प्रवेश गौतम (9425079785)।
मप्र में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही भाजपा को लेकर असंतोष व विरोध शुरू हो गया। विंध्य में 24 सीट जीतने वाली भाजपा ने इस क्षेत्र से केवल एक ही मंत्री बनाया है। इस निर्णय को लेकर विंध्य की जनता विशेषकर ब्राह्मण नाराज़ हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की विंध्य की राजनीति में ब्राह्मण अति महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में ब्राह्मण को पूरी तरह से नकारना भाजपा को महंगा पड़ सकता है। आगामी नगरीय निकाय चुनाव में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। कई सामाजिक संगठनों में भाजपा को लेकर नाराज़गी बाहर आने लगी है।
महाकौशल क्षेत्र से केवल एक ही मंत्री बनाना भी भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं दे रहा है। पूर्व मंत्री संजय पाठक का दबदबा मैहर से लेकर जबलपुर तक और पन्ना से लेकर दमोह तक माना जाता है। इसके अलावा यहां की कई सीटों में ब्राह्मण वर्ग को विजय फैक्टर माना जाता है।
विंध्य और महाकौशल में 25 प्रतिशत के लगभग ब्राह्मण मतदाता हैं। कई आरक्षित सीटों पर भी विजय का गणित इसी वर्ग के झुकाव से निर्धारित होता है।
भाजपा में सदा ही विंध्य की उपेक्षा होती आई है। संगठन चुनाव में भी विंध्य से केवल एक उन दो ही नाम हैं जिन्हें चुनाव प्रभारी बनाया गया था। कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले विंध्य क्षेत्र में पीछले दो चुनावों से भाजपा बेहतर प्रदर्शन कर रही है। बावजूद इसके भाजपा ने इस क्षेत्र की पूरी तरह से उपेक्षा की है।
वर्तमान मंत्रिमंडल में भाजपा के नए मंत्रियों पर नज़र डालें, तो यह प्रतीत होता है कि भाजपा एक डरी हुई पार्टी है। नए मंत्रिमंडल में ज्यादातर आरक्षित वर्ग को तवज्जो दी गई है। युवा पूरी तरह से नकार दिए गए हैं। क्षत्रियों को भी काफी हद तक स्थान दिया गया है।
वहीं सागर जिले से भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को मंत्री बनाना, सिद्धान्तों की नहीं बल्कि अंदरूनी धमकी या यूं कहें की नाराजगी का असर है।
*यदि सिंधिया कोटे और कांग्रेस से आयातित मंत्री अपने अपने उपचुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें हटाना सम्भव नहीं होगा। जिसका सीधा तात्पर्य है कि पार्टी में असंतुलन लगातार बना रहेगा और ब्राह्मण के साथ साथ विंध्य और महाकौशल विकास व उचित सम्मान के लिए तरसेंगे।