इंदौर भाजपा के अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा जी ने एक चिट्ठी, संभागायुक्त को लिखी है, जिसमें उन्होंने तुलसियाना और मनी सेंटर गिराए जाने के दोषी अफसरों पर कार्रवाई के लिए लिखा है… इस चिट्ठी को पढ़कर लगा कि नेमा जी से इसी अंदाज़ में रूबरू होना बेहतर है…
गोपीकृष्ण नेमा जी,
आप नफ़ा-नुकसान का आकलन करने में माहिर हैं। दूरदर्शी भी हैं, नपे-तुले शब्द और वाकपटुता आपकी खूबी है। हमने आपको पहले चुनाव से देखा, समझा..! महेश जोशी को आपने हराया, अनवर खान आपसे हार गये। वो अयोध्या का दौर था… फिर लंबे वक्त के लिए आप कहीं गुम से गये। यदा-कदा व्यापारी प्रकोष्ठ और ऐसे ही कुछ दूसरे जलसों में आपका नाम सुनते रहे। कई बार लोगों से पूछना पड़ा कि आप इंदौर में हैं या कहीं और बस गये। बीच-बीच में चुनाव के वक़्त आपका नाम प्रकट होता रहा। इस बार आप 20 साल पुराने इंदौरी नेमा के रूप में फिर हाजिर हैं, पर अब हम आप पर भरोसा कैसे करें, और क्यों करें? सिर्फ इसलिए कि आपने हमारे पक्ष में एक चिट्ठी लिखी है, वो भी संभागायुक्त को… नेमा जी न आप इतने नादान हैं, न हम इतने नासमझ।
आप को दो बार विधानसभा का सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया, इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि आप विद्वान हैं। राजनीति, नौकरशाही, विधायिका और न्यायपालिका के आप जानकार हैं। चूंकि आपने वकालत पढ़ी है, इसलिए जिम्मेदारी किसकी कहां ख़त्म होती है, और कहां शुरू… ये भी आप बखूबी जानते हैं। फिर आपने चिट्ठी में सिर्फ प्रशासन को तुलसियाना और मनी सेंटर का जिम्मेदार कैसे बता दिया? क्या आम आदमी के फ्लैट और दुकान गिराने के जिम्मेदार सिर्फ निगम, इंदौर विकास प्राधिकरण के अधिकारी ही हैं? आपकी पार्टी की निगम परिषद, जनता की चुनी हुई महापौर मालिनी गौड़ और आईडीए अध्यक्ष शंकर लालवानी से आप सवाल पूछने का साहस करेंगे? इंदौर ने आपको आठ में से सात विधायक दिये, उन विधायकों की कोई जिम्मेदारी नहीं? चलिये, मान लेते हैं आचार संहिता में अफसरों ने आपकी नहीं सुनी, पर शंकरगंज, मच्छी बाजार, हाथीपाला और ऐसे कितने ही बाज़ारों में लोग बेदखल कर दिए गए घरों-दुकानों से, तब आप क्यों नहीं बोले? क्षेत्र क्रमांक तीन (जहां से आप विधायक भी रहे) में हाथीपाला से चंद्रभागा वाली सड़क पर पहले 80 फ़ीट चौड़ाई के हिसाब से मकान तोड़े गये, कुछ चुनिंदा मकान छोड़कर। अब कहा जा रहा है सिर्फ 60 फ़ीट सड़क की ही जरूरत है। क्या नगर निगम और चुने हुए विधायक अपने ऐसे ही लाभ-हानि से काम करेंगे? इन सब बेदखल लोगों को मुआवजा आपकी इस चिट्ठी से मिल पायेगा?
मनी सेंटर मामले में शंकर लालवानी का कहना है- मेरे कार्यकाल में यह विषय सामने आया ही नहीं। महापौर का कहना है- अफसरों ने पूछा ही नहीं। ये बेहद रोचक है कि जिस राजनीतिक दल, जिसके नेताओं के रुतबे के किस्से जनता सुनती-सुनाती रही है, क्या वे सब झूठे हैं। अफसर ही इस शहर में सबसे मजबूत हैं, वही अंतिम फैसला करेंगे। आप सिर्फ मूकदर्शक बनकर देखेंगे और नंबर एक शहर के अवार्ड हासिल करेंगे। यदि अफसर ही अंतिम फैसला करेंगे तो जनता आपको वोट क्यों दे? क्यों हम आपके वादों पर भरोसा करें? आपकी पार्टी का घोषणा पत्र भी आपके पत्र की तरह ही एक दिखावा मानना पड़ेगा। जब सरकार आपकी, निगम आपका… फिर भी अफसर मनमानी कर रहे हैं तो आपकी चिट्ठी किसी काम कैसे आयेगी। नेमा जी बेहतर होगा आप अंतर्मन से पिछले बीस साल के इंदौर को देखें और निर्लिप्त भाव से एक खुली चिट्ठी लिखें, जिससे पता लगे कि धरती से जुड़ा एक ज़मीनी नेता वाकई अपने शहर की दुर्दशा से चिंतित है। उसे आप आत्मचिंतन, स्वीकारोक्ति, माफीनामा या कोई भी नाम दे सकते हैं। इंतज़ार रहेगा..!
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