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तमिलनाडु के एक मेडिकल कॉलेज में इंटर्न के रूप में काम कर रही पांचवे वर्ष की छात्रा डॉ. गार्गी ने एम्स एडमिशन नोटिफिकेशन के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। यह याचिका अभी तक दायर याचिकाओं में से अनूठी है। क्यूंकि अभी तक अलग अलग व्यवसायों के लिए कोटा के लिए कोर्ट में आवेदन लगाए गए लेकिन मेडिकल फील्ड के लिए ये अपने तरह का अनूठा केस है। ट्रांसजेंडर्स को दी जाने वाली विशेष व्यवस्था के तहत डॉ. गार्गी, तमिलनाडु के एक मेडिकल कॉलेज में इंटर्न के रूप में काम कर रही हैं।
Transgender doctor filed a petition in the High Court -नई दिल्ली।डॉ. विग्नेश धनंजयन, जिन्होंने अपना नाम गार्गी चुना है। तमिलनाडु-आंध्र प्रदेश सीमा पर एक गांव में पैदा हुई थीं और जन्म के समय उन्हें “पुरुष” नाम दिया गया था। जब वह लगभग 10 वर्ष की थीं, तब उन्हें एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपनी लिंग पहचान और अभिव्यक्ति का एहसास हुआ। महज 25 साल की उम्र में, गार्गी अब भारत की कुछ ट्रांसजेंडर डॉक्टरों में से एक हैं। ट्रांसजेंडर डॉक्टर ने पीजी कोर्स कोटा के लिए हाईकोर्ट में की याचिका दायर
डॉ. गार्गी उन कुछ ट्रांसजेंडर डॉक्टरों में से एक हैं, जिन्होंने मेडिकल शिक्षा में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में आरक्षण के लिए अपनी लड़ाई को अदालतों तक पहुंचाया है।
इस महीने की शुरुआत में दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में, डॉ. गार्गी ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा प्रवेश के लिए जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी है। जुलाई 2025 सत्र में पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए Institute of National Importance Combined Entrance Test (INI-CET) को भी चुनौती दी है।
INI-CET का आयोजन एम्स, दिल्ली द्वारा 19 एम्स सहित राष्ट्रीय महत्व के 23 नामित संस्थानों में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (MD, MS, DM, MCh, MDS) में प्रवेश के लिए किया जाता है।
डॉ. गार्गी की याचिका में बताया गया है कि नोटिस में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण की किसी योजना या नीति को रेखांकित नहीं किया गया है। क्षैतिज आरक्षण(horizontal reservations) का अर्थ है अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग जैसे प्रत्येक ऊर्ध्वाधर आरक्षण श्रेणी के भीतर कुछ वंचित समूहों, जैसे महिलाओं या विकलांग व्यक्तियों के लिए अलग से कोटा निर्धारित करना है। इसलिए क्षैतिज कोटा प्रत्येक ऊर्ध्वाधर श्रेणी(vertical categories) में अलग-अलग लागू होता है।
डॉ. गार्गी ने मांग की है कि प्रवेश नोटिस को असंवैधानिक घोषित किया जाए। वह एक नए नोटिस की भी मांग कर रही हैं जो प्रत्येक vertical category में ऐसे व्यक्तियों के लिए 1 प्रतिशत सीटें आरक्षित करके ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग से आरक्षण प्रदान करता है। जो निर्धारित हॉरिजॉन्टल रिजर्वेशन हो।
पिछले महीने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर की गई थी, जिसमें पीजी पाठ्यक्रमों (NEET-PG 2024) के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा के नोटिस को चुनौती दी गई थी, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण की कमी की ओर इशारा किया गया था।
यह याचिका डॉ. बी. वेंकट भगीरथी मिथ्रा द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण की मांग करते हुए दायर की गई थी।
2023 में, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने डॉ. कोय्याला रूथ जॉन पॉल की एक ऐसे ही केस में निर्णय देते अधिकारियों को निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने कहा था वे NEET-PG 2023 के लिए केंद्रीय कोटा या राज्य कोटा के तहत किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश पर विचार करते समय उनकी अनुसूचित जाति की स्थिति के अलावा तीसरे लिंग की स्थिति का लाभ बढ़ाएँ। जो उनके लिए लाभकारी हो।
इसी तरह के एक निर्णय में उच्च न्यायालय ने 2023 में डॉ. प्राची राठौड़ के लिए भी इसी तरह का अंतरिम आदेश पारित किया। इसमें भी अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे काउंसलिंग के तीसरे दौर में उनके प्रवेश पर विचार करते समय उनकी अनुसूचित जनजाति की स्थिति के अलावा उन्हें तीसरे लिंग की स्थिति का लाभ भी प्रदान करें ।
“यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत लड़ाई है… अपने गांव से यहां तक आने पर ऐसा लगता है कि मैंने वही चीजें हासिल करने के लिए पहाड़ पार कर लिए हैं जो मेरे कई साथियों के लिए आसानी से सुलभ थीं। यहां तक कि अपनी इंटर्नशिप के दौरान भी, मुझे कार्यस्थल पर जिस तरह के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, वह असहनीय था।”
-डॉ. गार्गी
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