-सुनील कुमार
भारत के सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए होने वाले इम्तिहान, नीट, के पर्चे लीक करके उसे आधा-पौन करोड़ तक में एक-एक छात्र को बेचने, और उसके आधार पर तैयारी करवाकर इम्तिहान दिलवाने का भांडा फोड़ हुआ है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में अदालत ने इम्तिहान पर रोक तो नहीं लगाई है, लेकिन केन्द्र सरकार को नोटिस जरूर जारी किया है जो कि नीट इम्तिहान आयोजित करती है। इस जनहित याचिका में अदालत से कहा गया है कि इसका एक पर्चा लीक हुआ है, और उसके आधार पर अगर इम्तिहान होता है तो उससे दाखिला प्रभावित होगा, और प्रतिभाशाली छात्रों का हक मारा जाएगा।
याचिका में कहा गया है कि मोटी रकम देकर ऐसे पर्चे खरीदने वाले लोगों से बाकी छात्रों का समानता और बराबरी के अवसरों का बुनियादी हक मारा जा रहा है, और कुछ संपन्न छात्रों को इससे नाजायज फायदा मिल रहा है। खबरें बताती हैं कि गुजरात और बिहार में संगठित शिक्षा-माफिया इस पर्चा-लीक के पीछे है, और बहुत से ऐसे बयान मिल गए हैं जिन्होंने बताया कि उनके मां-बाप ने लीक हो चुके पर्चे का इंतजाम किया था, और उन्हें रात भर इन्हीं सवालों की तैयारी करवाई गई, और अगले दिन यही पर्चा आया भी।
अब देश भर में कुछ अलग-अलग मेडिकल-दाखिला इम्तिहान होते थे जिनको सबको खत्म करके राष्ट्रीय स्तर पर नीट लेना शुरू किया गया, और उस वक्त भी दक्षिण भारत के तमिलनाडु जैसे राज्य नीट का जमकर विरोध कर रहे थे। जबकि आम धारणा यह है कि दक्षिण में पढ़ाई का स्तर बेहतर है, और राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी दाखिला इम्तिहान में दक्षिण भारत के राज्य, और महाराष्ट्र जैसे बेहतर पढ़ाई वाले राज्य के छात्र-छात्राओं का दबदबा रहेगा।
लेकिन अब अगर गुजरात और बिहार के करोड़पति मां-बाप पर्चे खरीदकर अपने बच्चों के पास होने की गारंटी करवा ले रहे हैं, तो इससे पूरे देश में ही प्रतिभाशाली बच्चों की संभावनाएं खत्म होती हैं। यह सिलसिला कई तरह से खतरनाक है, एक तो इससे देश की सरकार और लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा खत्म होता है, और फिर गरीब बच्चों के मन में यह निराशा स्थाई रूप से बैठ जाएगी कि वे कुछ भी कर लें, दाखिला तो करोड़पतियों के पर्चे-खरीदे बच्चों का ही होगा।
गरीब बच्चों के मनोबल टूटने का एक लंबा नुकसान होगा जिससे उबरना भी मुश्किल होगा। और फिर ऐसे बच्चे आगे चलकर सरकार, कानून, और लोकतंत्र के लिए मन में हिकारत पाल लेंगे, और देश के लिए यह भारी पड़ेगा।
सिर्फ यही दाखिला इम्तिहान नहीं, अलग-अलग राज्यों में, और केन्द्र सरकार की नौकरियों के लिए जितने तरह की चयन-परीक्षाएं होती हैं, उनमें भी जहां-जहां बेईमानी होती है, राजनीतिक या आर्थिक आधार पर लोगों को चुना जाता है, उससे भी गरीब और मेहनती बच्चों में डिप्रेशन भर जाता है।
उनकी पढ़ाई-लिखाई में दिलचस्पी भी घट जाती है कि आगे जाकर स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई से तो नौकरी भी नहीं मिल पाएगी, और नौकरी तो खरीदनी ही पड़ेगी।
जब देश की नौजवान पीढ़ी और उससे भी कम उम्र के बच्चों में यह धारणा घर कर जाएगी तो लोगों के मन में पढ़ाई का महत्व खत्म हो जाएगा। यह कुछ उसी किस्म का होगा जिस तरह कि जब सरकारें बहुत भ्रष्ट हो जाती हैं, तो लोगों की टैक्स देने में दिलचस्पी खत्म हो जाती है। लोगों को लगता है कि हम ईमानदारी से टैक्स दें, और उस पैसे को खर्च करते हुए सत्ता पर बैठे नेता और अफसर बेईमानी करते रहें, तो फिर ऐसा टैक्स दिया ही क्यों जाए?
