महाराष्ट्र के बाद मध्यप्रदेश के किसान भी मंदसौर गोलीकांड
से अब तक हैं, आहत, बेटे की मौत से नाराज पिता की पीड़ा
भोपाल. महाराष्ट्र के किसान आंदोलन ने मध्यप्रदेश में भी सरकार के सामने चिंता कड़ी कर दी हैं. किसानों का एक बड़ा वर्ग अभी भी शिवराज सरकार से नाराज़ है. चुनावों में इसका असर वोट पर दिखाई दे सकता है. मध्यप्रदेश में बीते साल किसान आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में मारे गए किसानों का मुद्दा बीजेपी के लिए लिए इस साल होने वाले चुनावों में भारी मुश्किल खडी कर सकता है। शिवराज सरकार ने मृत किसानों के परिवारों को एक करोड रुपए का मुआवजा और एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी लेकिन सरकार का यह पैंतरा भी बीजेपी को वोट नहीं दिला सकेगा। खुद परिजन ही बोल रहे हैं कि भले ही सरकार ने हादसे के बाद उनके परिवार को राहत दी हो लेकिन उनका बेटा कभी लौट कर वापस नहीं आ सकता। बीते चुनाव में उन्होनें बीजेपी को वोट दिया था लेकिन इस बार उनका वोट बीजेपी को हरगिज़ नहीं जाएगा.
बीते साल जून महीने में किसान आंदोलन के दौरान मंदसौर में पुलिस फायरिंग से 6 किसानों की मौत हो गई थी। मातम पुर्सी और प्रायश्चित के नाम पर मृतकों के परिजनों को सरकार ने आनन-फानन में एक-एक करोड का मुआवजे और परिवारजन को सरकारी नौकरी देने वादा किया। सरकार ने परिजनों की मांग पर यह भी वादा किया था कि दोषी पुलिसवालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा और मृतकों को शहीद का दर्जा दिया जाएगा। सरकार ने पीडित परिवारों को मुआवजा और नौकरी तो दे दी लेकिन कातिलों को सजा और मृतकों को शहीद का दर्जा आज तक नहीं दिया गया।
मंदसौर से करीब 20 किलोमीटर दूर बरखेडा पंथ में रहने वाले दिनेश पेशे से किसान है। उनके पास 28 बीघा जमीन है। किसानों को फसल का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा था। इन्हीं मांगों को लेकर किसान आंदोलन के वक्त उन्होनें अपने बेटे अभिषेक को भी आंदोलन में हिस्सा लेने पार्श्वनाथ बही चौराहे पर गांव के बाकी किसानों के साथ भेजा था। वहां पुलिस फायरिंग में अभिषेक की मौत हो गई थी। दिनेश के घर पर मृत किसानों की तस्वीरों के साथ शहीद लिखा एक पोस्टर टंगा हुआ है। दिनेश इसी पोस्टर के नीचे कुर्सी पर बैठे टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। अभिषेक के पिता दिनेश की आंखों के सामने बेटे की तस्वीर ओझल होने का नाम नहीं लेती।
फसलों की कीमत नहीं मिल रही
दिनेश कहते हैं कि 6 किसानों की मौत के बावजूद किसानों के मुद्दे आज 9 महीने बाद भी जस के तस बने हुए हैं। अभिषेक के पिता दिनेश का कहना है कि हमारे 6 लोगों की बलि लेने के बाद आज भी सरकार हमें अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं दिला पा रही है। 5 साल पहले फसलों का दाम इतना मिल रहा था कि कम से कम लागत निकल जाती थी और घर चलाने के लिए थोडा मुनाफा मिल जाता था लेकिन बीते कुछ सालों से खेती की लागत भी नहीं निकल पा रही है। उत्पादन भले ही बढा हो लेकिन दाम आधे हो गए हैं। सरकार को शर्म करना चाहिए ‘उत्पादन के नाम पर अवार्ड लेने वाली सरकार को इस साल चुनाव में किसान अपना वोट अवार्ड देगें। ’
भावांतर सिर्फ मज़ाक
अभिषेक सहीत 6 किसानों की जान जाने के बाद हाल ही में जो फसल उन्होनें ली है उसका दाम भी लागत से कम मिला है। लहसून का भाव एक हजार से ढाई हजार के बीच है लेकिन उसकी लागत 4 से 5 हजार है। शिवराज सिंह ने भले ही उन्हें एक करोड का मुआवजा दिया हो, बडे बेटे को नौकरी दी हो लेकिन उनका बेटा इस दुनिया में हमेशा-हमेशा के लिए खो चुका है, वह कभी लौट कर वापस नहीं आ सकेगा। जिन मांगों के कारण किसान आंदोलन किया गया था वे आज भी जहां की तहां खडी है। भावातंर योजना महज मजाक है।
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