सुनील कुमार (संपादक डेली छत्तीसगढ़ )
अभी कुछ महीने पहले तक किसने सोचा था कि एक ऐसा दिन आएगा कि लोगों के पास 40 दिनों से अधिक का वक्त खाली रहेगा, करने को कुछ नहीं रहेगा, घर बैठे लोग काम पर लौटने को तरस जायेंगे। लेकिन ऐसा दिन न सिर्फ आ चुका है बल्कि आधे से अधिक दिन गुजर चुके हैं। अब अगर लॉकडाउन और भी आगे नहीं बढ़ता है तो भी लोग अपनी जिंदगी का इतना बड़ा वक्त बर्बाद कर चुके हैं कि जितना किसी ने कभी सोचा ना होगा। लेकिन लॉकडाउन के ठीक पहले तक कामयाब लोगों का यही रोना रहता था कि उनके पास वक्त नहीं है। अब जब वक्त ही वक्त है तो क्या कर ले रहे हैं?
अभी भी दस दिन तो बाकी हैं ही, अगर चाहें, तो अपने पास बिना पढ़े रखी किताबें पढ़ सकते हैं, या दोस्त आपस में अपने पास की किताबों के नाम बाँट सकते हैं। एक-दूसरे से लेकर पढ़ सकते हैं। एक दूसरे को फूहड़ लतीफों और पोर्नो से अलग कुछ अच्छे लेख, इंटरव्यू के लिंक भी भेज सकते हैं। बहुत से लोगों के पास वाईफाई है, वे चुनिन्दा फिल्में देख सकते हैं। इंटरनेट से दुनिया के महान लोगों के व्याख्यान सुन सकते हैं।
ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि बुजुर्ग कह गए हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर। जो मकान खंडहर हो जाते हैं, वहां मुजरिम अड्डा बना लेते हैं। इसलिए अपने वक्त का अच्छा इस्तेमाल करना मकसद चाहे ना हो, कम से कम उसका बुरा इस्तेमाल ना हो जाये यह ख्याल तो रख लेना चाहिए। जो लोग कुछ लिख पाते हैं, उनको अपनी आत्मकथा लिखना शुरू करना चाहिए, फिर चाहे वह कतरा-कतरा ही क्यों ना हो।
छत्तीसगढ़ के एक बुजुर्ग कारोबारी हैं जो फेसबुक पर सक्रिय भी हैं। वे अपनी आत्मकथा के अंश लिखकर पोस्ट करते रहते हैं, लोगों की प्रतिक्रिया भी मिलती रहती है, और लिखने का काम भी निपटते रहता है। कारोबारी फायदा यह है कि अच्छे लिखे के खरीददार भी तैयार होते चल रहे हैं! जब किताब छापेंगे खरीददार इंतजार करते मिलेंगे!
यह वक्त लोगों को पुराने कागजात छांटने के लिए भी अच्छा मिला है, और कागजात में से फिजूल को निकलकर फेंकने का भी। घर के फालतू सामान, बेकार के कपड़े, जूते, बैग निकालने का भी अच्छा मौका है। अपना बोझ कम हो, औरों की जरूरत पूरी हो, और दूसरों की इन सामानों की जरूरत के लिए धरती पर बोझ बढऩे से बचे।
जिन किताबों को दुबारा ना पढऩा हो, उन्हें दूसरों को देने के त्याग के बारे में भी सोचना चाहिए ताकि किताब छपने में जिस पेड़ की जिंदगी गई, उसके बलिदान का बेहतर, अधिक, इस्तेमाल भी हो जाये। बच्चे बड़ों का मोह छुड़वाएं, बड़े बच्चों का। लॉकडाउन खत्म होने तक घर का कबाड़ कम हो, बांटने के लिए लॉकडाउन खुले के दिन दूसरों के काम आ सकें इसकी तैयारी करके रखना चाहिए।
जिंदगी में जब थोपा हुआ खाली वक्त छप्पर फाड़कर आया है, ऐसे में यह सावधानी भी बरतनी चाहिए कि इसका बुरा इस्तेमाल ना हो जाये। ठलहा बैठे लोग किसी ना किसी की बुराई करने में जुट जाते हैं, व्हाट्सएप्प पर किसी के बारे में बुरा भेजने लगते हैं, फेसबुक-ट्विटर पर नफरत, हिंसा, और गंदगी फैलाने लगते हैं।
याद रखें कि सोशल मीडिया या मैसेंजर पर एक बार का लिखा हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है। कर्नाटक के एक नौजवान भाजपा सांसद ने बरसों पहले खाड़ी के देशों की महिलाओं की सेक्स लाइफ के बारे में गंदी बातें लिखी थीं, वे आज सामने आकर उनका मुंह चिढ़ा रही हैं। आज के खाली वक्त में ऐसा कुछ ना करें कि आपका परिवार बाकी जिंदगी आपकी वजह से शर्मिंदगी झेले, जेल में टिफिन लेकर आये। आज का यह अंतहीन खाली वक्त बहुत अच्छी संभावनाओं और बहुत बुरी आशंकाओं, दोनों को लेकर आया है। जिंदगी में दुबारा शायद इतना टोकरा भरकर वक्त ना मिले, पिछली बार ऐसा वक्त 102 बरस पहले आया था, इसलिए सोच-समझकर इसका अच्छा इस्तेमाल करें, और अच्छा ही इस्तेमाल करें। शुभकामनायें।
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