आज वैसे भी हिन्दुस्तान में स्कूलों की पढ़ाई एक नकली पुतले की तरह बन गई है, और पैसे वाले मां-बाप अपने बच्चों के लिए किसी महंगे कोचिंग सेंटर में दाखिला जुटाते हैं, और वह कोचिंग सेंटर बच्चों को स्कूल के बोझ से बचाने के लिए अपनी किसी डमी स्कूल में उनका दाखिला दिखा देते हैं, और बिना क्लास में गए उन्हें हाजिरी मिलती रहती है।
दशकों से यही सिलसिला चले आ रहा है, और अब जाकर किसी एक स्कूल शिक्षा बोर्ड ने ऐसे स्कूलों की मान्यता खत्म की है जो छात्र-छात्राओं को दिखावे का एडमिशन दिखाती हैं।
भारत की शिक्षा व्यवस्था वैसे भी गरीब और अमीर के बीच, सरकारी और निजी के बीच, हिन्दी और अंग्रेजी के बीच, तरह-तरह के विरोधाभासों से भरी हुई है, और ये विसंगतियां बढ़ती ही चली जा रही हैं। जिस तरह से निजी महंगी स्कूलों के बाद अब निजी महंगे विश्वविद्यालय हावी हो गए हैं, उनसे भी यह समझ पड़ता है कि आगे की ऊंची पढ़ाई में दाखिले के लिए पैसों का बोलबाला काम आता है क्योंकि महंगी कोचिंग पाने वाले बच्चों की संभावना मुकाबले में बढ़ जाती है।
अब इससे भी सौ कदम आगे जाकर अगर खरीदे गए पर्चों से तैयारी करके कुछ अतिसंपन्न बच्चे दाखिला पा जाएंगे, तो इससे नीट जैसी राष्ट्रीय स्तर की दाखिला-परीक्षा शुरू करना ही नाजायज होगा।
जिन दो राज्यों गुजरात और बिहार में साजिश करके नीट का पर्चा लीक किया गया है, दोनों ही जगहों पर भाजपा-एनडीए की सरकारें हैं, और केन्द्र सरकार को इस भयानक जुर्म को अपनी राज्यों की सत्ता के साथ जोडक़र भी देखना चाहिए। कहने के लिए जिस इम्तिहान का इंतजाम बड़ा सख्त है उसके पर्चे जुटाने और बेचने में अगर गुजरात और बिहार इस तरह उजागर हुए हैं, तो यह बात वहां की राज्य सरकार के भी फिक्र करने की है जिसकी कि इज्जत इससे खराब हो रही है।
हमारा ऐसा ख्याल है कि दाखिला-इम्तिहानों से लेकर नौकरियों तक अगर कोई संगठित जुर्म हो रहा है, तो उसके लिए अधिक सजा का प्रावधान भी किया जाना चाहिए। क्योंकि ऐसी एक-एक परीक्षा को प्रभावित करने का काम लाखों बच्चों की जिंदगियां प्रभावित करता है, और फिर कॉलेजों में दाखिले से लेकर सरकारी नौकरियों तक में अगर कम प्रतिभाशाली बच्चे चुन लिए जाते हैं, तो आगे की पढ़ाई और नौकरी दोनों की क्वालिटी खराब होना तय है। केन्द्र सरकार को अपने इस इम्तिहान की साख बचाने के लिए भी इस बार की पूरी साजिश का भांडाफोड़ करना चाहिए, और आगे ऐसा न हो उसके लिए बेहतर इंतजाम करना चाहिए।