Nobel Peace Prize Winner: नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में शुक्रवार को साल 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की गई।
इस बार का प्रतिष्ठित सम्मान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नहीं मिला।
वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो इस साल विजेता बनीं हैं।
मचाडो को उनके देश में लोकतंत्र की बहाली, मानवाधिकारों की रक्षा और तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया है।
नोबेल समिति ने कहा कि मारिया कोरिना मचाडो ने अपने देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मशाल जलाई रखी।
जब पूरी दुनिया में अधिनायकवाद का विस्तार हो रहा है और लोकतंत्र कमजोर पड़ रहा है, ऐसे समय में मचाडो जैसे साहसी लोग दुनिया को उम्मीद देते हैं।
लोकतंत्र की ‘आयरन लेडी’ मचाडो का संघर्ष
वेनेज़ुएला की 57 वर्षीय मारिया कोरिना मचाडो को देश की ‘आयरन लेडी’ कहा जाता है।
उन्होंने सालों तक राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सत्तावादी नीतियों के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष किया।
मचाडो ने देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए सुमाते (Súmate) नामक संगठन की स्थापना की, जो चुनावी पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के लिए काम करता है।
वेनेज़ुएला की जनता को संगठित कर उन्होंने तानाशाही शासन के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन खड़ा किया।
2024 के चुनावों से पहले वे विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित की गई थीं, लेकिन सरकार ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी।
इसके बाद भी उन्होंने लोकतंत्र की लड़ाई जारी रखी और विपक्षी उम्मीदवार एडमुंडो गोंजालेज़ उर्रुतिया का समर्थन किया।
मचाडो की पार्टी ने चुनाव में भारी जीत दर्ज की, पर शासन ने परिणाम मानने से इंकार कर दिया और सत्ता पर कब्जा बनाए रखा।
नोबेल समिति के अनुसार, मचाडो ने नोबेल के तीन प्रमुख मानदंडों — लोकतंत्र की रक्षा, सैन्यीकरण के विरोध और नागरिक अधिकारों के समर्थन — को पूरा किया है।
नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने मचाडो की तारीफ करते हुए कहा, मचाडो ने अपने जीवन को खतरे में डालकर भी अपने देश में रहना चुना।
जब सत्ता भय और हिंसा के ज़रिए जनता को दबाती है, तो ऐसे में जो लोग चुप रहने से इनकार करते हैं, वही लोकतंत्र के सच्चे रक्षक हैं।
उन्होंने लाखों लोगों को यह विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष व्यर्थ नहीं होता।
नोबेल समिति ने कहा कि लोकतंत्र, शांति की बुनियाद है। और जब इसे कुचला जाता है, तो मचाडो जैसे साहसी लोग दुनिया को प्रेरणा देते हैं।
जानें कौन हैं मारिया कोरिना मचाडो?
मारिया कोरिना मचाडो का जन्म 7 अक्टूबर 1967 को हुआ था। वे औद्योगिक इंजीनियर हैं और शुरू में बिजनेस में सक्रिय रहीं।
1992 में उन्होंने अटेनिया फाउंडेशन की स्थापना की, जो काराकास में सड़कों पर रहने वाले बच्चों की मदद करता है।
2010 में वे नेशनल असेंबली की सदस्य चुनी गईं और सबसे अधिक मतों से जीतीं।
लेकिन 2014 में निकोलस मादुरो की सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया।
इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और विपक्षी पार्टी वेंटे वेनेज़ुएला का नेतृत्व संभाला।
2017 में उन्होंने सोय वेनेज़ुएला गठबंधन बनाया, जिसने लोकतंत्र समर्थक दलों को एकजुट किया।
2024 में मचाडो को यूरोपीय संघ के सर्वोच्च मानवाधिकार पुरस्कार ‘सखारोव अवॉर्ड’ से भी सम्मानित किया गया था।
ट्रंप को झटका, दावे रह गए अधूरे
