले साल-छह महीने से लगातार स्कूल-कॉलेज बंद चल रहे हैं। बीच के कुछ हफ्तों को छोडक़र सिनेमाघर बंद चल रहे हैं, मॉल बंद चल रहे हैं।
बीच के कुछ महीनों को छोडक़र रेस्तरां बंद चल रहे हैं। पिछले महीने भर से तो अधिकतर जगहों पर बाजार सीमित समय के लिए खुल रहे हैं। बहुत सारी चीजें बंद हैं, सरकारी दफ्तर बंद हैं। छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन को 3 हफ्ते या उससे अधिक समय हो चुका है, तो इस तरह से जिंदगी की रफ्तार को नियंत्रित किया गया है।
इसकी वजह से भी आज ऐसे सभी प्रदेशों में प्रतिबंधों के अनुपात में ही कोरोना संक्रमण कम होते दिख रहा है, कहीं-कहीं पर मौतें भी कम होते दिख रही हैं।
लेकिन अगर कोई यह कहे कि इन प्रदेशों की सरकारों ने कोरोना को काबू में कर लिया है तो यह निहायत फिजूल की बात होगी। यह नियंत्रण आज किसी भी तरह से कोरोना पर नहीं, यह नियंत्रण आज अपने प्रदेश की जनता की जिंदगी पर हुआ है। उसकी आवाजाही, उसका कामकाज, उसका उठना-बैठना उसके सामाजिक अंतरसंबंध, इन पर नियंत्रण हुआ है।
सरकार की कोई रोक-टोक, सरकार के कोई प्रतिबंध, जिलों के लगाए हुए कोई लॉकडाउन, कोरोना पर लागू नहीं हैं, इंसानों पर लागू हुए हैं। कारोबार पर लागू हुए हैं, सरकारी कामकाज पर लागू हुए हैं। इसलिए आज कोरोना में अगर कहीं पर बढ़ोतरी थमी हुई दिख रही है या गिरावट दिख रही है तो इस बात को अच्छी तरह से समझ लेने की जरूरत है कि किसी सरकार ने कोरोना पर काबू नहीं पाया है। सरकारों ने केवल अपने लोगों की जिंदगी पर काबू पाया है जिससे कि कोरोना और फैलने का खतरा था।
आज तो यह इंसान की जिंदगी को अस्थाई रूप से निलंबित करके कोरोना के संक्रमण को बढऩे से रोकने जितनी बात ही हुई है। आज अगर कोई यह सोचे कि किसी प्रदेश में कोरोना के आंकड़े 3 हफ्ते पहले के आंकड़ों तक आ गए हैं तो यह अपने को झांसा देना होगा।
आज नियंत्रित जिंदगी में कोरोना, पहले की अनियंत्रित जिंदगी जितना घट भर गया है। आज फिर से लॉकडाउन खुलेगा तो शायद उसकी वजह से संक्रमण बढऩा फिर शुरू हो सकता है। आज देश में ना संक्रमण काबू में दिख रहा है, ना टीकाकरण बढ़ते हुए दिख रहा है, ना इलाज और अस्पताल की क्षमता में बढ़ोतरी दिख रही है, और न अस्पतालों में भीड़ में कोई कमी आ रही है।
आज भारत में कोरोना के आंकड़ों को घटता हुआ देखकर जिन लोगों को यह लग रहा है कि जिंदगी बहुत जल्दी अपने स्वाभाविक रफ्तार में आ जाएगी यह उनकी जरूरत से अधिक आशावादी सोच है। कोरोना इतनी जल्दी लोगों को इतना नहीं छोड़ रहा है कि जिंदगी पहले की तरह चलने लगे।
हमने बंगाल में लाखों लोगों की चुनावी आमसभाओं की भीड़ को देखा है और उसकी वजह से कोरोना के आंकड़े अब वहां सामने आना शुरू होंगे, दूसरी तरफ उत्तराखंड जैसे राज्य में कुंभ के मेले में एक-एक दिन में 10-10, 20-20 लाख लोगों के गंगा में डुबकी लगाने की वजह से जो कोरोना प्रसाद की तरह बंटा है। वह देश भर में गांव-गांव और गली-गली तक पहुंचना शुरू हो चुका है। इसलिए किसी को भी यह नहीं मानना चाहिए कि कोरोना का बढऩा एकदम से थम गया है। एकदम से थमी है बस जिंदगी।
यह सरकारों को देखना है कि जिन-जिन लोगों की रोजी-रोटी छिन रही है उसकी भरपाई कैसे हो सकेगी, लोग जिंदा कैसे रह सकेंगे। इसको केंद्र और राज्य सरकारों को सोचना पड़ेगा लेकिन लॉकडाउन एक कड़वी दवा है जिसे पिए बिना कोरोना से उबरना नामुमकिन नहीं हो पाएगा। आज हम तीनों से बहुत दूर हैं, इलाज की क्षमता से बहुत दूर हैं, दवा से बहुत दूर हैं, वैक्सीन से बहुत दूर हैं।
आज हमारे देश के डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, और फ्रंटलाइन वर्कर मौत झेल रहे हैं और लोगों को ऐसे में अपने घरों में सुरक्षित रहना चाहिए और अगर सरकारों को लंबा लॉकडाउन लगाने की जरूरत पड़ती है तो उसके लिए तैयार भी रहना चाहिए। जिंदगी रहेगी, तो काम किसी ना किसी तरह से आगे चल निकलेगा, और आज तो हिंदुस्तान में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर लोगों के लिए खाने का इतना इंतजाम किया हुआ है कि एक भी हिंदुस्तानी के भूखे मरने की नौबत नहीं आएगी।
आज लोगों को इसी बात को बहुत मानकर चलना चाहिए कि वे भूखे नहीं मर रहे हैं। क्योंकि सरकारों की ताकत कोरोना से एकाएक जीतने की नहीं है, एकाएक टीके पैदा नहीं हो रहे हैं, जिस वक्त हिंदुस्तान में भारत सरकार को जागरूक रहकर इसका इंतजाम करना था, उसने कुछ किया नहीं और आज सारा ठीकरा राज्यों के सिर पर फोड़ दिया गया है।
इसलिए लोगों को अपने-अपने राज्य की सरकारों का साथ देना चाहिए। उससे सवाल करने चाहिए, उसकी नाकामयाबी या गलतियों पर लिखना चाहिए, लेकिन उसका साथ भी देना चाहिए। सरकारों के लिए भी लॉकडाउन जनता के मुकाबले कोई कम तकलीफ का नहीं है, सरकारी खजाने में टैक्स का आना खत्म सा हो गया है। ऐसे में प्रदेश को चलाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल बात है, फिर मोदी सरकार की मेहरबानी से तो आज हर प्रदेश को अपने लोगों के लिए टीके भी खरीदना है, तो इन हालात में अपने-अपने प्रदेश की सरकार के तय किये लॉकडाउन के लिए लोग तैयार रहें।
आखिर में एक बात, इस देश के जिस एक नेता राहुल गाँधी की कोरोना के बारे में कही हर बात सही साबित हुई है, उसने अभी 3 घंटे पहले ट्वीट किया है कि अब लॉकडाउन ही अकेला रास्ता बचा है।
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