-रणनीति या फंस रहे भाजपा के जाल में
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के नाम का जिन्न एक बार फिर निकल आया है।
पिछले दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना का नाम पटेल, नेहरू और गांधी के साथ लिया था।
उन्होंने कहा था कि इन सभी ने एक ही कॉलेज से बैरिस्टरी की और देश को आजाद कराने में योगदान दिया था।
उनके इस बयान के बाद से विवाद छिड़ गया था और जिन्ना का नाम लिए जाने पर भड़की भाजपा ने उनकी मानसिकता को तालिबानी बता दिया था।
खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस पर हमला बोलते हुए कहा था कि भारत में जिन्ना वाली सोच नहीं चलेगी।
जिन्ना को लेकर दिए बयान पर अखिलेश यादव के घिरने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि ऐसा करके उन्होंने भाजपा के हाथों में ध्रुवीकरण के लिए एक मुद्दा दे दिया है।
लेकिन बुधवार को अखिलेश यादव के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ने भी जिन्ना की तारीफ करते हुए कहा कि वह यदि देश के पहले पीएम बन गए होते तो बंटवारा नहीं होता।
उन्होंने अखिलेश के बयान को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में यह बात कही।
अब सवाल उठ रहा है कि क्या बार-बार जिन्ना का जिक्र किया जाना अखिलेश यादव और उनके साथियों की चूक है या फिर वोट बटोरने की रणनीति है?
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