अंतर्कथा इंदौर .. 4-2 = मेंदोला

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राजनीति का गणित जितना सरल दिखता है उतना ही कठिन भी होता है, चार में से दो घटायें तो दो दिखता है, पर असल में ये दो नहीं दो दूनी दो सौ की मार होती है. 45 साल के जिराती समझ नहीं पा रहे होंगे कि इस उम्र में चयन समिति में जाने का वे जश्न मनाएं या इसे लाइफ टाइम अचीवमेंट की तरह स्वीकार कर लें।
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इंदौर। आधी रात के बाद आंधी की तरह खबर आई। रमेश मेंदोला भाजपा चयन समिति के सदस्य बनाये गए। जीतू जिराती भी इस समिति में शामिल हो गए। मधु वर्मा भी।
इस आंधी ने एक के बाद एक तीन बड़े दावेदारों को किनारे कर दिया। इसमें सबसे बड़ा झटका लगा रमेश मेंदोला को। वे कांग्रेस के संजय शुक्ला के सामने सबसे मजबूत ब्राह्मण उम्मीदवार माने जा रहे हैं (बीज गणित के हिसाब से अभी भी अंकुरण की संभावना शेष है)…
पर अब वे खुद का चयन खुद कैसे करेंगे? ये सवाल बड़ा है। वही दो नंबर कैंप से दावेदारी कर रहे दूसरे दावेदार जीतू पटवारी भी चयन के सर्किल में आ गए। कैलाश विजयवर्गीय तो अब राष्ट्रीय नेता हो ही गए हैं।
अचानक हुए इस बड़े बदलाव को समझने के लिए दो दिन पीछे जाना होगा। दो दिन पहले इंदौर के प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा इंदौर आये। बैठक हुई। वे रमेश मेंदोला को गाड़ी में बैठाकर ले गए। संकेत ये आया कि मेंदोला (दादा) को टिकट मिलेगा।
मेंदोला की गाडी दो चौराहे भी पार नहीं कर सकी इसके पहले ही क्षेत्र क्रमांक चार से ‘मालिनी गौड़, फिर महापौर’ की आवाज गूंजने लगी। बंद हो चुके किवाड़ों को खोलकर इस आवाज के पीछे मकसद टिकट पाने से ज्यादा दो नंबर के टिकट के किवाड़ बंद करना रहा।
गणित और रसायन मिलकर ये बताते हैं कि रमेश मेंदोला को टिकट की दावेदारी उस मीटिंग में भी दिखी। नरोत्तम के साथ ने और गति पकड़ी। बात भोपाल पहुंची और इशारा हुआ कि जब विधायक रहते मेंदोला टिकट के दावेदार हो सकते हैं, तो मालिनी गौड़ क्यों नहीं ? तर्क भी सुझाये।
इंदौर को स्वच्छता में पांच बार नंबर एक बनाने का अवार्ड तो मालिनी गौड़ के खाते में ही हैं। इसलिए भाभी की लोकप्रियता दादा दयालु से कोई कम तो नहीं। अब इस खेमे से बचा दूसरा नाम जीतू जिराती का।
इंदौर सामान्य सीट, जीतू जिराती पिछड़ा वर्ग के। दूसरा तर्क जब पिछड़े (चुनाव भी हारे) जीतू पर सामान्य सीट पर विचार हो सकता है तो पिछड़े वर्ग की (जीती हुई अवार्ड विजेता) मालिनी गौड़ पर क्यों नहीं ?
भोपाल के सत्ता केंद्र ने हर बार की तरह इस बार भी बड़ी सफाई से सपनों के शहर में दो नंबरी सियासत को बाहर कर दिया। प्रभारी कोई भी रहे शिवराजजी सारा भार अपने ऊपर भी रखना पसंद करते है।
ये स्पष्ट होता है जीतू जिराती के चयन समिति में जाने से ये साफ हो गया कि दो नंबर के खाते में टिकट का कोई रास्ता नहीं छोड़ना चाहते। राऊ के रास्ते भी नहीं।
चयन समिति में आमतौर पर उम्रदराज, विधायक, सांसद और कुछ बड़े नेता रहते आये हैं। हारे हुए विधायकों को भी रखा जाता है, पर जिराती तो पिछला चुनाव भी नहीं लड़े।
सारे समीक्षक मेंदोला की टूटी उम्मीदों पर लिख रहे हैं। पर जिराती पर कोई बात नहीं कर रहा। इस ## की लड़ाई में नुकसान तो बागड़ का ही हुआ। 45 साल के जिराती समझ नहीं पा रहे होंगे कि इस उम्र में चयन समिति में जाने का वे जश्न मनाएं या इसे लाइफ टाइम अचीवमेंट की तरह स्वीकार कर लें।
मेंदोला की उम्र तो 61 साल है। जिराती युवा होने के नाते संजय शुक्ला के सामने बड़ा विकल्प हो सकते थे, पर शिव की शक्ति के आगे पूरा कैलाश पर्वत वीरान ही है।चार नंबर के इस अभियान ने दो नंबर के दो बड़े दावेदारों को ही नहीं माइनस किया बल्कि जो मेंदोला विशेष दिख रहे थे वो भी अभी तो शेष ही रह गए।
पर गणित अभी पूरा नहीं हुआ हासिल का टिकट बाकी है

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