देश के मीडिया घरानों में पहचाने जाने वाले इंदौर के दुलीचंद जैन अखबार वाला की पूरी कहानी, अखबार मालिकों से कमाई के आगे हॉकर्स की चिंता
कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार)
देश के प्रिंट मीडिया घरानों में इंदौर के खजूरी बाजार वाले दुलीचंद जैन अखबारवाला परिवार किसी पहचान का मोहताज तो नहीं है लेकिन इस कोरोना महामारी ने सौ साल से अखबार बेचने के व्यवसाय में लगे इसपरिवार को भी अपना कामकाज अस्थायी तौर पर बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है।लॉकडाउन के बाद फ्लाइट और ट्रेन भी बंद हो जाने से दिल्ली, मुंबई से नियमित इंदौर आने वाले अखबार तो बंद हो ही गए थे।
अब स्थानीय अखबारों का विक्रय भी खजूरी बाजार स्थित पुश्तैनी दुकान से बंद करने का निर्णय लेना पड़ा है।जैन परिवार का करीब 400-500 हॉकरों का अपना नेटवर्क है, इन्हीं में से दो हॉकर में कोरोना संक्रमण के लक्षण पाए जाने के बाद यह निर्णय लेना पड़ा है।पंजाब केसरी, फिर स्वदेश, इंदौर समाचार, जागरण के साथ 1983 से दैनिक भास्कर सहित दिल्ली-मुंबई के 35 अखबारों का नियमित वितरण कर रहे , जो अबलॉकडाउन विधिवत समाप्त हो जाने के बाद ही शुरु करेंगे।इस स्थिति के चलते स्थानीय अखबार अब अपने वितरण केंद्र शुरु कर रहे हैं।
आज़ादी के आंदोलन में भी बांटे अखबार
भानपुरा (मंदसौर) से इंदौर आकर बसने से पहले दुलीचंद जैन बंबई (अब मुंबई) में फ्री प्रेस में प्रूफ रीडिंग किया करते थे।इंदौर आने के बाद सिर पर लोहे की पेटी में सस्ता साहित्य रख कर बेचा करते थे।आजादीआंदोलन वाले उस जमाने में स्वतंत्रता सेनानियों को आजाद नगर स्थित जेल में रखा जाता था। उन तक नियमित समाचार पहुंचते रहे इसलिए दुलीचंद जी खजूरी बाजार से पैदल जाते और जेल के पिछले हिस्से में बने शौचालयों में अखबार रख आते थे।
इससे पहले कभी वितरण नहीं रोका
इस तरह 1918 से अखबार वितरण का काम स्थायी हो गया। पहले हिंदुस्तान टाइम्स, पंजाब केसरी आदि अखबार बेचते रहे।तब आज के समोसा कार्नर (सराफा में प्रवेश वालेमार्ग) पर 14 (चश्मे) दरवाजे वाली दुकान से अखबार विक्रय करते थे, इसके पास ही सोजतिया परिवार(सांध्य दैनिकप्रभात किरण वालों) का डायरी हाउस था। 1924 में दुलीचंद जैन अखबारवाला नाम से फर्म रजिस्टर्ड हो गई।एक शताब्दी से अधिक समय से अखबार वितरण-विक्रय का कार्य दुलीचंद जैन के निधन (4 जनवरी 1977) पर भी बंद नहीं हुआ।दीपावली पर स्थानीय अखबारों का अवकाश रहने के बाद भी बाहर केअखबारों की छुट्टी नहीं रहने से जैन परिवार ने दुकान बंद नहीं की लेकिन कोरोना ने तालाबंदी करा दी।
भास्कर को इंदौर में नंबर एक बनाने में बड़ा योगदान
यह भी संयोग है कि नईदुनिया वाले छजलानी परिवार से दुलीचंद जैन परिवार के आत्मीय रिश्ते रहे लेकिन नईदुनिया वितरण में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 1983 में दैनिक भास्कर के इंदौर से प्रकाशन को यदि कुछ समय में ही नईदुनिया को नंबर दो पर लाने में सफलता मिल सकी तो रमेश चंद्र अग्रवाल (स्व द्वारका प्रसादजी केपुत्र)का सामाजिक तानाबाना . मनमोहन अग्रवाल (स्व.विशंभरअग्रवाल के पुत्र) का छपे हुए अखबार के बंडल खजूरी बाजार ले जाना, हॉकरों के मान-सम्मान, खानपान कीचिंता करने वाला व्यवहार तो था ही दुलीचंद जैन का दिगंबर जैन समाज का होना भी एक प्रमुख कारण था।
