सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
चारों तरफ साइबर-फ्रॉड की खबरें चल रही हैं, और इस बीच एक मामला ऐसा आया जिसमें एक रिटायर्ड कर्मचारी से उसकी पत्नी और पत्नी के भाई ने ही 80 लाख रूपए ठग लिए। एक दूसरी खबर बताती है कि किस तरह एक नौजवान ने अपने रिश्तेदार के नवजात बच्चे की किडनी खराब होने की झूठी मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर दिखा दी, और उसके बाद डेढ़ लाख रूपए का बताकर हर महीने एक-एक इंजेक्शन लगवाने के नाम पर ठगी की, और मोबाइल पर फर्जी मैसेज भेजकर एक करोड़ 80 लाख रूपए झटक लिए। अब राजस्थान पुलिस ने छत्तीसगढ़ आकर इस नौजवान को गिरफ्तार किया है। बहुत सारे मामलों में लोग परिवार के भीतर सेक्स-क्राईम करते हैं, कत्ल कर देते हैं, और बाकी तमाम किस्म के जुर्म भी करते हैं।
लोगों के बीच यह आम सोच रहती है कि खून का रिश्ता, या पारिवारिक रिश्ता ही सबसे मजबूत होता है। हमने घरों के भीतर ही इतने किस्म की साजिशें देखी हैं, और इतने किस्म के जुर्म देखे हैं कि लगता है कि दुश्मन पाने के लिए घर के बाहर जाने की जरूरत भी नहीं है। फिर एक बात यह भी रहती है कि घर के भीतर, जहां धोखे का खतरा बड़ा कम लगता है, वहां पर जब धोखा होता है, तो लोग उसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं रहते हैं। हर कुछ हफ्तों में कोई न कोई ऐसा मामला आता है जिसमें पति, पत्नी, और प्रेमी या प्रेमिका के बीच के प्रेम-त्रिकोण में से कोई दो कोने तीसरे कोने का कत्ल करते हैं। और लोग इसकी जरा भी उम्मीद नहीं रखते, कोई आशंका नहीं रहती, इसलिए उन्हें निपटाना बड़ा आसान भी रहता है। निजी पारिवारिक संबंधों से परे भरोसे के कारोबारी रिश्तों में भी लोग इतना गहरा धोखा देते हैं कि भागीदार को सडक़ पर ला देते हैं।
अब चारों तरफ से जब ऐसी खबरें आती हैं, उसके बाद भी अगर लोगों का भरोसा खून के रिश्तों पर अधिक रहता है, या निजी प्रेमसंबंध, या निजी दोस्ती पर अधिक रहता है, तो क्या कहा जा सकता है। हर किसी को अपने आसपास हर किस्म के रिश्ते में धोखाधड़ी दिखाई देती है, बस लोग यह मानकर चलते हैं कि उनके आसपास के लोग कभी ऐसा नहीं करेंगे। लोगों को अपने खुद के मन की ऐसी गारंटी पर कुछ काबू पाना चाहिए, और यह मानकर चलना चाहिए कि उनके आज के करीबी लोग भी वैसे ही हाड़-मांस के इंसान हैं जैसे इंसान दूसरों को धोखा देने वाले भी रहते हैं। अगर लोग धोखा खाने के खतरे की तरफ से थोड़ी सी सावधानी बरतेंगे, तो हो सकता है कि असीमित विश्वास न रहने से धोखा देने की नीयत रखने वाले को भी पीठ में छुरा उतना गहरा भोंकने का मौका न मिले। थोड़ी सी सावधानी हर किस्म के रिश्ते में जरूरी रहती है, इसे हम अविश्वास नहीं कहेंगे, महज सावधानी कहेंगे।
