MP Poor Health System

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स्वास्थ्य का बजट 21 हजार करोड़, फिर भी कहीं ऑक्सीजन खत्म होने से बच्ची की मौत तो कहीं चूहों का आतंक

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MP Poor Health System: देश का दिल मध्य प्रदेश, जिसकी हर मंच से खूब तारीफ होती है। वहीं वहीं मध्यप्रदेश जिसे अभी हाल ही में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में करोड़ों का निवेश मिला। आज बात उसी मध्य प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की। जहां एक तरफ गुना में ऑक्सीजन की कमी से तीन साल की बच्ची की मौत हो गई, तो वहीं दूसरी तरफ मंडला जिला अस्पताल में बच्चों की जान पर चूहो का खतरा मंडरा रहा है।

ऑक्सीजन खत्म होने से थमीं मासूम की सांसें

गुना जिला अस्पताल से तीन साल की बच्ची को भोपाल रेफर किया गया था। लेकिन, एंबुलेंस में ऑक्सीजन खत्म होने से इस मासूम की मौत को जाती है। हद तो तब हो गई जब एंबुलेंस कर्मचारी बच्ची को ब्यावरा सिविल अस्पताल के गेट पर छोड़कर भाग गए, न तो रेफर पर्चा दिया और न ही बच्ची को भर्ती कराया।

दरअसल, तेज बुखार आने पर ग्राम पटना की रहने वाली हर्षिता कुशवाह को गुरुवार को गुना शासकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार सुबह करीब साढ़े 6 बजे हालत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने उसे भोपाल रेफर कर दिया और फिर वो हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ब्यावरा से करीब 5 किलोमीटर पहले ही एंबुलेंस में ऑक्सीजन खत्म हो गई और दूसरा ऑक्सीजन सिलेंडर भी पहले से खाली था। जब परिजन मासूम को लेकर ब्यावरा सिविल अस्पताल पहुंचे तो ड्यूटी डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित बता दिया।

एनएचएम मध्यप्रदेश के संचालक सह-मुख्य प्रशासकीय अधिकारी केके रावत ने “एंबुलेंस में ऑक्सीजन खत्म होने से मरीज की मौत” समाचार पर संज्ञान लेते हुए सीएमएचओ, राजगढ़ और गुना सहित 108 कॉलसेंटर के प्रोजेक्ट हेड को नोटिस देकर जवाब तलब किया है। असंतोषजनक स्पष्टीकरण पर संबंधित एंबुलेंस के माहभर के परिचालन व्यय में कटौती की जाएगी। इस मामले में जहां बच्ची के परिजनों ने गुना जिला अस्पताल के डॉक्टरों और स्टाफ पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं। वहीं पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने भाजपा सरकार को घेरते हुए इसे दर्दनाक “सरकारी हत्या” बता दिया।

बेबस अस्पताल प्रबंधन, बच्चों के वार्ड में दौड़ रहे चूहे

मंडला जिला अस्पताल में बच्चों की जान को खतरा है। जी हां अस्पताल के बच्चा वार्ड में चूहों का आतंक है। चूहे पूरे वार्ड में इधर-उधर घूमते हैं, मरीज के बेड पर जाते हैं, यहां तक सिर पर भी दौड़ रहे है। मरीज के परिजनों ने बताया कि यहां चूहों का आतंक है इत कदर है कि वह खाना तक खींचकर ले जाते हैं। मामले का वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो कैबिनेट मंत्री सम्पतिया उइके ने अस्पताल प्रबंधन को कड़ी फटकार लगाते हुए नाराजगी जताई। मंत्री जी ने कलेक्टर को इस मामले की गंभीरता से जांच करने के साथ ही दोषी कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। लेकिन, सवाल तो अब भी वहीं है कि यह नौबत आई ही क्यों?

21 हजार करोड़ का बजट, फिर भी अस्पतालों की बदहाल स्थिति

इन मामलों ने सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोल के रख दी है। 3 जुलाई 2024 को मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राज्य का बजट पेश किया था, जिसमें स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 21,444 करोड़ रुपये दिए गए। यानी ये साफ है कि पैसे की कमी तो नहीं है, तो फिर आए दिन आ रही सरकारी अस्पताल की अव्यावस्थाओं की तस्वीरें सवाल पूछने पर मजबूर तो करेंगी ही।

चाहें गुना में तीन साल की मासूम की ऑक्सीजन की कमी से मौत का मामला हो या मंडला जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड में चूहों का आतंक और ऐसे कई मामले सवाल उठाएंगे कि जिम्मेदार कब जान की कीमत समझेंगे? गुना जिला अस्पताल में तीन साल की मासूम की मौत के लिए जिम्मेदार डॉक्टरों, स्टाफ और एंबुलेंस कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? क्या सरकार अस्पतालों के निरीक्षण के लिए कोई सख्त रणनीति बनाएगी ताकि आगे से ऐसी घटनाएं न हों? मंडला जिला अस्पताल में चूहों के आतंक का मामला क्या सिर्फ फटकार तक सीमित रहेगा या वास्तव में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी? सरकारी अस्पतालों की बदहाल स्थिति का जिम्मेदार कौन है — सरकार, प्रशासन या अस्पताल प्रबंधन?

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