हमने चीन को गुजरात में झूला झुलाया, देश का गद्दार कौन ?

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चीन से तनाव, भारत में बहुत से लोग गद्दार कहे जाएंगे, पिछले कुछ सालों में जिन राष्ट्राध्यक्षों का भारत ने जमकर स्वागत किया उनमे ट्रंप के अलावा चीन राष्ट्रपति भी हैं

भारत-चीन सरहद पर लगातार चल रहा तनाव बढ़ते हुए आज एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया जब दोनों फौजों के बीच गोलीबारी में हिन्दुस्तानी फौज का एक कर्नल और दो सैनिक मारे गए। लोगों ने इस बारे में लिखा है कि 1967 के बाद पहली बार इन दो देशों के बीच सरहद पर तनाव में कोई मौत हुई है। पिछले बरसों में कई बार, कभी अरूणाचल पर, तो कभी लद्दाख को लेकर चीन के साथ भारत की तनातनी होती थी, लेकिन निपट जाती थी। इस बार महीने भर से तनाव चल रहा था, और बातचीत की जो जानकारी लोगों के सामने आई है, वह महज फौजी अफसरों के बीच बातचीत की थी।

इस बातचीत में कोई बुराई तो नहीं थी, लेकिन यह कूटनीतिक समझदारी के बिना होने वाली फौजी-दिमाग की बातचीत थी, जो शायद किसी किनारे नहीं पहुंच पाई। इस वक्त हिन्दुस्तान के टीवी चैनल अपने तीन फौजियों की शहादत को लेकर विचलित हैं, और इसी मुद्दे पर बहस चल रही है। भारत सरकार की ओर से अब तक सिवाय इन मौतों की पुष्टि के और कोई बयान नहीं आया है। इतना कहा जा रहा है कि दोनों तरफ के फौजी अफसरों के बीच बातचीत जारी है।

भारत और चीन के बीच करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी सरहद है। दो सगे भाईयों के बीच जब एक जमीन का बंटवारा होता है, तो फीट-आधा फीट का विवाद अक्सर ही रह जाता है, ऐसे में दो परस्पर प्रतिद्वंद्वी और अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक-दूसरे से टकराने वाले इन दो देशों के बीच सरहद पर झगड़ा कोई अनोखी बात नहीं है।

हिन्दुस्तान में पिछले बरसों में जिन विदेशी राष्ट्रप्रमुखों का दर्शनीय स्वागत हुआ है, उनमें चीनी राष्ट्रपति भी एक रहे हैं जिन्हें भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कभी गुजरात के विख्यात जिले में झूला झुलाया, कभी ढोकला खिलाया, तो कभी दक्षिण के किसी पुरातात्विक स्मारकों की पृष्ठभूमि में उनसे बातचीत की।

तरह-तरह चीन और भारत के शासन प्रमुख एक-दूसरे से मिलते रहे, और कुछ ऐसा माहौल कम से कम हिन्दुस्तान में तो बने रहा जो कि आधी सदी के भी पहले हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे से बना था। लेकिन ऐसा लगता है कि पिछले दिनों से चले आ रहे इस तनाव के दौर को मानो कम से कम हिन्दुस्तान ने महज फौजी अफसरों की बातचीत के लायक मान लिया था, और दूसरी कोई बातचीत सामने नहीं आई।

हिन्दुस्तान में आज माहौल कुछ ऐसा है कि सरकार से ऐसे राष्ट्रीय मुद्दे पर भी किसी जानकारी मांगने के मुल्क के साथ गद्दारी करार देने के लिए लाखों लोग की-बोर्ड पर बैठे हैं, और एक सरीखी गालियां पल भर में हजारों लोग कॉपी-पेस्ट करने लगते हैं। इस मशीनरी के बारे में यहां पर अधिक चर्चा करना ठीक नहीं है, लेकिन देश के ऐसे बड़े मुद्दे को भी अगर लोगों की चर्चा से, लोगों के सवालों से परे कर दिया जाएगा, संसद का सत्र चलेगा नहीं,

केन्द्र के प्रधानमंत्री या दूसरे बड़े मंत्री प्रेस का सामना नहीं करेंगे, तो लोग अपने सवाल किसके सामने रखेंगे? बात-बात पर लोगों को देश के साथ गद्दारी या वफादारी की कसौटी पर कसने का मतलब देश को कम आंकना है। अगर मीडिया या राजनीति के कुछ लोग हिन्दुस्तानी सरकार से इस तनाव पर तथ्य सामने रखने की मांग करते हैं, तो उन्हें पूरी तरह खारिज कर देना अलोकतांत्रिक बात है।

लोकतंत्र में बंद कमरे की कूटनीतिक बातचीत के भी कुछ पहलुओं को सार्वजनिक रूप से उजागर किया जाता है। आज तो हालत यह है कि भारत और चीन के फौजी अफसरों के बीच बातचीत के बाद भारत के लोगों को पहला बयान चीन के अफसरों का पढऩे मिला कि बातचीत एक सकारात्मक किनारे पहुंच रही है।

आज जब हिन्दुस्तान कोरोना से मुश्किल से जूझ पा रहा है, और कोरोना के बाद का वक्त तो आज के आर्थिक संकट से और भी बड़ा होने के आसार हैं। ऐसे में नेपाल जैसे एक वक्त के बड़े करीबी देश, और दुनिया में अकेले हिन्दू राष्ट्र रहे देश के साथ अभूतपूर्व तनाव चल रहा है।

चीन के साथ आधी सदी बाद का इतना बड़ा तनाव अभूतपूर्व तो कहा ही जाएगा। पाकिस्तान के साथ भारत की स्थायी शत्रुता चली ही आ रही है। अब हिन्दुस्तान आखिर कितने मोर्चों पर एक साथ लड़ेगा? चीन की आर्थिक क्षमता बेमिसाल है, वह तो आज अमरीकी कारोबार के भी, वहां के वित्तीय संस्थानों के भी एक बड़े हिस्से का मालिक है।

उसने कोरोना से निपटने में भी एक बेमिसाल तेजी दिखाई थी। भारत उस मुकाबले बहुत पीछे और बहुत कमजोर है। वह आज इस हालत में भी नहीं है कि दुनिया की एक बड़ी महाशक्ति चीन के साथ किसी लंबे युद्ध में उलझ सके। फिर भारत के भीतर आज जिस तरह का राष्ट्रवादी उन्माद चल रहा है, उसके चलते हुए यह भी मुमकिन नहीं है कि जनता के बीच किसी तर्कसंगत सरकारी फैसले पर एक व्यापक सहमति आसानी से तैयार हो सके।

अपने देश की जनभावनाओं को देखते हुए भारत जैसे देश के आज चीन के साथ इस तरह का रूख दिखाना होगा, हो सकता है वह बहुत तर्कसंगत न भी हो। शायद ऐसे ही वक्त देश की जनता का न्यायप्रिय होना अधिक काम का रहता है, लेकिन भारत में आज राष्ट्रीय सोच इस तरह की रह नहीं गई है।

खैर, आने वाले दिन तनाव भरे होंगे, और बहुत से लोग गद्दार कहलाने वाले हैं।

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