राधिका खेड़ा अपने साथ कई किस्म की बदसलूकी की बात कहती हैं, रात में होटल के कमरे के दरवाजे पीटने की बात कहती हैं, और शराब पीने के प्रस्ताव का आरोप भी लगाती हैं।
-सुनील कुमार
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस पार्टी में एक नया बवाल मीडिया का काम देखने वाले उसके लोगों के बीच हुआ। दिल्ली से आई पार्टी की राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक राधिका खेड़ा ने रोते हुए ये गंभीर आरोप लगाए कि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने उनसे बदसलूकी की, और उनकी शिकायतों पर पिछले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर दिल्ली के बड़े कांग्रेस नेताओं तक किसी ने भी कुछ नहीं किया।
ऐसी चर्चा है कि विधानसभा चुनाव के पहले से यह टकराव चल रहा था, और छत्तीसगढ़ में मतदान के बीच आधे से अधिक सीटों पर बाकी मतदान के पहले राधिका खेड़ा ने यह बम फोड़ा है, और इसके पीछे भाजपा हो सकती है।
अब आज अगर कांग्रेस पार्टी के भीतर यह बवाल हो रहा है, तो सबसे पहले तो कांग्रेस के नेता जिम्मेदार हैं जिन्हें 6 महीने पहले से टकराव मालूम था, और उन्होंने इसे नहीं निपटाया। आज जब पूरा देश राम से अधिक भाजपा का नाम लेने के माहौल से गुजर रहा है, उस वक्त अपने घर की आग के लिए कांग्रेस भाजपा पर तोहमत लगाए, इससे कुछ अधिक हासिल नहीं होना है।
लेकिन इस विवाद से कुछ बातें उठी हैं, और उन पर कांग्रेस पार्टी, और उसे छोड़ देने वाली राधिका खेड़ा दोनों को जवाब देना चाहिए। हम किसी महिला की की हुई शिकायत को पहली नजर में गलत नहीं मानते हैं, लेकिन दोनों तरफ की महज जुबानी तल्खी की शिकायतों का हल वह निकल सकता है जो सुशील आनंद शुक्ला ने सुझाया है, उन्होंने कहा है कि वे नार्को टेस्ट करवाने के लिए तैयार हैं, और उससे इन आरोपों को भी कसौटी पर चढ़ाया जा सकेगा जिनके मुताबिक राधिका खेड़ा अपने साथ कई किस्म की बदसलूकी की बात कहती हैं, रात में होटल के कमरे के दरवाजे पीटने की बात कहती हैं, और शराब पीने के प्रस्ताव का आरोप भी लगाती हैं।
नार्को टेस्ट ऐसे विवाद का एक अच्छा हल हो सकता है जिसके अधिक सुबूत नहीं हैं, और जिनके पीछे गहरी राजनीति होने के संदेह या आरोप हैं। सार्वजनिक जीवन में जब बात चाल-चलन पर आती है, तो नार्को टेस्ट की बात पर राधिका खेड़ा को भी हॉं कहना चाहिए।
चूंकि यह मामला कई दिनों से खबरों में बना हुआ है, और अब कांग्रेस पार्टी पर उसे छोड़ते हुए उसकी एक बड़ी प्रवक्ता ने यह आरोप लगाया है कि चूंकि वे रामलला के दर्शनों को अयोध्या गई थीं, इसलिए हिन्दूविरोधी कांग्रेस पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।
उन्होंने अपने इस्तीफे में बार-बार राम का जिक्र किया है, और अभी कुछ दिन पहले तक मीडिया से बात करते हुए वे बार-बार इस बात का जिक्र कर रही थीं कि कांग्रेस पार्टी हिन्दूविरोधी नहीं हैं, और उसने उनके (राधिका के) अयोध्या जाने पर भी कोई आपत्ति नहीं की थी।
उन्होंने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के संचार विभाग के साथ अपने टकराव के चलते हुए भी एक बार भी अयोध्या का जिक्र नहीं किया था, पार्टी के रामविरोधी या हिन्दूविरोधी होने की चर्चा नहीं की थी। अब एकाएक उन्होंने राम का नाम लेकर जितने गंभीर आरोप लगाए हैं, वे कांग्रेस पार्टी के इस घोषित रूख के ठीक खिलाफ हैं कि उसके नेता-कार्यकर्ता, सदस्य अपनी मर्जी से अयोध्या जाना तय करें। पार्टी ने इसे संगठन का मुद्दा नहीं बनाया था, और लोगों की अपनी पसंद या विवेक पर इसे छोड़ दिया था। अब राधिका खेड़ा उसके ठीक खिलाफ यह बात कह रही हैं।
राम के नाम पर अगर इतना बड़ा विवाद हो रहा है, तो नार्को टेस्ट जैसी अग्नि परीक्षा से किसी को परहेज नहीं होना चाहिए। चूंकि बदसलूकी की अधिक शिकायत राधिका खेड़ा को है, इसलिए छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रमुख प्रवक्ता का नार्को टेस्ट होना बेहतर होगा, और उन्होंने खुद ही इसका प्रस्ताव भी रख दिया है।
लेकिन इस विवाद में कुछ दूसरी चीजें सामने आई हैं जिनकी भी जांच हो जानी चाहिए। एक आरोप यह आया है कि राधिका खेड़ा की मां की एक कंपनी है जो कि फिल्में बनाती है, और छत्तीसगढ़ में सरकार या कांग्रेस पार्टी से उसे फिल्म बनाने का काम मिला था, और उसके भुगतान का भी कोई विवाद चल रहा है।
अगर ऐसा है तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कांग्रेस संगठन के लोग अपनी घरेलू कंपनियों को लेकर संगठन या पार्टी की सरकार को किस तरह दुहते हैं, और क्या इस बारे में पार्टी की कोई नीति है?
