मनुष्य का मरना मुझे उतनी चोट नहीं पहुंचाता जितनी कि मनुष्यत्व की मौत: शरतचंद्र —सीहोर में कुबेरेश्वर धाम में गुरुवार को मनुष्यत्व की ही मौत हुई। भीड़ के जरिये अपने ज्ञान को तौलने वाले प्रवचनकारों में से एक पंडित प्रदीप मिश्रा के आयोजन में इंसानियत के सिवा सब कुछ हुआ। रुद्राक्ष वितरण के नाम जो मजमा लगा, उसने हजारों लोगों को त्रस्त किया। दो हजार लोग बीमार, एक मौत के बावजूद पंडित जी गद्दी पर बैठकर ज्ञान का पुराण ठहाकों के साथ बांचते रहे।
पंकज मुकाती (संपादक, #politicswala)
पंडित प्रदीप मिश्रा। शिवपुराण के वाचक। बड़ा ललाट। लालिमा वाला तिलक। लच्छेदार बातें। कुछ शिवपुराण। बहुत सी दुनियादारी की। एक लोटा जल। बिल्बपत्र। सरल उपाय वाले सीहोर वाले बाबा। दिखने में सुनने में एक दम भोलेभंडारी।
पर गुरुवार को जो हुआ उसने उनपर बहुत से सवाल उठाये। रुद्राक्ष वितरण के उनके आयोजन में भगदड़ मची। एक श्रद्धालु महिला की मौत हो गई। दो हजार से ज्यादा लोग बीमार हुए। भीड़ में बेचैनी बढ़ी। भोले के दरबार में सामने आया एक स्वार्थी स्वरूप।
एक महिला की मौत, हजारों के घायल होने पर भी शिवभक्ति वाले बाबा बेअसर रहे। वे मौत, दर्द, दु:ख से भरे पांडाल में भी अपने ऊंचे सिंहासन पर विराजे। वही अपने मसखरे अंदाज में कथा शुरू की। बिना किसी क्षमा, दु:ख, श्रद्धांजलि प्रकट किये।
उस भगदड़ के बीच पंडित जी दुर्वचन से भी नहीं चूके। वे बोले -मौत आनी है तो आयेगी। यानी अपने आश्रम के आयोजन में होने वाली मौत को वे ‘मोक्षÓ प्राप्ति जैसा महिमामंडित करने से पीछे नहीं हटे। इस दर्द के धाम में भी वे कोई परेशानी देखना ही नहीं चाहते।
क्या एक मौत और हजारों के घायल होने के बाद कथा रोकी नहीं जा सकती थी। रोकते नहीं तो कम से कम घायलों के प्रति सांत्वना के दो शब्द ही बोल देते। कोई भी कथा वाचक इतना निष्ठुर कैसे हो सकता हैं। ऐसी निष्ठुरता उनके सभी प्रवचनों को केवल एक रटंत विद्या ही साबित करती है। मनुष्य के मन, वचन,कर्म और वाणी में विरोधाभास ही उसके ज्ञान की हकीकत सामने लाता है।
कुबरेश्वर धाम में भी गुरुवार को यही सामने आया। आखिर तीस लाख रुद्राक्ष बांटने के लिए मेला लगाने की क्या जरुरत है? क्यों भीड़ जुटाकर अपनी सत्ता को महिमामंडित करने की लालसा? यदि पंडित जी वाकई रुद्राक्ष बांटकर श्रद्धालुओं को उपकृत करना चाहते हैं तो कई और तरीके हैं।्वे ऑनलाइन रुद्राक्ष का वितरण कर सकते हैं।
रुद्राक्ष बांटने के लिए दिन निश्चित करने का कोई जवाब पंडित मिश्रा देंगे? क्या रुद्राक्ष पहनने, बांटने, ग्रहण करने के भी कोई दिन पुराणों में लिखे हैं? ऐसा कहीं लिखा नहीं है, फिर चार या पांच दिन इस वितरण की जिद क्यों? पूरे साल अपने आश्रम के काउंटर से इनका वितरण कीजिये।
दूसरी बात तीस लाख रुद्राक्ष का वितरण पांच दिन में होना है। इसका गणित ये बैठता है कि प्रतिदिन पांच-छह लाख लोगों को ये वितरित होंगे। ऐसे में ये सवाल उठाना कि योजना से ज्यादा लोग आ गए भी सरासर झूठ लगता है।
आश्रम के मुताबिक पिछले साल आयोजन रद्द हो गया था, उसके बाद रुद्राक्ष का वितरण नहीं हो सका। इसके मायने ये हैं कि पिछले साल के रुद्राक्ष ही इस वर्ष वितरित किये जा रहे हैं। अब ये सवाल तो बनता ही है कि जनता की सेवा के लिए एक साल इन्तजार क्यों? इन्हे पूरे साल में वितरित किया ही जा सकता था। अब तक कई लोग इसका पानी पीकर स्वस्थ भी हो चुके होते। इस देरी से न जाने कितने भक्तों को एक सालतक स्वास्थ लाभ नहीं मिल सका।
आश्रम का दावा है कि रुद्राक्ष कि जांच इंदौर और भोपाल के विज्ञानशाला में हुई और इसके पानी को सेहत के लिए अच्छा बताया गया (इस दावे की पड़ताल और कभी करेंगे) फि़लहाल तो ये सत्संग पंडाल में मानवता, इंसानियत को शर्मसार करने का मामला है। भक्तों को भी ये बात समझनी चाहिए कि भगवान और भक्त के बीच कोई तीसरे की जरुरत क्यों रहेगी?
जिस प्रभु ने जन्म दिया वो खुद आपसे जुड़ा हुआ है। ऐसे विलासिता से लकदक, राजनीति के बोझ तले झुके, सत्ता को देखकर सत्संग की दिशा तय करने वाले पंडालों से कुछ हासिल नहीं होगा। एक बात याद रखिये…भजना उसी को जो न भजे किसी को। यानी सर्वशक्तिमान शिव।
विशेष…पचास किलोमीटर तक लगे जाम, सड़कों पर रेलमपेल, बीमारों की एम्बुलेंस घंटों फंसी रही, परीक्षाओं की तैयारियों के लिए निकले छात्रों के भटकाव, लोगों की ट्रैन, फ्लाइट चूकने, बच्चों, बुजुर्गों के यात्राओं में परेशान होने की संख्या तो लाखों में होगी। ये वो हैं जिनका इस कथा, पुराण से कोई लेनादेना नहीं।
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