राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में तो योगदान दिया ही, इसके अलावा उनके जीवन के कई ऐसे पहलू हैं, जो अब सामने आ रहे हैं। महेंद्र प्रताप सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी को भी 1957 के आम चुनाव में परास्त किया था, अब उत्तरप्रदेश में उनके नाम से यदि जाट वोट मिलेंगे तो भाजपा की जीत की गारंटी हो जायेगी।
लखनउ। उत्तरप्रदेश में इस वक्त शह और मात का खेल तेज़ी से चल रहा है। इस वक्त भाजपा ने जीत की गारंटी वाले नामों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया है।
इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, राजा महेंद्र प्रताप सिंह। जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले महेंद्र प्रताप सिंह भाजपा की जीत की बड़ी ताकत बन सकते हैं। महेंद्र प्रताप सिंह उत्तरप्रदेश की राजनीति में सम्मानीय नाम है।
इनके बारे में जानकारी आपको कई बार चौंकाएंगी। महेंद्र प्रताप सिंह अभी तक बड़ी चर्चा में नहीं रहे हैं। पर भाजपा ने उन्हें केंद्र बिंदु में ला दिय है।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म एक दिसंबर 1886 को हुआ था। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत के राजा थे। जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती अपने क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में होती थी।
उनका विवाह जिंद रियासत की बलबीर कौर से हुआ था। उनकी बरात के लिए हाथरस से संगरूर के बीच दो विशेष ट्रेनें चलाई गई थीं।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी। इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट नहीं था। उन्होंने अफगान सरकार के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वासित हिंद सरकार का गठन किया था।
हिंदुस्तान को आजाद कराने का यह देश के बाहर पहला प्रयास था। अंग्रेज सरकार से पासपोर्ट मिलने की बात संभव ही नहीं थी। उनके पास अफगानिस्तान सरकार का पासपोर्ट था।
राजा महेंद्र प्रताप की आत्मकथा ‘माय लाइफ स्टोरी’ को संपादित करने वाले डॉ. वीर सिंह के मुताबिक, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदुस्तान छोड़ने से पहले देहरादून के डीएम कार्यालय के जरिए पासपोर्ट बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन एक अखबार में जर्मनी के समर्थन में एक लेख लिखने के कारण पासपोर्ट बनाने में बाधा पैदा हुई थी।
इसके बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने समुद्र मार्ग से ब्रिटेन पहुंचने की योजना बनाई। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सोवियत संघ, जापान, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की जैसे देशों की यात्रा की। 1946 में वे शर्तों के तहत हिंदुस्तान वापस आ सके।
अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लड़ा था चुनाव
957 के आम चुनाव में तो राजा महेंद्र प्रताप ने अटल बिहारी वाजपेयी को करारी शिकस्त दी थी। इस चुनाव में मथुरा लोकसभा सीट से राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने चुनाव लड़ा था।
इस चुनाव में लगभग 4 लाख 23 हजार 432 वोटर थे। इनमें 55 फीसदी यानी लगभग 2 लाख 34 हजार 190 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। उस वक्त 55 फीसदी वोट पड़ना बड़ी बात होती थी।
इस चुनाव में जीते निर्दलीय प्रत्याशी राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारतीय जन संघ पार्टी के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत तक जब्त करा दी थी। नियमानुसार कुल वोटों का 1/6 वोट नहीं मिलने पर जमानत राशि जब्त हो जाती है।
अटल बिहारी वाजपेयी को इस चुनाव में 1/6 से भी कम वोट मिले थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप को सर्वाधिक वोट मिले और वह विजयी हुए थे। इसके बाद राजा ने अलीगढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जनता का जबरदस्त विरोध सहना पड़ा था।
कांग्रेस के साथ शुरुआत से ही नहीं बनती थी बात जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति में जर्मनी और जापान मित्र देश नहीं रहे थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इन देशों से मदद मांगकर आजादी की लड़ाई शुरू की थी। ऐसे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को शुरू से ही कांग्रेस में बहुत ज्यादा तरजीह नहीं मिली।