प्रदेश के नए मुखिया कमलनाथ के स्थानीय युवाओं
को सत्तर फीसदी नौकरी देने के एलान को विपक्ष ने
साजिशन बनाया क्षेत्रवाद का मुद्दा, जबकि कमलनाथ
ने ऐसा कहा ही नहीं, जो प्रचारित किया गया
भोपाल। हार को स्वीकारना बड़ी कला है। इस कला के ज्ञाता ख़त्म होते जा रहे हैं। खासकर राजनीति में हार को स्वीकारने का माद्दा ही नहीं बचा। अपनी हार को छोटा दिखाने को जीतने वाले पर ओछे प्रहार की एक कला पिछले दस सालों में खूब विकसित हुई है। एक और कला पिछले पांच साल में खूब फली-फूली. वो है, झूठ चबेना, झूठ ही भोजन। बुधवार को मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ भी ही ऐसी एक कला के शिकार होते दिखे। उनकी 70 फीसदी नौकरी प्रदेश के युवाओं को देने की घोषणा को एक अलग ही रुख दे दिया गया।
सोशल मीडिया पर इसे उत्तरप्रदेश, बिहार और दूसरे राज्यों के युवाओं को नौकरी से रोकने वाला फैसला बताया गया। जबकि कमलनाथ ने अपने भाषण में साफ़
कहा था कि स्थानीय युवाओं को मौका मिलना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि बाहर से आने वाले युवाओं की मैं आलोचना नहीं करता, पर पहला हक़ हमारे युवाओं को मिलना चाहिए। इससे ज्यादा ताकत से अपने युवाओं के बारे में बात कहने का साहस किसी मुखिया ने नहीं किया।
विपक्ष और एक परिवार जिसकी शाखाएं पिछले 15 वर्षों में खूब पोषित हुई, ने अपने अफवाह नेटवर्क से एक झूठ को नेशनल मुद्दा बना दिया। तमाम टीवी चैनल भी बिना कुछ जांचें, परखे कूद पड़े बहस में। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में सस्ती जमीन और सुविधाओं का लाभ उन्ही उद्योगों को मिलेगा जो स्थानीय युवाओं को 70 फीसदी रोजगार देंगे। इसमें क्या गलत है ? अब तक सरकारें एक रुपये स्क्वेअर फ़ीट के भाव
में जमीन बाटती रही है। इंदौर में चार से ज्यादा ग्लोबल समिट मुफ्त में जमीनें उद्योगपतियों को दी गई। इसमें से न तो कोई उद्योग लगे न रोजगार मिला. आखिर प्रदेश क्यों अपनी सम्पदा ऐसे लुटाये। जरुरी है युवाओं को रोजगार, प्रदेश को समृद्धि और उसका हक़ मिले। प्रदेश के युवा संगठनों को कमलनाथ की 70 फीसदी रोजगार के सोच के लिए उनका सम्मान करना चाहिए। आखिर क्यों युवाओं के रोजगार मिलने पर इतना हल्ला मचा है? दूसरे राज्यों में वोट हासिल करने के लिए क्या हमारे राजनीतिक दल अपने ही युवाओं के खिलाफ काम करेंगे ?
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