शिवराज मंत्रिमंडल को लेकर खींचतान और नरोत्तम मिश्रा की अति महत्वकांक्षा से भाजपा
नेतृत्व बहुत खुश नहीं, नए चेहरों के नाम पर उपचुनाव के बाद बड़े बदलाव की संभावना
दर्शक
इंदौर। शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार फिर टल गया। मामला बहुत उलझा है। शिवराज के अलावा नरोत्तम मिश्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया ये त्रिकोण बना हुआ है। इस त्रिकोण के चलते शपथ की सीधी लाइन खींची ही नहीं जा रही। मामला इतना उलझा कि अब सारे सूत्र दिल्ली ने अपने हाथ में रख लिए। बहुत कुछ कांग्रेसी क्षत्रपों सरीखा है। अंत में आलाकमान। बीजेपी भी अब उसी राह पर। आखिर अनुशासित पार्टी में ऐसा क्यों हो रहा है ? जानकारों के मुताबिक इस सबके पीछे नरोत्तम मिश्रा की अति महत्वकांक्षा है। भाजपा आलाकामन ऐसी महत्वकांक्षा वाले और ‘माहिर’ नेताओं का उपयोग संगठन में करने का मौका नहीं छोड़ता
कमलनाथ सरकार को गिराने और शिवराज (भाजपा पढ़े ) की वापसी में उन्होंने जो पसीना, पैसा बहाया है उसकी कीमत वो वसूलना चाहते हैं। केंद्रीय आलाकमान के शिवराज के प्रति मोहभंग ने नरोत्तम को मौका दिया। संघ ने उनपर हाथ रखकर उनके बाहुबल को कई गुना बढ़ा दिया। कैबिनेट को लेकर उनका जो रवैया है, उससे लगता नहीं कि केंद्रीय नेतृत्व ज्यादा दिन तक उनकी ये महत्वकांक्षा को झेलेगा। वैसे भी भाजपा में निजी महत्वकांक्षाओं को पसंद नहीं किया जाता। प्रदेश की राजनीति के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय का उदाहरण सामने हैं। लगता है नरोत्तम मिश्रा भी उसी राह पर चल पड़े हैं।
दिल्ली ने तय कर दिया है कि वे नए चेहरों को मौका देंगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और उसके बाद नगर अध्यक्षों की नियुक्ति में ये दिखाई भी दिया। संगठन में ताज़गी के बाद अब सत्ता में भी वही तैयारी दिख रही। केंद्रीय नेतृत्व ने दस साल से लगातार मंत्री रहे विधायकों को मौका न देने की नीति अपना ली है। इसके तहत ऐसे अनुभवी नेताओं को संगठन में लगाया जाएगा।
लगातार मंत्री रहे नेताओं से एक तो पार्टी में खेमेबाज़ी बढ़ती है, और जनता के बीच भी वही चेहरे के कारण सत्ता विरोधी वोट पड़ते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी इसे देख भी चुकी है। बीजेपी से जनता उतनी नाराज नहीं थी जितनी अपने इलाके से जुड़े मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं से। जनता ने इन नेताओं को सबक सिखाया। जिसका नतीजा सत्ता गंवाकर मिला। अब भाजपा ऐसा नहीं होने देना चाहेगी।
भाजपा के संगठन के नजदीकी ने बताया कि उप चुनाव के बाद कई बड़े नेताओं की सत्ता से रवानगी तय है। कांग्रेस से आये ज्योतिरादित्य सिंधिया को अभी और तवज्जों देने के मूड में है भाजपा केंद्रीय नेतृत्व। नरोत्तम मिश्रा और शिवराज के बीच जो अनबन दिखाई देर रही है, उससे भी केंद्रीय नेतृत्व नाराज है।शिवराज नरोत्तम के घर चाय पीने भी गए। ये तस्वीर भी खूब चर्चा में रही। अभी भी दोनों के बीच कुछ ठीक नहीं है।
नरोत्तम शिवराज से भी बड़ा हिस्सा सत्ता में चाहते हैं। कुछ महीने पहले तक संघ और आलाकमान की नजरों में हीरो रहे नरोत्तम का कद कम होने के पीछे शिवराज से तनातनी के अलावा भी कई कारण है। इसमें एक बड़ा कारण पिछले कुछ महीनों में प्रदेश के कई बड़े आर्थिक अपराधियों के साथ नरोत्तम की नजदीकी से भी पार्टी नाराज़ है। ये नजदीकियां आज की नहीं है। पर अब ये खुलकर सार्वजानिक हो चुकी है।
यानी जो फार्मूला कैलाश विजयवर्गीय के लिए पार्टी ने निकाला उसी में नरोत्तम को भी फिट किया जा सकता है। याद करिये, कुछ साल पहले तक मध्यप्रदेश की राजनीति में कैलाश विजयवर्गीय लार्जर देन लाइफ समझे जाते थे। भाजपा और बाहर ये बड़ा चर्चित था कि कैलाश जी के बिना प्रदेश में पत्ता भी नहीं हिलता। कैलाशजी के पास 70 से ज्यादा विधायक हैं।
सत्ता के सूत्र उनके हाथ में हैं। एक सुनियोजित तरीके से उनके करीबियों ने इसे प्रचारित प्रसारित भी किया। दिग्विजय और कैलाश विजयवर्गीय की निकटता को कई स्तर पर जोड़ कर देखा जाने लगा। एक दौर ये भी आया कि व्यापम घोटाले में शिवराज सिंह चौहान हटाए जा सकते हैं। कैलाश विजयवर्गीय अगले मुख्यमंत्री होंगे। महत्वकांक्षा का सार्वजनिक होना राजनीति में सबसे बड़ी हार है। कैलाश विजयवर्गीय भी इसी के शिकार हुए। शिवराज तो बचे रहे, क्योंकि भाजपा अपने चेहरे को हमेशा चमकाए रखती है, चाहे वो कोई भी हो। फिर कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश की
सत्ता से ही नहीं प्रदेश से भी बाहर कर दिए गए। पश्चिम बंगाल के प्रभारी बनाकर।
आज भी कैलाश विजयवर्गीय नेता बड़े हैं, पर वो रुतबा उनका अब नहीं। पार्टी वक्त-वक्त पर उन्हें कोई न कोई काम सौंपती रहती है, ताकि वे व्यस्त रहें। कुछ ऐसी ही महत्वकांक्षायें वक्त से पहले नरोत्तम मिश्रा ने उजागर कर दी है। भाजपा जैसे पार्टी किसी भी नेता की निजी महत्वकांक्षा का बोझ नहीं उठाती। वे तत्काल बोझ उतार फेंकते हैं।
एक बात और कैलाश विजयवर्गीय का जो कद उस वक्त सत्ता में रहा, नरोत्तम तो अभी उस के बीस फीसदी तक भी नहीं पहुंच सके हैं। कैलाश विजयवर्गीय को प्रदेश और देश के बड़े हिस्से में लोग जानते हैं। नरोत्तम के पहचान भोपाल और कुछ सीमित विधानसभाओं तक है। उन्हें भाजपा संगठन से खुद को ऊपर मानने की भूल नहीं करनी चाहिए। जब पार्टी कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को सत्ता से वनवासी बना सकती है, तो नरोत्तम मिश्रा के मामले में उसे बिलकुल भी देर नहीं लगेगी।
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