अजीत जोगी जैसे योद्दा और दिग्विजय जैसे रणनीतिकार के करीब आने से मध्यप्रदेश की राजनीति के तपे-तपाये नेता घबराने लगे, सबसे पहले इसे समझा अर्जुन सिंह ने और जोगी को खड़ा कर दिया राजा के खिलाफ
पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )
इंदौर। अजीत जोगी। हमेशा जीत को आतुर। जिसे जीत से कम कुछ भी मंजूर नहीं। जो सोचा,वही पाया। पिछले सात दिनों से छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी बीमार हैं। वेंटीलेटर पर सांसें ले रहे हैं। ज़िंदगी से वे अभी भी हार नहीं माने हैं। इसके पहले भी वे कई मौके पर मौत को चकमा दे चुके हैं। इस बार मामला ज्यादा गंभीर दिख रहा है।
पिछले लेख में हमने बात की, कैसे इंदौर कलेक्टर जोगी राजनेता बने। रात ढाई बजे प्रधानमंत्री राजीव गांधी का फ़ोन। फिर दिग्विजय सन्देश लेकर जोगी के बंगले पहुंचे। जोगी और दिग्विजय की दोस्ती के खूब चर्चे रहे। दोनों आदिवासी और सवर्ण वोटो के जरिये युवा कांग्रेस खड़ी कर रहे थे। 1985 तक मध्य्प्रदेश में अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, माधवराव सिंधिया, शंकरदयाल शर्मा, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, प्रकाशचंद्र सेठी, दिलीप सिंह भूरिया, शिवभानु सिंह सोलंकी जैसे कई बड़े नाम कांग्रेस में थे। इन सबकी केंद्र सरकार और कांग्रेस आलाकमान में भी गहरी पैठ थी।
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इतने दिग्गज नेताओं के बीच अपनी जगह बनाने को दिग्विजय में छठपटाहट थी। अजीत जोगी के तौर पर उन्हें एक मजबूत राजनीतिक दोस्त मिला। जोगी अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से से परिचित थे। प्रसाशनिक पकड़ के साथ अब राजनीतिक पॉवर भी उनके पास था। जोगी इंदौर, रायपुर के अलावा सीधी, शहडोल में भी कलेक्टर रहे। वे जिस जिले में रहे वहां के राजनेताओं के साथ उनकी मजबूत पकड़ रही।
इसी के चलते वे अर्जुन सिंह के करीबी भी रहे। अर्जुन सिंह का साथ मिलने पर जोगी ने खुद को अति पिछड़ी और आदिवासियों के नेता के तौर पर प्रस्तुत करना शुरू किया। अर्जुन सिंह शायद समझ चुके थे कि जोगी और दिग्विजय की जोड़ी मुश्किल पैदा कर सकती है। बस, जोगी को खुद की लाइन बड़ी करने की फूंक देकर अर्जुन सिंह ने अपने तरकश का तीर छोड़ दिया।
अजीत जोगी को अर्जुन सिंह से मिली ताकत ने इस भ्रम में तो डाल ही दिया कि दिग्विजय उनके बिना कुछ नहीं। साथ ही जोगी ये भी मानने लगे कि वे अकेले ही मध्यप्रदेश कांग्रेस के सबसे युवा चेहरा और पिछड़ों आदिवासी का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। उन दिनों प्रदेश में पिछड़ा या आदिवासी मुख्यमंत्री की आवाजें भी बीच-बीच मे उठती रहती थी।
फिर मुख्यमंत्री बनने जोगी-दिग्विजय
आमने-सामने आकर टकराये
राम मंदिर लहर के चलते 1990 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। सूंदर लाल पटवा मुख्यमंत्री बने। वे दो साल मुख्यमंत्री रहे। इस बीच दिग्विजय और जोगी दोनों एक दूसरे को मजबूत करते रहे। और 1993 में कांग्रेस ने फिर बहुमत हासिल किया। दिग्विजय ने खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे बढ़ाया। अर्जुन सिंह के इशारे पर जोगी ने भी दावेदारी पेश कर दी।
जोगी की इस दावेदारी से दिग्विजय अचंभित हुए। दिग्विजय से परास्त होते दिख रहे सभी नेताओं ने जोगी के कंधे पर बंदूक चलाई। हालाँकि चतुर दिग्विजय के सामने जोगी टिक नहीं सके। इसके बाद दिग्विजय जैसा एक दोस्त दुश्मन जरूर बन गया। ये दुश्मनी बहुत लम्बी चली। जोगी के लिए फिर ताकत बनाये रखना मुश्किल हो गया। दिग्विजय और उनकी दुश्मनी में जोगी का साथ उनके कई समर्थकों ने छोड़ दिया। सात साल बाद जोगी फिर उभरे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर। और, ये ताजपोशी उनके सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन दिग्विजय सिंह ने ही कराइ।
अगली किश्त में पढ़िए, कैसे अजीत जोगी उबरे और दिग्विजय ने ही अपने पुराने दोस्त को मुख्यमंत्री बनवाया।
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