Bihar SIR: बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई।
शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को वोटर-फ्रेंडली करार देते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची सत्यापन के लिए 11 में से कोई भी एक दस्तावेज मांगा है।
कोर्ट का मानना है कि दस्तावेजों की संख्या बढ़ाना लोगों को सूची में बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है, न कि उन्हें बाहर करने के लिए।
हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इस तर्क से असहमति जताई।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में स्थायी निवास प्रमाणपत्र (डोमिसाइल) केवल 1-2% लोगों के पास है, जबकि प्रक्रिया में इसे भी एक विकल्प के रूप में रखा गया है।
वहीं, अधिवक्ता प्रशांत भूषण का कहना था कि लगभग 8 करोड़ मतदाताओं में से 25% से ज्यादा लोगों ने कोई दस्तावेज नहीं दिया है और 50% से अधिक के पास एक भी मान्य दस्तावेज नहीं है।
भूषण ने यह भी कहा कि 40% लोगों के पास केवल मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट है, जो नागरिकता का पुख्ता सबूत नहीं है।
बेघर लोगों के पते पर उठे सवाल
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जे. सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बेघर लोगों के पते तय करने की चुनौती पर भी चर्चा की।
वरिष्ठ अधिवक्ता सेन ने कहा कि बेघर व्यक्तियों के निवास स्थान का निर्धारण करने के लिए रात में कम से कम दो बार मौके पर जांच की जानी चाहिए।
इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि यह व्यावहारिक चुनौती है, लेकिन समाधान संभव है और इसे निकालना होगा।
सेन ने यह भी तर्क दिया कि मौजूदा समय और परिस्थितियों में यह प्रक्रिया उचित नहीं है, क्योंकि मतदाता सूचियां पहले से मौजूद हैं और “सुविधा का संतुलन” उनके पक्ष में है।
अदालत ने इस दौरान जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) का भी जिक्र किया और पूछा कि क्या चुनाव आयोग के पास SIR के लिए अतिरिक्त/अवशिष्ट शक्तियां नहीं हैं।
इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में RJD सांसद मनोज झा की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जिंदा लोगों को मृत घोषित कर दिया गया है।
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा था कि इस तरह की कवायद में कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं और मसौदा सूची में इन्हें सुधारा जा सकता है।
इसी दौरान स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव दो ऐसे व्यक्तियों को लेकर कोर्ट पहुंचे जिन्हें ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मृत दिखाया गया था, लेकिन वे जीवित थे और उनके पास आधार व अन्य दस्तावेज भी थे।
आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं: SC
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इसका स्वतंत्र सत्यापन जरूरी है।
चुनाव आयोग ने भी इसी तर्क को दोहराया था और राशन कार्ड को भी पहचान के लिए अस्वीकार किया था, क्योंकि यह बड़े पैमाने पर बनाया गया है और फर्जीवाड़े की संभावना अधिक है।
इस पर जस्टिस कांत ने कहा था कि अगर फर्जीवाड़े की बात है तो कोई भी दस्तावेज पूरी तरह सुरक्षित नहीं है, फिर 11 दस्तावेजों की सूची का आधार क्या है?
दरअसल, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि SIR प्रक्रिया में 65 लाख मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। इनमें से कई लोग न तो मरे हैं और न ही राज्य से बाहर गए हैं।
अदालत ने पहले ही कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम कटने की बात साबित होती है, तो वह हस्तक्षेप करेगी और प्रक्रिया रद्द भी हो सकती है।
8 अगस्त को कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को ठोस सबूत पेश करने को कहा था और चुनाव आयोग को 65 लाख हटाए गए नामों की सूची अदालत में देने का निर्देश दिया था।
आयोग का कहना है कि बिना नोटिस के किसी का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा।
हालांकि, निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह कानूनी तरीके से अपना काम कर रहा है और कानून में ड्राफ्ट लिस्ट से हटाए गए नामों को सार्वजनिक करने का प्रावधान नहीं है।
आयोग का दावा है कि SIR का मकसद सूची को साफ और सही करना है, ताकि मृतक या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जा सकें।
राजनीतिक दलों ने औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की
ड्राफ्ट सूची पर दावा-आपत्ति की अंतिम तारीख 8 अगस्त थी, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने एक भी औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं की।
- RJD के 47,506 BLO, आपत्ति: शून्य
- कांग्रेस के 17,549 BLO, आपत्ति: शून्य
- माले के 1,496 BLO, आपत्ति: शून्य
- CPI के 899 BLO, आपत्ति: शून्य
चुनाव आयोग का कहना है कि राजनीतिक दल सिर्फ बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर रहे।
बता दें यह मामला 24 जून को तब उठा था, जब निर्वाचन आयोग ने SIR प्रक्रिया का आदेश जारी किया था।
इसके तहत घर-घर जाकर मतदाता सूची की जांच, मृतक और स्थानांतरित व्यक्तियों के नाम हटाना और डुप्लीकेट वोटर कार्ड खत्म करना शामिल था।
NGO और कई नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रक्रिया में गड़बड़ियां हुईं और वैध मतदाताओं के नाम भी काटे गए।
इसके बाद RJD सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिका दायर की।
बुधवार की सुनवाई के बाद कोर्ट ने संकेत दिए कि वह यह देखेगी कि निर्वाचन आयोग ने किन सुझावों और आपत्तियों को माना और किन्हें खारिज किया।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बागची की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। इस मामले की अगली सुनवाई अब गुरुवार को होगी।
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