SC Stays Allahabad HC Order: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप या अटेम्प्ट टु रेप का मामला नहीं है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई और इसे असंवेदनशील और अमानवीय करार दिया। साथ ही केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है।
SC ने पहले किया था सुनवाई से इनकार
पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट के विवादित टिप्पणी को हटाने की मांग की गई थी। लेकिन, जब हाईकोर्ट के फैसले की कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी आलोचना की और विवाद बढ़ने लगा तो मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई करने का फैसला लिया और मामले को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह की पीठ ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है और हाईकोर्ट के फैसले में असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा दिखाई गई है। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले जज में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से उठे सवाल
20 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने फैसले में कहा था कि किसी नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ की श्रेणी में नहीं आता है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने दो आरोपियों पर लगी धाराओं को बदलने के साथ तीन आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन याचिका को स्वीकार कर लिया।
बता दें इस मामले में पहले निचली अदालत ने आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 376 (बलात्कार), 354 (महिला का अपमान करने के उद्देश्य से हमला), 354B (बलपूर्वक कपड़े उतारने का प्रयास) और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया था। आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया था। लेकिन, आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा कि उनके खिलाफ लगे आरोपों पर पुनर्विचार किया जाए। इसके बाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि इस मामले में रेप या रेप के प्रयास का मामला नहीं बनता है।
3 साल पुराना मामला, पुलिस ने नहीं की थी कार्रवाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस मामले पर फैसला सुनाया था, वो तीन साल पुराना है। उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में 12 जनवरी 2022 को एक महिला ने कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी कि 10 नवंबर 2021 को उसकी 14 साल की बेटी के साथ तीन युवकों ने यौन उत्पीड़न किया। महिला ने बताया कि वह अपनी बेटी के साथ अपनी देवरानी के घर गई थी और शाम को घर लौट रही थी। रास्ते में गांव के तीन युवक – पवन, आकाश और अशोक मिल गए।
पवन ने भरोसा दिलाया कि वह उसकी बेटी को बाइक से घर छोड़ देगा, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने बच्ची के निजी अंगों को छूने की कोशिश की। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। बच्ची की चीख-पुकार सुनकर पास से गुजर रहे ग्रामीणों ने बीच-बचाव किया, तो आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और मौके से फरार हो गए।
बच्ची की मां जब आरोपी के घर शिकायत लेकर गई, तो आरोपी के पिता अशोक ने उसे गालियां दीं और जान से मारने की धमकी दी। अगले दिन जब महिला पुलिस स्टेशन गई और एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद महिला ने अदालत का रुख किया, जिसके बाद 21 मार्च 2022 को अदालत ने इस मामले को स्वीकार करते हुए आगे की कार्रवाई शुरू की।
पहले भी विवादास्पद फैसले पलट चुका है सुप्रीम कोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए असंवेदनशील दिखाई और इसे रेप या अटेम्प्ट टु रेप ना मानते हुए आरोपियों पर लगी धाराओं को बदल दिया। हाईकोर्ट का यह फैसला यौन अपराधों से जुड़े कानूनों को कमजोर करने की कोशिश कर सकता था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
हालांकि, इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट विवादास्पद फैसलों को पलट चुका है। 19 नवंबर 2021 को कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा था कि किसी नाबालिग के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से किया गया कोई भी कार्य POCSO एक्ट के तहत अपराध माना जाएगा, चाहे उसमें त्वचा से त्वचा का संपर्क हो या न हो।
बता दें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी 2021 में एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यदि कोई व्यक्ति नाबालिग लड़की के निजी अंगों को ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क के बिना छूता है, तो उसे POCSO एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
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