क्या नीतीश कुमार गोडसे समर्थक हैं ? सत्ता के लिए लोहिया, गांधी को छोड़ा।

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धोबी पछाड़ के बाद पीके बोले-नीतीश मेरे पिता समान, विचारधारा में विरोध के कारण
जद यू छोड़ा, पर नीतीश का सम्मान है, रहेगा

नई दिल्ली। चुनावी कौशल के उस्ताद प्रशांत किशोर इस बार खुद पटखनी खा चुके हैं। मुकाबला राजनीति में धोबीपछाड वाले नीतीश कुमार से जो था। नीतीश कुमार वो पहलवान है, जिसने जॉर्ज फर्नांडीज़, लालू यादव, नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी सहित कई सूरमाओ कोधूल चटा चुके हैं। उनके साथ रहकर भी प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के थाह नहीं पा सके। हालांकि कोई भी नीतीश को जानने, समझने का दावा करता है तो उसे सच मानना बहुत बड़ी गलती हे होगी।

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कहना है कि जेडीयू से निकाले जाने के बाद भी वे पार्टी मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सम्मान करते हैं। उन्होंने यह बात कही. प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार ने उन्हें बेटे की तरह रखा। उनका यह भी कहना था कि उन्हें पार्टी में रखना या न रखना जेडीयू मुखिया का अधिकार था।

हाल तक जेडीयू के उपाध्यक्ष रहे प्रशांत किशोर ने आपसी मतभेदों की वजह भी बताई. उनका कहना था, ‘पहली वजह विचारधारा को लेकर है। नीतीश जी का कहना है वे गांधी, जेपी और लोहिया को और उनकी बातों को नहीं छोड़ सकते , लेकिन मेरे मन में यह दुविधा रही कि कोई अगर ऐसा सोचता है तो वह उस समय गोडसे के साथ खड़े होने वाले और उनकी विचारधारा के लोगों के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं ,भाजपा के साथ उनके रहने पर कोई गुरेज नहीं, ,लेकिन दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकती ,उनकी अपनी सोच है और मेरी अपनी सोच है. गांधी और गोडसे साथ नहीं चल सकते।

प्रशांत किशोर ने आगे कहा, ‘दूसरी वजह जेडीयू और नीतीश कुमार की गठबंधन में पोजिशन को लेकर है। . नीतीश कुमार पहले भी भाजपा के साथ थे और अब भी हैं. लेकिन दोनों में बहुत फर्क है। नीतीश कुमार पहले बिहार की शान थे। बिहार के लोगों के नेता थे। आज वो 16 सांसद लेकर गुजरात का कोई नेता बताता है कि आप ही नेता बने रहिए. बिहार का मुख्यमंत्री यहां के लोगों का नेता है. आन-शान है। कोई मैनेजर नहीं है. कोई दूसरी पार्टी का नेता नहीं बताएगा कि वे हमारे नेता हैं. हम लोग सशक्त नेता चाहते हैं, जो पूरे भारत और बिहार के लिए अपनी बात कहने के लिए किसी का पिछलग्गू ना बने ,

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