अर्थव्यवस्था के सच .. आखिर भ्रम की चादर गिर गई
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अर्थव्यवस्था के सच .. आखिर भ्रम की चादर गिर गई

 

देश को शाइनिंग इंडिया के धोखे में रखकर उसके पेंदे की कालिख नहीं छिपाई जा सकती। आखिर पेंदा फूट ही गया। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के अनुमान ने सबकुछ सामने रख दिया

दर्शक

हिंदुस्तान अनलॉक हो गया। पर हमारी अर्थव्यवस्था लॉकडाउन में चली गई। कोरोना संक्रमण के मामले में हम दुनिया में नंबर दो पर आने की तरफ बढ़ रहे हैं। तमाम दावे गलत साबित हुए। लगातार हमारी सरकार ये कहती रही भारत के हालत दूसरे देशों से बहुत बेहतर है। अर्थव्यवस्था पर भी ऐसे ही अजीबोगरीब तर्क गढ़े जाते रहे।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने तो इसे दैवीय आपदा तक बता दिया यानी एक्ट ऑफ़ गॉड। यदि सब कुछ एक्ट ऑफ़ गॉड के भरोसे ही चलना है तो सरकारें किस लिए हैं। सरकारों का काम ही है कि आपदा में देश को सही दिशा में चलाना। किसी भी लीडर की परीक्षा ऐसे ही वक्त में होती है।

अभी की सरकार इस परीक्षा में पूरी तरह विफल रही। देश को शाइनिंग इंडिया के धोखे में रखकर उसके पेंदे की कालिख नहीं छिपाई जा सकती। आखिर पेंदा फूट ही गया। हिंदुस्तान का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के अनुमान ने सबकुछ सामने रख दिया। अनुमान है कि भारत की जीडीपी इस साल -10.3 प्रतिशत जा सकती है। बांग्लादेश के हालात हमसे बेहतर है।

आईएमएफ़ का अनुमान ये भी है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी में आने वाले दिनों में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाएगा।इसे क्या माना जाए। दरअसल पिछले कुछ सालों में सरकार ने अपने कर्मों पर परदा डालने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं किया। परदे भी डाले भ्रम के। जो एक झटके में गिर गए।

देश को भटकाने के लिए हम सुशांत सिंह राजपूत, हाथरस और कुछ नहीं मिले तो तनिष्क के विज्ञापन तक पर जंग छेड़ने को आमादा हैं। पर अर्थपूर्ण बातों के लिए हमारे पास वक्त ही नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे परप्रकोप एक ट्वीट भी किया है। उन्होंने एक ग्राफ़ भी ट्वीट किया, जिसमें बांग्लादेश, भारत और नेपाल के प्रति व्यक्ति जीडीपी का तुलनात्मक अध्ययन दिखाया गया है।

इसमें साल 2020 के लिए बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति जीडीपी 1876.5 डॉलर दिखाया गया है और भारत के लिए 1888.0 डॉलर दिखाया गया है। पर अभी भी हम इस मामले की गंभीरता पर बात नहीं करेंगे। हम सब मिलकर राहुल गांधी पर हमला करेंगे। उनकी अपनी कमाई पर बात करेंगे। उन्हें निकम्मा बताकर उनका मज़ाक उड़ाएंगे। उनसे बात नहीं बनेगी तो कोसने के लिए नेहरू रूपी ढाल तो है ही।

सरकार अपनी नाकामी को छिपाने के लिए इस हद तक नीचे और पीछे जायेगी कि भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक्त देश के पास कितना पैसा था। आज कितना है। यदि नेहरू ने पाकिस्तान को उस वक्त पैसा नहीं दिया होता तो आज ये नौबत नहीं आती। इस तरह के तमाम कुतर्कों के साथ एक पूरी टीम तैयार खड़ी हैं। वैसे भी बातों से बढ़िया टॉनिक इस वक्त देश में कुछ है ही नहीं।

कोई नया संघी विचारधारा का अर्थशास्त्री सामने आकर पूरी जीडीपी की अवधारणा को ही ख़ारिज कर सकता हैं। कहा जा सकता है कि भारत के सन्दर्भ में ये बेमानी है। हम अपना तरीका ईजाद करेंगे। आत्मनिर्भर भारत दुनिया के तरीके से नहीं चलेगा।

हमने योजना आयोग का नाम नीति आयोग कर ही दिया। उससे नीति कितनी रही ये अलग विषय है। इसी तरह हम जीडीपी को भी कोई खूबसूरत मोड़ दे ही देंगे। खैर, सच यही है कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से उभर रही है।

1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के बाद बांग्लादेश ने कई त्रासदियों को झेला है। 1974 में भयानक अकाल देखा, भयावह ग़रीबी, प्राकृतिक आपदा और अब शरणार्थी संकट से बांग्लादेश जूझ रहा है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में दो बातों का सबसे बड़ा योगदान है। पहला कपड़ा उद्योग और दूसरा विदेशों में काम करने वाले लोगों का भेजा पैसा। कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है।

बांग्लादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है। 2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डॉलर तक पहुँच गया। दूसरी तरफ़ भारत में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में पिछले दिनों सबसे ज़्यादा गिरावट देखने को मिली है। पहली तिमाही में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ -39.3 फ़ीसदी रहा था। आईएमएफ के ये अनुमान भारत को आगाह तो जरूर कर रहे हैं कि समय रहते जरूरी कदम उठा लिए जाएं।

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