Pahalgam Terrorist Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
इस हमले में 27 से अधिक निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या कर दी गई।
हमले के बाद अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि न सिर्फ यह एक सुनियोजित आतंकी हमला था, बल्कि इसमें गंभीर सुरक्षा चूक भी सामने आई है।
घाटी के वरिष्ठ पत्रकार अशरफ वानी ने आज तक न्यूज चैनल पर लाइव रिपोर्टिंग के दौरान बताया कि घटना के समय दो हजार से अधिक पर्यटक एक ही पिकनिक स्पॉट पर मौजूद थे और वहां कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी।
वानी ने इसे “बहुत बड़ी सुरक्षा चूक” बताया, लेकिन जैसे ही उन्होंने ये बात सार्वजनिक रूप से कहना शुरू किया, चैनल ने उन्हें लाइव से हटा दिया।
सुरक्षा केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है। राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है। J&K पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसिया आखिर वहां पर मौजूद क्यों नहीं थी?
आतंकियों ने 25 से अधिक बेकसूरों की जान ले ली। पहले धर्म पूछा फिर गोली मार दी। जो हिंदू थे उन्हें मार दिया।
30 करोड़ भारतीय मुसलमानों से अब चंद कट्टरपंथी, सवाल कर रहे। उनसे उनका पक्ष जानना चाहते हैं।
असल में ये सब अपनी राजनीति और नफरती सोच के तहत ऐसा करते हैं।
धर्म के आधार पर आतंकियों ने कश्मीर में सैलानियों पर हमला किया, वही धर्म के आधार पर कट्टरपंथी भारत के मुसलमानों से सवाल कर रहे हैं।
मैं उन कट्टरपंथियों से कहूंगा कि उसी कश्मीर में 44 राष्ट्रीय राइफल के जवान औरंगज़ेब भी थे, जिन्हें आतंकियों ने तड़पा तड़पा के मारा था। उनके दो भाई हाल ही में भारतीय सेना में शामिल हुए हैं।
औरंगज़ेब का अपहरण तब हुआ था, जब वे ईद मनाने अपने घर जा रहे थे। औरंगज़ेब के सर और गर्दन में गोली मारने से पहले आतंकियों ने उन्हें टॉर्चर भी किया था। औरंगज़ेब मुसलमान थे।
आतंकी घटना होने के बाद सबसे पहले न्याय चाहिए होता है। लेकिन सत्ता में बैठे और हिंदू-मुस्लिम की नफरत भरी राजनीति करने वाले नेता, उन्हीं आतंकियों के जैसे हैं जो कश्मीर में धर्म पूछ कर गोली मारते हैं। ये सोशल मीडिया पर एक धर्म विशेष को टॉर्गेट करते हैं। दोनों में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता।
जिन आतंकियों ने मज़हब की पहचान पर गोली मारी है, उन्हें मारने के बजाए कट्टरपंथ से अपनी दुकान चलाने वाले नेता और उनके छुटभईये छर्रे देश के तीस करोड़ मुसलमानों को अपमानित कर रहे हैं।
सुनते जाइए हुजूर ए आला! भारत का मुसलमान संविधान और कानून को मानने वाला नागरिक है। किसी आतंकी का समर्थक नहीं।
जितना आपके भीतर देशप्रेम है, यदि कोई नापतौल वाली मशीन होती तो बराबर बैठ कर नपवा लिया जाता। एक पसंगा भी कमी न आती, हो सकता है ज़्यादा ही निकलता देशप्रेम।
इस घटना के पीछे आतंकियों का मकसद यही तो था कि हम कश्मीर में धर्म पूछ कर मारेंगे, इधर आईटी सेलिए तुरंत एक्टिव हो जाएंगे मुसलमानों को गरियाने के लिए।
कौन कामयाब हुआ? हुए न आतंकी अपने मकसद में कामयाब। नाम पूछ कर ही रेलवे सुरक्षा बल के जवान ने ट्रेन में हत्या की थी।
नाम पूछ कर ही मॉब लिंचिंग होती रहती है। नाम पूछ कर ही दंगों में दंगाई आग लगा देते हैं। पेट से बच्चों को निकाल देते हैं।
नाम और धर्म पूछ कर की गई मानवता की हत्या, के विरूद्ध मैं हमेशा था आज भी हूं। यह कायर और पिशाच हैं, जो निहत्थे लोगों पर मज़हब की आड़ में अपनी कायरता अंजाम देते हैं।
हम इनके समर्थक न कभी थे न कभी होंगे। आप अपना साइड देख लीजिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप इन पिशाचों के साइड खड़े हों। जाने अंजाने में ही सही। चेक कीजिए।
सत्ता में जो बैठे हैं उनसे सवाल कीजिए। गृहमंत्री ने आठ अप्रैल को कहा कि हमने कश्मीर से आतंकवाद को बिल्कुल खत्म कर दिया।
नोटबंदी हो या धारा 370 , सरकार ने हर मोर्चे पर यही कहा कि इससे आतंकवाद समाप्त हो जाएगा।
आखिर हमारी सीमा में, हमारे केंद्र शासित प्रदेश में, जहां की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी केंद्र के हाथ में है, इतनी विभत्स और क्रूर घटना कैसे घट गई।
जो ज़िम्मेदार हैं, उन्हें चुन चुन कर मारा जाए, उनका समूल नाश किए बग़ैर यदि सरकार चुप बैठती है, तो ऐसी कायर सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं।
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