Maharashtra News: रामनवमी जैसे पवित्र अवसर पर एक अप्रत्याशित विवाद ने महाराष्ट्र में राजनीतिक और धार्मिक हलकों में हलचल मचा दी है।
वर्धा जिले के देवली स्थित प्राचीन राम मंदिर में दर्शन करने पहुंचे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रामदास तड़स को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से रोक दिया गया।
इस घटना के बाद पूर्व सांसद ने इसे न केवल अपना, बल्कि जनता का अपमान करार दिया है।
पारंपरिक परिधान नहीं पहना तो लगा दी प्रवेश पर रोक
रामदास तड़स ने बताया कि वह पिछले 40 वर्षों से लगातार इस मंदिर में दर्शन के लिए आते रहे हैं, लेकिन ऐसा अनुभव उन्हें पहली बार हुआ है।
उन्होंने कहा कि वह रामनवमी के अवसर पर अपनी पत्नी और कुछ कार्यकर्ताओं के साथ देवली के इस ऐतिहासिक मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे थे।
जब वह गर्भगृह की ओर बढ़े, तो उन्हें रोक दिया गया और कहा गया कि पारंपरिक परिधान ‘सोवाणे‘ और ‘जनेऊ‘ न पहनने के कारण उन्हें मूर्ति के निकट जाकर पूजा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
रामदास तड़स ने यह भी बताया कि मंदिर के ट्रस्टी और पुजारी पुणे में रहते हैं और केवल रामनवमी जैसे अवसरों पर मंदिर में आते हैं।
इस बार भी पुजारी ने आकर यह निर्देश दिया कि पारंपरिक वेशभूषा के बिना किसी को गर्भगृह में प्रवेश नहीं मिलेगा।
यह सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि जनता का अपमान- पूर्व सांसद
पूर्व सांसद रामदास तड़स ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि आम जनता का अपमान है। राम हमारे हृदय में हैं और श्रद्धा का आकलन वेशभूषा से नहीं किया जा सकता।”
उन्होंने बताया कि उन्होंने और उनकी पत्नी ने फिर बाहर से ही भगवान राम के दर्शन किए और किसी तरह का विवाद नहीं खड़ा किया।
हालांकि बाद में इस घटना ने न सिर्फ पूर्व सांसद के समर्थकों को नाराज़ किया, बल्कि स्थानीय नागरिकों में भी आक्रोश फैलाया।
रामदास तड़स के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जताई और मंदिर ट्रस्ट से सवाल किया कि जब इतने वर्षों से पूर्व सांसद नियमित रूप से दर्शन करते आ रहे हैं, तो इस बार ऐसी रोक क्यों लगाई गई?
स्थानीय विधायक राजेश बकाने ने भी इस विषय में जानकारी लेनी चाही, लेकिन पुजारी और ट्रस्टी की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
फिलहाल, मंदिर ट्रस्ट की ओर से अभी तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
वहीं रामदास तड़स ने स्पष्ट किया कि वह इस मुद्दे को किसी व्यक्तिगत अपमान की तरह नहीं देख रहे हैं।
हालांकि, यह मामला एक बड़े सवाल उठाता है कि क्या मंदिरों में श्रद्धालुओं की आस्था और वर्षों से निभाई जा रही परंपरा को अचानक इस प्रकार के नियमों से बाधित किया जा सकता है?
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