दिक्कत धर्म में नहीं इंसानों में है…
एक मुस्लिम महिला की प्रेम कथा – जो कहती है, कुरान में न्याय के नाम पर किसी पर अत्याचार करने का कहीं परनहीं लिखा गया है, ये इंसानी बेरहमी है जो धर्म को कलंकित कर रही है
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने #politicswala
कोरोना की मची तबाही से उबारने के लिए स्विट्ज़रलैंड का एक एनजीओ एशिया के दक्षिण पूर्वी राष्ट्र इंडोनेशिया में आया और प्रभावितों के बीच काम करने लगा। इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है। इस इस्लामिक देश में काम करते हुए एक स्विस नागरिक को मुस्लिम महिला से प्रेम हो गया।
वह मुस्लिम महिला विदेशी की मानवीयता की अमूल्य सेवा से खासी प्रभावित हुई थी। बाद में वह महिला स्विट्ज़रलैंड चली गई और आज कल वही
रहती है। इंडोनेशिया के कई प्रान्तों में शरिया कानून लागू है और महिलाओं को अक्सर कोड़े मारे जाने की घटनाएं सामने आती है।
मुस्लिम महिला,यह सबअपने देश में सहती और देखती थी। अब वह महिला दुनिया के विकसित देशों में अव्वल स्विट्ज़रलैंड की शहरी है। वह स्वतंत्रता से जीती है। इस्लाम के नियमोंका पालन करती है,इस्लाम की मूल भावना को सामने रखते हुए यह संदेश भी देती है कि कुरान में न्याय के नाम पर किसी पर अत्याचार करने का कहीं पर
नहीं लिखा गया है। वह कहती है दिक्कत धर्म में नहीं है,इंसानों में है,जो इतने बेरहम है कि आस्था को भी कलंकित कर देते है।
कोरोना काल की विपदा के बाद दुनियाभर में लोगों में धर्म के प्रति विश्वास बढ़ा है और ईश्वर के प्रति आस्था भी। इससे धर्मगुरुओं का कद भी बढ़ गया है। इसका यह असर हुआ कि धर्मगुरु धर्म के साथ राजनीति की शिक्षा भी देने लगे है। ऐसे में इंडोनेशिया जैसा बहुलता और विविधता वाला देश तेजी से कट्टरता की और बढ़ रहा है। वहां रहने वाले ईसाई अपनी पहचान छुपाने को मजबूर हो रहे है।
कुल मिलाकर दक्षिण पूर्व एशिया का जो देश अपनी विविधता के कारण दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता था,वह धार्मिक चरमपंथियों के निशाने पर है। हालांकि धर्मगुरुओं के राजनीतिक प्रभाव से भारतीय समाज भी अभिशिप्त हो रहा है। भारतीय भूमि पर अनादी अनंत से होने वाली धर्म सभाएं ज्ञान,मानवीय मूल्यों और आध्यात्म का केंद्र रही है।
संतों की वाणी को ईश्वर की वाणी मानने की परम्परा हमारी सभ्यता और संस्कृति में रही है। अब न तो संत की श्रेष्ठता के आचरण है और न ही धर्म संसद की पवित्रता का पालन। ईश्वर होकर भी राम और कृष्ण ने अपनी पहचान को सामान्य रखा जबकि अब श्री श्री श्री को जोड़कर ईश्वर के सम्मान को भी झुठलाने के प्रयास निरंतर जारी है।
तुलसीदास के ज्ञान और पांडित्य से निकली रामचरित मानस का निर्माण मुस्लिम राजाओं की बादशाहत के स्वर्णिम दौर मुग़ल राज में हुआ था। जाहिर है तुलसीदास द्वारा इस अनुकरणीय कार्य के बिना संकट पूरा होने में तत्कालीन मुगल बादशाह के नीतिगत योगदान को सराहा जाना चाहिए। पहले मनुस्मृतिऔर अब राम चरित मानस को लेकर समाज में गहरे विरोधाभास सामने आ रहे है।
यह भी सच है कि हिंदू धर्मावलम्बी जातीय भेदभाव के बाहुपाश में जकड़े हुए है। वे इससे बाहर भी नहीं निकलना चाहते तथा कई धर्मगुरु और राजनीतिज्ञ इसे बढ़ावा देते है। जबकि दोनों धर्मग्रंथों और साधु समाज के व्यवहार में कोई भेद नजर नहीं आता । साधु समाज में कोई जातिगत पहचान नहीं है। नागा धर्मरक्षा सेना के रूप में काम करते हैं। मौजूदा समय में परिषद में शामिल अखाड़ों में दलितों की संख्या 50 हजार से भी ज्यादा है। सर्वाधिक दलित जूना अखाड़े से हैं। सभी अखाड़ों मे साधुओं की जातिविहीन व्यवस्था कायम है।
मनु स्मृति में लिखा है कि जन्म से तो सभी शुद्र होते है,संस्कारों की वजह से द्विज कहलाता है। यदि वह वेदों का अध्ययन करने वाला है तो विप्र कहलाएगा और
जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण कहलाएगा। वेदों का संबंध मानव सभ्यता के विकास से जोड़ा जाता है,अत: सबका दावा यहां मजबूत नजर आता है। महाभारत के शांति पर्व में कहा गया है कि वर्णों में कोई शारीरिक विभिन्नता हीं है,सब मनुष्यों के शरीर एक से है। सबमें स्वेद,मूत्र,श्लेमा,पित्त और रक्त
प्रवाहित हो रहा है।
भविष्य पुराण में कहा गया है कि यदि पिता के चार पुत्र हो,तो उन पुत्रों की जाति एक होना चाहिए। इसी प्रकार एक ही परमेश्वर सबका पिता है। अत:मनुष्य समाज में जाति भेद बिल्कुल नहीं होना चाहिए। धर्म कभी रहस्य नहीं हो सकता। जहां रहस्य होता है वहां बुद्धि श्रेष्ठता और विवेक शुन्यता दोनों भाव आने की पूर्ण संभावना होती है। और जब विवेक शून्य हो जाए तो भ्रम पैदा होता है।
भ्रम से चेतना व्यग्र होती है और तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। स्पष्ट है जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है। महात्मा गांधी का मानना था कि धर्म मानव के भीतर के मूल्य होते हैं। अब दुनिया भर में हिंसक घटनाओं के बीच लगातार मानवीय मूल्य दरकिनार किए जा रहे है और अफ़सोस इसे धर्म से जोड़ा जा रहा है। श्रीकृष्ण ने गीता में सन्देश देते हुए कहा था कि मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।