दो ‘सठियाये’ नेताओं की जिद ले डूबी कांग्रेस को !

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ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो किया सही किया, आखिर वो कब तक सहते
अभी भी कांग्रेस नहीं सम्भली तो 50 से ज्यादा विधायक दे सकते हैं इस्तीफा

पंकज मुकाती( राजनीतिक विश्लेषक )
कांग्रेस मध्यप्रदेश में भी खत्म हो गई। सत्ता खुद कुर्बान कर दी। आत्महत्या इसे ही कहते हैं। केंद्रीय नेतृत्व की बात करना का मतलब है अपना वक्त जाया करना। कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व हो रहा ही नहीं। प्रदेश में पूरी सत्ता के सूत्र सिर्फ दो नेताओं ने अपने पास रखे। कमलनाथ और दिग्विजय। आखिर 70 पार के इन नेताओं पर इतनी निर्भरता क्यों? कमलनाथ तो ठीक हैं।

वे राजनीति के बाज़ार में ज़िंदा हैं। पर दिगिवजय ? क्यों? एक ऐसा नेता जिसने मध्यप्रदेश में कांग्रेस जनता से नजरें मिलाने लायक नहीं छोड़ा। जिसने केंद्र में कांग्रेस की फजीहत कराइ। जिस दिग्विजय के कारन गोवा मे कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। राहुल का ‘पप्पू’ नामकरण भी उसी दौर में हुआ जब राहुल के चाणक्य दिग्विजय बने हुए थी। मध्यप्रदेश में इन दो सठियाये (साथ साल के ऊपर के ) नेताओं के कारण आज कांग्रेस फिर खात्मे पर खड़ी है।

क्यों ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस तरह से दूध में मक्खी की तरह साजिशन बाहर किया गया। ये साजिश क्यों ? क्यों कमलनाथ जो जिंदगी में सब कुछ हासिल कर चुके हैं, युवा सिंधिया को नहीं पचा सके। दिग्विजय सिंह की राजनीति हमेशा से ही स्व केंद्रित रही। दिग्विजय ने अपने करीबियों (राजनीति और बिज़नेस दोनों में ) को फायदा पहुंचाने के अलावा कभी कुछ नहीं किया।

जब दिग्विजय के बेटे जयवर्धन, उनके करीबी जीतू पटवारी (जो मसखरे, विदूषक सरीखे ) प्रियव्रत सिंह ,हनी सिंह बघेल और फेहरिस्त लम्बी हैं…. को मंत्री बनाकर बड़े ओहदे विभाग दिए जा सकते हैं, तो सिंधिया को क्यों इतना इग्नोर किया गया। क्या सिंधिया इन एक या दो बार चुनाव जीते नेताओं से भी कमतर हैं? आखिर कब तक दिगिवजय पानी राघोगढ़ की दीवानी का बदला ग्वालियर के किले से लेते रहेंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया को भी दिग्विजय ने हमेशा रोका। अब वे ज्योत्रिदित्य को ख़तम करने पर आमादा है। जब आम जनता इसे समझ रही थी तो कमलनाथ क्यों नहीं समझे ? क्या कमलनाथ वाकई इतने कमजोर हैं, या वे भी दिग्विजय के साथ इस साजिश में शामिल रहे।

दिग्विजय और कमलनाथ दोनों अपनी ज़िंदगी की पूरी राजनीति जी चुके। पर उम्र के इस मोड़ पर असुरक्षा बढ़ जाती है। जिसे हमें ओछापन भी कह सकते हैं। सिंधिया लोकसभा चुनाव हारे उसके बाद उनका कद कांग्रेस ने और काम किया। पर चुनाव तो दिग्विजय भी भारी मतों से हारे।

पूरी कांग्रेस ही लोकसभा में हार गई। फिर किस मुंह से दिग्विजय और कमलनाथ युवा नेताओं और अपने प्रतिदुंदियों को ठिकाने लगाते रहे। जब सिंधिया ने विरोध जताया तो उसको गंभीरता से लेने के बजाय मजाक उड़ाया गया। कमलनाथ ने उन्हें खुली चुनौती दी, चाहे तो विरोध में सड़क पर उतर जायें।

दिग्विजय और कमलनाथ के कहने पर सोनिया गान्धी ने भी ज्योतिरादित्य से किनारा कर लिया। अब जब सिंधिया ने अपना रास्ता चुन लिया, दोनों अपने वरिष्ठों को बता दिया कि वे सड़क पर उतरने और खुद को साबित करने के पूरी क्षमता रखते हैं। जरुरी है कांग्रेस दिग्विजय से मिलती हार तो समझे,वरना कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों की संख्या पचास को पार कर सकती है।

 

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