राहुल के बहाने-दूरदर्शिता से विस्मृत होती ‘स्मृति’

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-सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का ताजा ट्वीट राहुल गांधी की एक तस्वीर के साथ है। राहुल की पहनी हुई शॉल पर ओम का निशान उल्टा दिख रहा है इसलिए शिव की आरती करते राहुल की तस्वीर को स्मृति ने उल्टा टांग दिया और लिखा कि अब ठीक है, ओम नम: शिवाय।

खैर यह बात उनके राजनीति में आने के बाद हम नहीं लिख रहे हैं, वे पहले भी मॉडलिंग और टीवी पर अभिनेत्री थीं, और उस वक्त से ये बातें खबरों में अच्छी तरह बनी हुई थीं। लेकिन किसी का इतिहास उसका पीछा तो नहीं छोड़ता है, इसलिए स्मृति ईरानी की ये बातें भी विस्मृत नहीं होती हैं, और खबरों में बनी रहती हैं।

समर्पण की उनकी आदत पुरानी और मजबूत है। वे राजनीति में आईं, तो उन्हें सोनिया-राहुल की अमेठी-रायबरेली सीटों पर झोंका गया, और वे वहीं समर्पित होकर रह गईं। उनका सारा कामकाज इन्हीं दो नेताओं और इन्हीं दो सीटों तक सीमित रह गया। आज सच तो यह है कि बिना गूगल किए हमें भी याद नहीं है कि स्मृति ईरानी किस विभाग की मंत्री हैं।

मंत्री की हैसियत से उनका पिछला काम क्या था, यह भी किसी को याद नहीं होगा। एक वक्त जरूर वे अपनी क्षमता से कई गुना अधिक की मानव संसाधन मंत्री बना दी गई थीं, और जल्द ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चूक समझ आ गई थी, और अगला मंत्रालय स्मृति ईरानी को उनकी क्षमता के मुताबिक दिया गया था, लेकिन इतने बरस मंत्री रहते हुए भी उनका कुल ध्यान इन दो संसदीय सीटों के मंत्री जितना ही रहा। उनकी ताजा ट्वीट भी इसी का एक सुबूत है कि वे कितने काम के लायक हैं।

अब अगर राहुल के ओढ़े कपड़े को उल्टा दिखाने के लिए वे महादेव की आरती को उल्टा कर सकती हैं, तो उनके गढ़े हुए इस पोस्टर को हिंदुत्व के वे सैनिक तो बर्दाश्त कर सकते हैं जो कि नाम देखकर काम की भावना तय करते हैं। अब अगर आरती के दीयों को थामे हुए राहुल की इस तस्वीर को कोई धर्मनिरपेक्ष नेता पोस्ट करते, तो अब तक उनकी मां-बहन को बलात्कार की धमकियां मिलने लगतीं।

लेकिन ये तो उनकी अपनी स्मृति ईरानी है, इसलिए किसी धमकी के खतरे की कोई बात नहीं है। इस फौज को भी मालूम है कि स्मृति ईरानी को कौन सा समर्पित काम दिया गया है, और यह फौज उनके पीछे खड़ी है।

दिक्कत सिर्फ यही है कि स्मृति ईरानी की जो कोई भी राजनीतिक संभावनाएं हो सकती थीं, उन सबको इस एक समर्पण ने खत्म कर दिया है। लोगों को याद होगा कि सोनिया गांधी के खिलाफ सिर मुंडाकर, जमीन पर सोने की संसद में घोषणा करने वाली सुषमा स्वराज का आगे बढऩा उस नफरत के चलते ही खत्म हो गया था, और जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्हें संसद के भीतर अपने से सीनियर सुषमा स्वराज को सोनिया-मंत्रालय देने की मजबूरी न रही, तो सुषमा स्वराज एकदम से हाशिए पर चली गई थीं।

घाघ नेता अपने सैनिकों को इसी तरह छोटे-छोटे मोर्चो पर झोंक देते हैं। नरेन्द्र मोदी ने स्मृति ईरानी को केंद्र सरकार में जाने कौन सा मंत्रालय दिया है और असल में अमेठी-रायबरेली का मंत्री बनाया है। यह सिलसिला राहुल-सोनिया के महत्व को बढ़ाने का है, और स्मृति ईरानी की राजनीति को सीमित समेट देने का भी है।

इसी मोदी सरकार में नितिन गडकरी जैसे दिग्गज मंत्री भी हैं जो कि घटिया बातें करने के बजाय बेहतर काम करके दिखाते हैं, और नेहरू की भी तारीफ करने का हौसला रखते हैं। लेकिन स्मृति ईरानी की चर्चा करते हुए नितिन गडकरी की बात करना गडकरी के लिए बेइंसाफी की बात होगी। जिस किसी की राजनीति एक संसदीय सीट, या उस सीट के विपक्षी नेता तक सीमित रह जाती है, वे महज एक सांसद बनने के लायक रह जाते हैं, और एक वक्त शायद ऐसा आएगा भी।

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