Tablighi Jamaat did not spread the infection, will the hateful media apologize?

Tablighi Jamaat did not spread the infection, will the hateful media apologize?

तबलीगी जमात ने नहीं फैलाया संक्रमण, नफरती मीडिया माफ़ी मांगेगा ?

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Tablighi Jamaat did not spread the infection, will the hateful media apologize?

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पंकज मुकाती (Editor Politicswala )

एक बड़ी खबर है। याद है कोरोना संक्रमण का वो दौर। इस पर पांच साल बाद एक बड़ा फैसला आया है। जिस तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने के आरोप थे। वे सभी आरोप हाईकोर्ट ने खारिज कर दिए।

अब उस मीडिया का क्या होगा जिसने तबलीगी जमात को गुनाहगार साबित कर ही दिया था। प्राइम टाइम शो में कई सप्ताह तक संक्रमण का दोष तबलीगी
और इस्लाम को मांनने वालों पर मढ़ा था। क्या अब उस मीडिया पर कोई केस चलेगा? क्या मीडिया अपने इस गुनाह की माफ़ी मांगेगा?

ये फैसला एक बेहतर फैसला है। धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तान में अदालतों से इन्साफ की उम्मीद जिन्दा रखता है।

याद करिये , कोरोना के दौर में एक और संक्रमण फैला था। सांप्रदायिकता का। एक मजहब विशेष को ही इस कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार माना गया। उनपर ये लादने की खूब कोशिश हुई कि कोरोना के संक्रमण को फैलाने के जिम्मेदार जमात के लोग हैं।

एक तरह से लगभग सभी हिंदूवादी डॉक्टर बने हुए थे और चीन और सरकारी नाकामी को हमने क्लीन चिट दे रखी थी। क्योंकि हमारे पास सारी अराजकता, ऑक्सीजन की कमी, लोगों की मौत को मढ़ने के लिए कुछ चेहरे थे। हमने भरपूर उनको कोसा।

मौत के तांडव में जमात से जुड़े लोगों की भी जानें गई। इन मौतों पर ये भी कहा गया -इनके साथ यही होना चाहिए। हम उस मुश्किल दौर में इंसानियत भी भूल चुके थे। क्योंकि हमारे खून में एक अलग ही तरह का संक्रमण उस वक्त फैला हुआ था।

कोरोना तो चला गया। पर वो जहरीला नफरती संक्रमण अब भी अधिकांश के अंदर दौड़ रहा है। कुछ लोगों में तेजी से फ़ैल भी रहा है।

इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरूवार को निजामुद्दीन में मार्च 2020 में आयोजित तबलीगी जमात के आयोजन में विदेशी प्रतिभागियों को पनाह देने के आरोप में 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ दर्ज किए गए 16 मामलों को रद्द कर दिया। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने फैसला सुनाते हुए कहा, “चार्जशीट्स रद्द की जाती हैं।

यह फैसला उन 16 याचिकाओं के जवाब में आया, जिनमें उन भारतीय नागरिकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी, जिन्होंने कथित रूप से विदेशियों को अपने यहां ठहराया था।

मार्च 2020 में कोरोना के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के समय, इस धार्मिक आयोजन में शामिल कई लोग, जिनमें विदेशी नागरिक भी थे। वे देश के विभिन्न हिस्सों में फैल चुके थे। जबकि कुछ लोग निजामुद्दीन मरकज में ही रुके हुए थे। उन सभी को देशभर में ढूंढने के लिए व्यापक खोज अभियान भी चलाया गया था।

मालूम हो कि कई विदेशी नागरिकों ने जुर्म स्वीकार कर स्वदेश वापसी कर ली थी। वहीं कुछ ने आरोपों का विरोध करने का विकल्प चुना था। सभी जिनके खिलाफ संक्रमण फैलाने का मुकदमा चला, वे अंततः या तो बरी कर दिए गए या आरोपमुक्त कर दिए गए।

सवाल उठता है कि जब कोर्ट ने इस मामले में कोई अपराध नहीं पाया, तो क्या मुख्यधारा का मीडिया, जिसमें इंडिया टुडे, ज़ी टीवी जैसे चैनल और अर्नब गोस्वामी, दीपक चौरसिया जैसे एंकर्स अपनी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग के लिए माफ़ी मांगेंगे और अपनी रिपोर्टें वापस लेंगे?क्या वह पत्रकारिता थी?

न्यूज़लॉन्ड्री” ने जरूर आवाज उठाई। चैनल ने कोरोनाकाल में मुख्यधारा के मीडिया द्वारा निभाई गई भूमिका को कटघरे में खड़ा किया गया है। पांच वर्ष पूर्व ये मीडिया क्या कर रहा था, याद दिलाया है।

खासकर, कुछ टीवी न्यूज़ एंकर्स ने कैसे एक हेल्थ संकट को सांप्रदायिक साजिश में बदल दिया था और मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 महामारी के दौरान तबलीगी जमात को लेकर सांप्रदायिक रिपोर्टिंग की थी।

खैर इन्साफ हुआ। पर मीडिया में फैले रंग अंधत्व का इलाज होगा ? मीडिया और समाज में फैलते रंग और मजहबी संक्रमण का कोई अदालत फैसला करेगी?
या पांच पांच साल तक ऐसे ही हम जमात या दूसरे आम लोगों को गुनहगार बताकर प्रताड़ित करते रहेंगे।

ये इन्साफ तो हुआ पर एक पंक्ति याद आती है – बहुत देर कर दी हुजूर आते आते।

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