यह विवाद इसलिए भी सुलझाना चाहिए कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में अभी एक ऐसा एग्रीमेंट सामने आया था जिसके मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा के बेटे की कंपनी को कांग्रेस पार्टी से पांच-छह करोड़ रूपए दिए गए थे। इसके अलावा यह बात भी जगजाहिर है कि विनोद वर्मा की कुछ दूसरी कंपनियां भूपेश सरकार का कई तरह का काम कर रही थीं।
यह चर्चा भी आम रहती हैं कि कांग्रेस हाईकमान के आसपास के कई बड़े नेता अपनी कुछ बेनामी कंपनियों के नाम से विज्ञापन, चुनाव सर्वे, और रणनीति जैसे कामों के नाम पर पार्टी से मोटी रकम ले लेते हैं। अब अगर राधिका खेड़ा के मामले में ऐसा हुआ है, तो उसका भी खुलासा होना चाहिए, और नार्को टेस्ट होने पर तो तमाम बातों का खुलासा हो सकता है।
हम भारत जैसी, गटर के पानी से भी गंदी हो चुकी, राजनीति में नार्को टेस्ट को फिटकरी की तरह का देखते हैं जो कि गंदे पानी को साफ करने के लिए सदियों से इस्तेमाल हो रही है। न सिर्फ कांग्रेस के इस मामले में, बल्कि सत्ता पर बैठे तमाम लोगों का कार्यकाल खत्म होने पर अगर उनका अनिवार्य रूप से नार्को टेस्ट करवाया जाए, और उनके बारे में हवा में चल रहे तमाम विवादों पर सवाल किए जाएं, तो हो सकता है कि यह आधुनिक फिटकरी राजनीति से गंदगी कुछ दूर तक तो कम कर दे।
ऐसा होने पर जनता का भी अधिक भरोसा राजनीति, और कुल मिलाकर लोकतंत्र पर लौट सकता है। आज जनता सरकार को टैक्स देने से इसलिए भी बचना चाहती है क्योंकि उसे मालूम है कि सरकारें बहुत भ्रष्ट रहती हैं, और उसके दिए हुए टैक्स जनता के काम कम आते हैं, भ्रष्टाचार में अधिक जाते हैं। आज का मुद्दा वैसे तो कांग्रेस संगठन के भीतर के विवाद से शुरू हुआ था, लेकिन इसका विस्तार नार्को टेस्ट के व्यापक इस्तेमाल तक करने के बारे में जनमत तैयार करने के लिए होना चाहिए।
वैसे भी जो लोग संविधान की शपथ लेकर पांच बरस अप्सरा की तरह रिझाने वाली सत्ता पर सवार रहते हैं, उन्हें इतना त्याग तो करना ही चाहिए कि सत्ता की शानदार इनिंग के बाद वे नार्को टेस्ट को उसी तरह तैयार रहें जिस तरह कि ओलंपिक में शामिल होने तमाम खिलाड़ी नशे की जांच के लिए तैयार रहते हैं।
और राधिका खेड़ा ने कांग्रेस से दिए इस्तीफे में जितने दर्जन बार राम का नाम लिया है, उसे देखते हुए उन्हें भी सुशील आनंद शुक्ला के साथ-साथ नार्को टेस्ट के लिए तैयार रहना चाहिए, आखिर अग्निपरीक्षा गौरवशाली भारतीय परंपरा रही है, और राम के युग से ही इसका चलन भी रहा है।