हर बार ‘शिव’ ही विष पिएं, ये भी तो जरूरी नहीं…

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उदित कुमार

भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में उमस बढ़ गई है। मतलब कि जल्द ही सुकून देनी वाली तेज बारिश होने वाली है। गुरुवार को शपथ ग्रहण के साथ ही राजनीतिक हलचल पर लगाए जा रहे कई कयास थम जाएंगे। लेकिन आज शिवराज का मीडिया को दिया हुआ बयान सुर्खियों में हैं, जिसमें वो ये कहते नजर आ रहे हैं कि ‘‘जब भी मंथन होता है, अमृत निकलता है। अमृत तो बंट जाता है, लेकिन विष शिव पी जाते हैं।’’

राजनीतिक पंडित इस बयान के कई तरह के मायने निकाल रहे हैं। कुछ का कहना है कि नरोत्तम का दिल्ली जाना और मंत्रीमंडल विस्तार में पेंच फंसना दोनों एक ही क्रिया की प्रतिक्रिया हैं। राजनीति के गलियारों में ये जमकर हल्ला मचा हुआ है कि मंत्रीमंडल विस्तार के जरिए भाजपा अपने संगठन की पूरी एक पीढ़ी का विस्तार करने जा रही है।

कहा तो ये भी जा रहा है कि नरोत्तम की महत्वाकांक्षाएं डिप्टी सीएम तक ही सीमित नहीं हैं। ऐसे में शिवराज का ‘शिव के विष’ वाला बयान मध्यप्रदेश की राजनीति में नई दिशा की ओर इशारा भी करता है। लेकिन ये 21वीं सदी की राजनीति है और बदला हुआ संघ और बीजेपी का संगठन है। इसलिए हर बार जरूरी नहीं है कि शिव ही विष पिएं…

इसके लिए मौजूदा हालात में बीजेपी की सरकार का बनना और आगामी उपचुनाव पर गौर किया जाना चाहिए। आज बीजेपी सिर्फ जनता के दम पर सरकार बनाकर नहीं बैठी है। कोरोना काल में चुनौती दो तरफा है, जिसमें एक ओर जनता का विश्वास और उसकी उम्मीदें हैं तो दूसरी तरफ भारी भरकर आर्थिक नुकसान है। दोनों से ही एक साथ न सिर्फ निपटना है बल्कि उम्मीद के अनुरूप सफलता भी हासिल करनी है। ऐसे में बीजेपी संगठन ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेगा जो इन दोनों मोर्चों पर उसे महंगा पड़े।

प्रदेश में बीजेपी के पास केवल एक ही नेता ऐसे है जिसकी पूरे प्रदेश की जनता तक पहुंच है, जो हैं शिवराज। शिवराज के काम, उनकी योजना और उनकी सामान्य व्यक्ति की छवि उनकी ताकत है। जनता उन्हें इसी रूप में पसंद भी करती है। इस बार मध्यप्रदेश में गेहूं की बंपर पैदावार और किसानों को मिला उसका सही दाम, शिवराज के लिए किसी बोनस से कम नहीं है। कोरोना में और राज्यों से मध्यप्रदेश को बेहतर बनाना परीक्षा में डिस्टिंग्शन आने जैसा है। ऐसे में बतौर मुख्यमंत्री वो किसी भी मायने में कमजोर तो नहीं है।

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अब बात करते हैं इस समय हो रही 3 चर्चाओं की।
1- कहा जा रहा है कि या तो नरोत्तम को सीएम बनाया जाएगा या दो डिप्टी सीएम बने तो एक नरोत्तम और दूसरे तुलसी सिलावट होंगे ? तो ये बता दें कि नरोत्तम की न तो पूरे प्रदेश में पकड़ है और न ही उनकी कोई ऐसी पहचान है जो पूरे प्रदेश की जनता जानती हो। इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तो फिलहाल मिलना मुश्किल है।

2कहा जा रहा है कि नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश की कमान दी जा सकती है? तो इसमें भी वही बात है कि शिवराज को हटाकर तोमर को कुर्सी पर बैठाना आगामी चुनाव के लिहाज कोई अच्छा सौदा नहीं हो सकता।

3- पुराने नेताओं को हटाकर नए चेहरों को जगह देना? हां इसमें कुछ हद तक पार्टी एक्शन ले सकती है।

वापस लौटते हैं शिवराज पर। तो शिवराज एक चतुर राजनेता हैं और वक्त अभी उनके साथ। एक समय ये तय था कि वो सीएम नहीं बनेंगे बावजूद वो सीएम बने। उन्हें पता है संगठन और संघ में किस तरह सामंजस्य बैठाना है। वो बखूबी जानते हैं कि चाहत और हासिल के फर्क पर किस तरह रिएक्ट करना है।

वो ये अच्छे से जानते हैं कि जनता के बीच उनकी इमेज कब और कैसी जाना चाहिए। रही बात उनके बयान और कल रात के ट्वीट की तो, कई बार थर्मामीटर बुखार जांचने से ज्यादा थर्मामीटर टेस्ट करने के लिए लगाया जाता है ताकि पता चल सके कि ये काम ठीक से कर भी रहा है या नहीं।

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