आखिर कितना गिरेंगे सिंधिया…. ‘खून से रंगे हाथ’ वाले शिवराज आज देवता हो गए
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आखिर कितना गिरेंगे सिंधिया…. ‘खून से रंगे हाथ’ वाले शिवराज आज देवता हो गए

 

सिंधिया के वफादार भुगत रहे सजा

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा पहुंचकर अपनी राजनीति के छह साल ज़िंदा कर लिए पर उनके साथ विधायकी छोड़कर भाजपा में आये समर्थक अपना राजनीतिक जीवन आंखों के सामने खत्म होते देख रहे हैं, क्योंकि सिंधिया के लिए गूंज रहा ‘गद्दार’ इन सभी वफादारों पर भी उपचुनाव में भारी पड़ रहा

पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )

ग्वालियर के सिंधिया घराने पर एक बार फिर ‘गद्दार’ चस्पा हो गया है। आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेज़ों की तरफदारी के लिए आज तक इतिहास में वे गद्दार के तौर पर दर्ज हैं। आज़ाद भारत में उनकी दादी और पिता ने अपने परिश्रम से इसे धोया। पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने महल की दीवारों पर फिर वही गद्दार चस्पा कर दिया।

आज ज्योतिरादित्य भाजपा के झंडे तले प्रदेश में जहां जा रहे ‘सिंधिया गद्दार’ के नारे गूंज रहे हैं। ऐसे में सिंधिया के भरोसे विधायकी छोड़कर आये विधायक घबराये हुए हैं। खुद सिंधिया बौखलाहट में, अब कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को गद्दार कहकर अपनी खीझ निकाल रहे हैं।

आखिर सिंधिया इस राजनीति में कितना नीचे जाएंगे? जनता उनकी किस बार पर भरोसा करे और क्यों ? आज से कुछ महीने पहले तक वे जिस शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश के किसानों का खूनी कहते हुए नहीं थकते थे वे आज उनके साथी हैं। बड़े ही तीखे अंदाज़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंचों से कहा था कि शिवराज सिंह चौहान के हाथ खून से रंगे हैं, आज वे उसी शिवराज को जनता पुजारी बता रहे हैं। क्यों ?

सिंधिया ने ही मंदसौर जिले में किसानों पर हुई गोलीबारी पर कहा था कि जलियांवाला बाग़ के बाद आज़ाद भारत में यदि जनता पर कोई नरसंहार हुआ है, तो वो शिवराज सरकार ने मंदसौर के पिपलिया मंडी में किया है। यानी सैकड़ों भारतीयों की जान लेने वाले जनरल डायर की तुलना शिवराज से सिंधिया ने की। अब वही शिवराज को सिंधिया एक विकासपुरुष बता रहे हैं। आखिर जनता क्यों आपकी बात माने? शायद इसीलिए वे गद्दार कहे जा रहे हैं। गद्दारी सिर्फ कांग्रेस से ही नहीं अपने आप से, अपने जमीर से भी कर रहे हैं सिंधिया ?

सिंधिया ने तो खुद को सेफ कर लिया, वफादार खतरे में

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आये 22 विधायकों को अपनी वफादारी के सजा मिलती दिख रही हैं। उपचुनाव में ये जनता के बीच खुद को सहज नहीं महसूस कर रहे हैं। इनको अपने क्षेत्र में गद्दारी का जवाब देना महंगा पड़ रहा है।

सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी तब वे शून्य थे, सांसद का चुनाव हार चुके थे, पर उनके साथ आये समर्थक विधायक और मंत्री थे। सिंधिया ने तो अपने हिस्से की राज्यसभा की सीट बिना मैदान जाए बैक डोर से सेफ कर ली।

उनके समर्थकों को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वे समझ नहीं पा रहे जनता को क्या जवाब दें ? कल तक जिस भाजपा को कोसते रहे उसके झंडे तले वोट कैसे मांगे। उपचुनाव में खुद को हारते देख कई प्रत्याशी अपना राजनीतिक जीवन ख़त्म होते देख रहे हैं।

अपने पिता के उसूल भी तोड़े

अपना पहला चुनाव जनसंघ के बैनर तले लड़ने वाले ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने जब उसे छोड़ा तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा। तमाम मतभेदों के बावजूद वे कांग्रेस में बने रहे। कांग्रेस भी उन्हें विचारधारा वाला प्रतिबद्ध नेता मानते हैं।

1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी पर उस दौर में उन्होंने अपने सोच को ज़िंदा रखा। भाजपा का दामन थामने के बजाय सिंधिया ने मध्यप्रदेश विकास पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा और जीते भी। उनका रुतबा और हैसियत ऐसी थी कि भाजपा ने उनके खिलाफ 1996 में कोई उम्मीदवार ही मैदान में नहीं उतारा।

1999 में वे कांग्रेस से सांसद बने। यही कारण है कि माधवराव सिंधिया आज भी राजनीति में एक सम्मानीय नाम है। ज्योतिरादित्य ने ये अवसर खो दिया। अब उनपर अवसरवादी के साथ गद्दार की भी मुहर लग गई।

 

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