जिस तरह कुछ लोग धर्म के मामले में, आध्यात्म या गुरू के मामले में, जादू-टोने, पूजा-पाठ, या तांत्रिक क्रिया के मामले में अंधविश्वासी रहते हैं, और उनका अंधविश्वास उनकी तर्कशक्ति, और उनकी न्यायशक्ति दोनों को खत्म कर देता है। नतीजा यह होता है कि वे धोखा देने वाले बाबाओं या तांत्रिकों को भी इतना अतिआत्मविश्वासी बना देते हैं कि उनका अंत जेल पहुंचकर होता है। अंधविश्वास सिर्फ भक्त के लिए घातक नहीं होता, वह आगे चलकर गुरू को भी डुबाकर छोड़ता है। इसलिए अंधविश्वास न तो ऊपर की लाईनों में लिखे गए लोगों पर होना चाहिए, न ही परिवार के भीतर। हर किस्म के रिश्ते में एक प्राकृतिक सावधानी बरतना जरूरी रहता है, ताकि किसी के दिमाग में धोखा देना आसान काम न लगे, और न कोई अपने आपको धोखा पाने के लिए आसान निशाना बनाकर पेश करे।
यह बात लोगों को अटपटी लगेगी क्योंकि लोग बहुत करीबी रिश्तों में अंधविश्वास को एक स्वाभाविक बात मानते हैं। लेकिन सच तो यह है कि दुनिया में दूसरे लोगों को लगी ठोकरों से बाकी लोगों को भी समझना चाहिए। दूसरों के तजुर्बों से अगर बाकी लोग सावधानी बरतना सीखें, तो यह उनके आसपास के लोगों के लिए भी भली बात होगी। लोगों को अपने बहुत ही मजबूत रिश्तों में बंधे हुए परिवार के लिए भी साफ-साफ वसीयत करके जाना चाहिए, और यह वसीयत जाते-जाते नहीं हो सकती, क्योंकि भला किसको पता रहता है कि उन्हें कब रवाना होना है। आजकल तो किसी भी उम्र के लोग सडक़ हादसों में, या खेल के मैदान में जवान मौत मरते दिखते हैं। इसलिए वसीयत को बुढ़ापे से जोडक़र नहीं देखना चाहिए, वसीयत को संपत्ति से जोडक़र देखना चाहिए कि जैसे ही कोई संपत्ति जुड़े, उसके लिए वसीयत तय कर दी जाए। फिर चाहे वह वसीयत अपनी जिंदगी खत्म होने के बाद लागू होने वाली हो। जिस तरह हमने सुझाया है कि अंधविश्वास से बचना अपने गुरू को भी खतरे से बचाना होता है, उसी तरह परिवार के भीतर वसीयत परिवार के लोगों के बीच मुकदमेबाजी के खतरे को भी खत्म करती है। एक वक्त ऐसा रहता है जब परिवार के भीतर सबको एक-दूसरे से खूब प्रेम रहता है, लेकिन जब भाईयों के बीच दीवार उठती है, तो जरूरत से खासी अधिक ऊंची उठती है। जिन लोगों में किसी वक्त इतना प्रेम रहता है कि एक खाए दूसरे का पेट भरने लगे, उनके बीच किसी तरह गोलीबारी होती है, इसे उत्तर भारत के सबसे बड़े शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा के परिवार में देखा गया था जिसमें दसियों हजार करोड़ की दौलत रहते हुए भी दो सगे भाईयों के बीच ऐसी गोलीबारी हुई कि उन दोनों के साथ-साथ कई और लोग भी मारे गए। पैसा कुछ न बचा पाया, और घर के भीतर इतना खून-खराबा हो गया। दौलत और कमाई इतनी थी कि अगली सैकड़ों पीढिय़ों तक कुछ और कमाने की जरूरत नहीं थी, लेकिन मौजूदा पीढ़ी ही उसे भोग नहीं पाई, और आपसी गोलियों ने उन्हें खत्म कर दिया।
हमारी आज की बात कुछ लोगों को पढऩे में खराब लग सकती है, लेकिन हम जिंदगी की कड़वी हकीकत को अनदेखा करना नहीं चाहते, और लोगों को भी अपने रिश्ते अधिक अच्छे बनाने के लिए, बनाए रखने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए, और अंधविश्वास से बचना चाहिए। दुनिया के तजुर्बे, और अपनी तर्कशक्ति पर टिके हुए रिश्ते अधिक मजबूत और महफूज होंगे।