दूसरी ओर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीद थी कि इस बार वे नोबेल शांति पुरस्कार जीतेंगे।
उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में 8 युद्धों को रोकवाया, गाजा में सीजफायर डील कराई और मध्य पूर्व में अब्राहम समझौते के ज़रिए शांति स्थापित की।
ट्रंप को इजरायल, पाकिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, माल्टा और अमेरिका सहित 8 देशों ने नोबेल के लिए नॉमिनेट किया था। लेकिन नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी ने उन्हें इस बार के लिए नहीं चुना।
कारण यह रहा कि ट्रंप ने 20 जनवरी 2025 को दोबारा राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, जबकि नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी थी।
यानी उनके पास सिर्फ 11 दिन थे और उस दौरान उन्होंने ऐसा कोई बड़ा शांति कदम नहीं उठाया जिसे मानदंडों में शामिल किया जा सके।
नोबेल समिति की सदस्य नीना ग्रेगर ने कहा, गाजा सीजफायर या किसी राजनीतिक समझौते का असर इस साल के निर्णय पर नहीं होगा।
अगर यह शांति स्थायी साबित होती है, तो अगले वर्ष ट्रंप की दावेदारी मजबूत हो सकती है। ट्रंप समर्थक संगठनों ने नाराज़गी जताई है।
रिपब्लिकन ज्यूइश कोएलिशन (RJC) ने तो यह तक कहा कि नोबेल पुरस्कार का नाम ट्रंप के नाम पर रखा जाना चाहिए।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने X (ट्विटर) पर लिखा – ट्रंप इस सम्मान के हकदार हैं।
लेकिन नोबेल समिति ने स्पष्ट किया कि पुरस्कार किसी भी राजनीतिक दबाव में नहीं दिया जाता।
जानें नोबेल पुरस्कार कैसे मिलता है ?
नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल ने 1895 में की थी, जो डायनामाइट के आविष्कारक थे।
उन्होंने अपनी वसीयत में तय किया था कि उनकी संपत्ति से हर साल उन लोगों को पुरस्कार दिया जाए जिन्होंने मानवता की भलाई और शांति के लिए काम किया हो।
नामांकन प्रक्रिया हर साल 1 फरवरी से शुरू होती है और 31 जनवरी तक चलती है। कोई भी सांसद, प्रोफेसर या पूर्व विजेता किसी व्यक्ति या संगठन को नॉमिनेट कर सकता है।
इसके बाद नॉर्वे की संसद द्वारा चुनी गई 5 सदस्यीय नोबेल कमेटी सभी नामों की जांच करती है और योग्य उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्ट बनाती है।
फरवरी से सितंबर तक विशेषज्ञों की मदद से हर नाम की जांच होती है। अक्टूबर की शुरुआत में गोपनीय बैठक के बाद विजेता तय किया जाता है।
घोषणा अक्टूबर के पहले शुक्रवार को और पुरस्कार समारोह 10 दिसंबर (अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि) को ओस्लो में आयोजित होता है।
1901 से अब तक नोबेल शांति पुरस्कार 141 बार दिया जा चुका है। 111 व्यक्तियों और 30 संगठनों को यह सम्मान मिला है।
भारत से अब तक दो लोगों को यह पुरस्कार मिला है —
1- मदर टेरेसा (1979) – गरीबों और बीमारों की सेवा के लिए।
2 – कैलाश सत्यार्थी (2014) – बाल मजदूरी और शोषण के खिलाफ अभियान के लिए।
महात्मा गांधी को 1937 से 1948 के बीच पांच बार नॉमिनेट किया गया था, लेकिन हर बार वे यह सम्मान पाने से चूक गए।
1948 में उनकी हत्या के कारण नोबेल समिति ने उस वर्ष किसी को भी यह पुरस्कार नहीं दिया।
नोबेल शांति पुरस्कार 025 के साथ मारिया कोरिना मचाडो इतिहास में दर्ज हो गई हैं।
उन्होंने न केवल तानाशाही के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध का प्रतीक प्रस्तुत किया, बल्कि यह भी साबित किया कि लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले व्यक्ति को कोई सत्ता नहीं रोक सकती।
मचाडो ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे लिए नहीं, बल्कि उन सभी वेनेज़ुएलावासियों के लिए है जो बिना डर लोकतंत्र का सपना देखते हैं।
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