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सरकारी सिस्टम ने दिखाया बेरुखी का चेहरा, न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हुई 4 बच्चियों की मां

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MP News: मध्यप्रदेश में महिलाओं के सशक्तिकरण और सुरक्षा के तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। रायसेन जिले के गैरतगंज की रहने वाली सविता लोधी, जो चार छोटी बच्चियों की मां हैं, न्याय के लिए दर-दर भटक रही हैं।

डेढ़ साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर उन्हें नौकरी तो मिली, लेकिन अब उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है। मजबूर मां सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं, लेकिन कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही।

शिवराज के आदेश पर मिली थी नौकरी, अब हाथ में कुछ नहीं

सविता लोधी को वर्ष 2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर रायसेन कलेक्ट्रेट के जनजाति कार्य विभाग में नौकरी दी गई थी। इससे उन्हें अपनी चार बेटियों का पालन-पोषण करने में मदद मिल रही थी।

लेकिन, कुछ समय बाद उन्हें जनपद पंचायत में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां से महज 15 दिन बाद ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। अब वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही।

पूर्व सीएम से मदद मांगी, तो गार्ड ने भगा दिया

सविता ने अपनी नौकरी बहाल कराने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बंगले पर भी गुहार लगाई। जब वह पहली बार वहां पहुंचीं, तो शिवराज सिंह ने अधिकारियों को फोन कर उनकी मदद करने का आदेश दिया।

लेकिन, जब कोई कार्रवाई नहीं हुई और सविता दोबारा वहां पहुंचीं, तो गार्ड ने उन्हें जेल भेजने की धमकी देकर भगा दिया। यह एक विधवा महिला और उसकी चार बच्चियों के साथ अमानवीय व्यवहार का गंभीर उदाहरण है।

अधिकारी ने कहे अपशब्द, विधायक ने टाला मामला

सविता ने रायसेन जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि जब वह मदद मांगने गईं, तो अधिकारी ने उन्हें “चरित्रहीन” कहकर अपशब्द बोले और वहां से भगा दिया

यही नहीं, जब इस मामले में क्षेत्रीय विधायक प्रभुराम चौधरी से बात की गई, तो उन्होंने भी कोई ठोस जवाब देने से इनकार कर दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वे अधिकारियों को निर्देश दे चुके हैं, लेकिन कोई ठोस मदद नहीं दी।

जेपी अस्पताल में बच्चियों संग रहने को मजबूर

पिछले दो महीनों से सविता अपनी चार बच्चियों के साथ भोपाल के जेपी अस्पताल में रह रही हैं। उनके पास कोई ठिकाना नहीं बचा है और न ही कोई आर्थिक सहायता मिल रही है। वह सरकारी दफ्तरों और नेताओं के चक्कर लगाकर थक चुकी हैं, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है।

ऐसे में सवाल यह फटता है कि क्या एक विधवा मां को अपनी चार बच्चियों के पालन-पोषण का हक नहीं है? महज 5 हजार रुपये की चौकीदारी की नौकरी छीनना कितना न्यायसंगत है? अगर सरकारी योजनाएं महिलाओं की मदद के लिए बनी हैं, तो फिर सविता जैसी महिलाओं को भटकना क्यों पड़ रहा है?

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करें और सविता को फिर से नौकरी देकर स्थायी समाधान निकाले, ताकि वह अपनी बच्चियों के की परवरिश कर सके, उन्हें पढ़ा सके, काबिल बना सके, उनके भविष्य को सुरक्षित कर सके और सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।

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