शिवराज अपनी कैबिनेट बैठक मंगलवार को उज्जैन में कर रहे हैं। इससे एक मुख्यमंत्री के अध्यात्म से जुड़ाव की सोच भी सामने आती है। आखिर क्यों तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी शिव ही शक्ति….
पंकज मुकाती, (संपादक, पॉलिटिक्सवाला www.politicswala.com
शिव राज। मध्यप्रदेश मे चार बार से यही नाम सत्ता के शीर्ष पर विराजमान है। इस नाम में ही भगवान शिव के आशीर्वाद की ध्वनि छिपी है। इसके पहले भगवान शिव का 18 साल तक सत्ता का वरदान किसी और को प्राप्त नहीं हुआ। दूसरी तरफ इस पूरे प्रदेश, देश में भगवान शिव की सत्ता है।
यानी शिव का राज। मोक्षदायिनी अवन्तिकापुरी शिव की प्रिय स्थली है। वे मृत्युंजय महाँकाल के स्वरूप में विराजमान है। शिव योगी है। सांसारिक भी। ‘पग पग भैय्या’ की कैबिनेट भी इसलिए उज्जयिनी आ पहुंची। शिव का राज…शिव को समर्पित। मंगलवार को शिवराज सरकार की कैबिनेट शिव के सानिध्य में क्षिप्रा तट पर होगी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पचमढ़ी, हनुवंतिया जैसे पर्यटन स्थलों को त्यागकर इस आध्यात्मिक नगरी को अपनी सरकार के फैसलों के लिए चुना। 18 वर्षों के शासन में कई बार लगा कि सत्ता के सिहांसन पर अब कोई और विराजित होंगे। पर शिवराज इन सारे कयासों, प्रयासों से परे अपने कर्म में लीन रहे।
पिछले दो महीनों से फिर ऐसी अटकलें लगी। हमेशा की तरह शिवराज जनता के सेवक बने रहे। शिव की सत्ता पर कोई पहली बार ऊंच नीच के हालात बने हो, ऐसा नही है। ताजपोशी के साथ ही इसकी शुरुआत हो गई थी। वक्त बेवक्त उन्हें अस्थिर करने की कोशिश हुई। शिव मिजाजी शिवराज विषपान करते रहे। शायद नर्मदा किनारे बसे जेत की मिट्टी का ही ये असर था कि वे संकटों से पार पाते रहे।
बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब कमल नहीं खिला, नए चेहरे खिले। शिव सत्ता पर विराम लगा। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे शिवराज की राजनीति का पूर्णविराम तक लिख दिया। शिवराज के लिए खड़ाऊं बनवाने और संन्यास पर भेजने के विरोधियों ने किस्से गढ़े।
शिव हमेशा की तरह तटस्थ बने रहे। कुछ ही दिनों में फिर सत्ता हिली, समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन में ‘ज्योति’ के जरिये सत्ता का कमल फिर खिला। अब जो सत्ता का स्वरुप सामने आया उसे किसी ने विषैला तो किसी ने अमृत तुल्य बताया। चखे बिना इसका फैसला संभव नहीं। हर बार की तरह इस प्याले को चखने का जिम्मा शिव के हिस्से आये। शिवराज ने इसे स्वीकारा।
अपनी सरल, सौम्य, साधक छवि से विष का प्याला भी अमृत में बदल गया। यही शिवराज का गुण है और धर्म भी। वक्त कोई भी हो वे कभी भी अपना गुणधर्म बदलते नहीं दिखते। हमेशा एक सरीखे। आज भी मध्यप्रदेश में सबसे भरोसेमंद चेहरा शिवराज का ही है।
संगठन, सत्ता, मंत्रिमंडल और जनता सबको साधने में शिवराज सफल रहे, वे रणनीतिकार भले कमजोर हैं, पर अपने देहाती अंदाज में भरोसा जीतने और उसमे सेंध न लगे इसकी चौकसी वे करते रहे हैं, इसीलिए शिवराज हर मामले में इक्कीसे साबित हुए। आम आदमी उनमे अपना अक्स देखता है।
राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि शिवराज सिंह की विनम्र छवि उनकी राजनीतिक पूंजी है। अपने विरोधियों की तुलना में शिवराज सिंह इसी विनम्रता और सबको साधने के कारण सर्वप्रिय बने हुए हैं। उनकी इसी सर्वप्रिय छवि ने उन्हें बनाये रखा है।
केंद्र के बड़े नेताओं और प्रदेश के कई नेताओं को शिवराज नहीं सुहाते, बावजूद इसके उनको हर बार चुनना ये दर्शाता है कि शिवराज जैसा कोई नहीं। शिवराज ने सिंधिया खेमे के सभी विधायकों को जिस चतुराई से अपने सांचे में फिट किया उसने एक बार फिर शिवराज को एक कदम आगे कर दिया।
आज कांग्रेस से आये सारे बागी शिव राज में रच बस गए हैं। एक तरह से शिवराज ने मेंढक तौलने में भी सफलता हासिल कर ली।तमाम उतार चढ़ाव के बाद आज शिवराज सरकार बाबा महाकाल के कॉरिडोर में है। निश्चित ही यहाँ के फैसलों में शिव की भक्ति और शक्ति दोनों का स्वरुप देखने को मिलेगा। ये कैबिनेट एक तरह से शिव की सत्ता शिव को समर्पित वाला भाव है।
….. इस कॉरिडोर का नाम ही पूरे भविष्य को दर्शाता है ‘शिव सृष्टि’
(स्वतंत्र समय अखबार के भोपाल, इंदौर, ग्वालियर संस्करण में प्रकाशित )
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