अब शिवराज के चेहरे को पीछे धकेलना
अमित शाह के लिए आसान नहीं रहा
कर्नाटक में लम्बी रेस के बाद कुमार स्वामी ने शपथ ले ली. सत्ता की इस घुड़दौड़ में सबसे तेज़ घोड़े दौड़ाने वाले पीछे रह गये. कांग्रेस और जनता दल एस ने सरकार बना ली. इस सरकार से सबसे ज्यादा खीझे हुए नजर आये बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह. उनके बयानों से लगा ये चुनावी नहीं निजी दुश्मनी पाली जा रही हो. कर्नाटक की हार ने अमित शाह के अजेय योद्धा होने का आभास को तो तोडा ही आगामी चुनावी राज्यों में भी उनका एकतरफा दखल रोका है. मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान इस समय सबसे ज्यादा राहत महसूस कर रहे होंगे. उनके लिए कर्नाटक में बीजेपी की सरकार न बनना एक ख़ुशी की तरह है. अब वे अपने चेहरे और सत्ता के बचे रहने की उम्मीद कर सकते हैं. क्योंकि अब शाह अजेय शंहशाह नहीं रह गये हैं.
दरअसल,मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को नहीं सुहाते (केंद्रीय नेतृत्व को यहां शाह-मोदी पढ़ा जाये). लगातार शिवराज के कामों पर अंगुली उठाने और उनसे नाराज लोगों को तवज्जों केंद्रीय दरबार में मिलती रही ही. पर सीधे-सीधे शिवराज पर कोई कार्रवाई पार्टी नहीं कर सकी.संघ का समर्थन अब भी शिवराज को हासिल है. मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन, शिक्षाकर्मी विरोध और लगातार कमजोर होती कानून व्यवस्था पर शिवराज को केंद्र ने घेरा. शिवराज के विरोधी कहे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय के नया मुख्यमंत्री बनने तक की बात होने लगी. माना जा रहा था कि अमित शाह कर्नाटक के बाद मध्य्प्रदेश में डेरा डालेंगे और खुद पूरी कमान हाथ में लेंगे. पर अब ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं होगा.
शिवराज और शाह की अनबन तभी सामने आ गई थी, जब प्रदेश अध्यक्ष के लिये नाम पर सहमति बनना मुश्किल हुआ. ऐसे में सांसद राकेश सिंह को अध्यक्ष बना दिया गया. राकेश सिंह प्रदेश के लिए एक अजनबी सा चेहरा हैं. ऐसे गुमनाम से शख्स को अध्यक्ष बनाने का मतलब साफ़ है कि वे डमी हैं, असल काम राष्ट्रीय अध्यक्ष के हाथ है. इसके बाद चुनावा अभियान की शुरुवात करते हुए अमित शाह ने राजधानी भोपाल में शिवराज को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से दुरी बना ली. शाह ने कहा मध्यप्रदेश में पार्टी चेहरे नहीं संगठन के दम पर लड़ेगी. वे यहीं नहीं रुके उन्होंने ये भी कहा कि जी कुशाभाऊ ठाकरे और राजमाता को समर्पित होगी. यानी ये साफ़ है कि जीत की सूरत में अगला मुख्यमंत्री शिवराज बने ये जरुरी नहीं.
राजनीतिक पंडितों की मानें तो शिवराज के चेहरे पर चुनाव लड़ने में पार्टी को थोड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता हैं, पर यदि शिवराज को पूरी तरह से बाहर बैठा दिया जाये तो पार्टी की हार भी तय है. प्रदेश में आज भी शिवराज से बेहतर चेहरा बीजेपी के पास नहीं हैं. कर्नाटक चुनाव में यदि बीजेपी की सरकार बन जाती तो निश्चित ही शिवराज के चेहरे को पीछे धकेलने में शाह देरी नहीं करते. पर अब वे ऐसी जोखिम नहीं ले पायेंगे। संघ भी उन्हें ऐसा करने नहीं देगा. एक तरह से कर्नाटक में शाह की हार पर मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री कह सकते हैं -शिवराज खुश हुआ.