सामाजिक खबरों में भी परिवार की भूमिका
बाबू लाभचंद छजलानी के बाद बागडोर संभालने वाले अभय छजलानी श्वेतांबर समाज के सिरमौर बने होने से दिगंबर जैन समाज को नईदुनिया में उतना स्थान नहीं मिल पाता था।शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब कमल जैन (दुलीचंद जी के पांच लड़कों तिलोकचंद, विमल कुमार, निर्मल, कमल और शांतिलाल जैन में सेएक ) नियमित भास्कर ना आते हों और तत्कालीन संपादक यतींद्र भटनागर से लेकर सिटी में मुझ से, मालिकों में मनमोहन अग्रवाल (बाद में सुधीर अग्रवाल) से सामाजिक खबरों को लेकर चर्चा न करते हों।आचार्यविद्यासागर जी का गोम्मटगिरी में हुआ चातुर्मास कवर करने के लिए तत्कालीन संपादक डॉ ओम नागपाल ने खास तौर पर मुझे नियुक्त ही इसलिए किया था क्योंकि वामपंथी विचारों वाले सिटी चीफ स्व विनय लाखे केअपने पूर्वाग्रह थे।
इनके केंद्र पर अखबार मालिक भी आते रहे
दुलीचंद जैन की चौथी पीढ़ी अब वितरण-विक्रय का काम देख रही है इनमें उनके पुत्र कमल के लड़के परागऔर पोते शरद जैन के बेटे सौरभ व राहुल काम संभाल रहे हैं। 63 वर्षीय शरद जैन को दादा दुलीचंद का संघर्ष भी याद है और नईदुनिया में बसंतीलाल सेठिया (महेंद्र सेठिया के पिता) का लिखा वह लेख भी याद है जिसमेंउन्होंने जिक्र किया था कि बाबू लाभचंद छजलानी और मैं अखबार घर ( प्रभात किरण भवन के ठीक सामने) पर अखबार पढ़ने जाते थे, वहीं हम दोनों (सेठिया-छजलानी) में परिचय हुआ था। शरद बताते हैं जनसंघीविचारधारा वाला स्वदेश, इंदौर समाचार, जागरण तब खूब चलता था।बाद में दैनिक भास्कर के साथ नवभारत, चौथासंसार सहित टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, एचटी आदि 35 अखबार का वितरण कर रहे हैं।
वितरण रोकने के पीछे तर्क -इस वक्त पैसे कमाने से ज्यादा जरुरी है
पाठकों और हॉकर्स की ज़िंदगी की सुरक्षा
कोरोना वायरस के कारण 100 साल पुरानी फर्म को भी जनता के स्वास्थ्य के लिए कुछ दिनों के लिए बंद कर रहे हैं । 1919, गुलामी के जमाने मे पेपर बाटना भी जुर्म माना जाता था तब हिम्मत से लोगो को देश की, प्रदेश की, शहर की स्थिति की जानकारी देने के लिए दुलीचंदजी जैन ने पेपर बाटने के काम की शुरुआत की। आज का इंदौर का खजूरी बाजार तब ‘बा’ (बुजुर्ग दादा या काका ) कि गली के नाम से फेमस था । रात भर माहौल बना रहता था . स्वतंत्रता के दीवाने बा को ढूंढते हुए गली में आया करते थे कि बा कब आएंगे, पेपर कब पढ़ने को मिलेगा उस जमाने न तो फ़ोन था न मोबाइल था न ही टीवी था । 1983 में दैनिक भास्कर आया तभी से जैन परिवार भास्कर के मैन डिस्ट्रीब्यूटर है। पूरे इंदौर में पेपर वितरित कर रहे है । इस जहरीले वायरस के कारण हमें हमारे 400-500 हॉकरों की एवम लाखों पाठकों का जीवन मूल्य बचाने की चिंता ज्यादा है।समाचार पत्रों के प्रबंधक एवम पूरे स्टाफ से जो कि पूरे देश विदेश से समाचार एकत्रित कर ज्यादा से ज्यादा सूचना आप तक पहुचाते हैं उन सभी से क्षमा चाहते हैं। समय एक सरीखा नहीं होता। अच्छा समय आएगा फिर समाचार पत्र आपके घर आएगा।लॉक डाउन पीरियड तक क्षमाप्रार्थी है।-
दुलीचंद जैन अखबार वाला परिवार ।
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