तुम तो ख्वाबों की दुनिया का ही गला घोंट गए !

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नवीन रांगियाल  

‘हमारे पास जीने के मौके नहीं थे, न ही कोई वजह थी ज‍िंदगी की। फि‍र भी हम जी रहे हैं अपनी तकलीफों की दुन‍िया में। हमने अपनी हकीकतों पर भी खरोंच नहीं आने दी। तुम तो अपने ख्‍वाबों की दुन‍िया का ही गला घोंट गए।

सपनों की एक दुनि‍या होती है, ज‍िसे हर कोई हास‍िल करना चाहता है। ज‍िनके सपने पूरे नहीं होते, वो अपनी हकीकत की दुन‍िया की तकलीफों में जैसे-तैसे जी लेते हैं। अपनी तकलीफों को भोग लेते हैं और ज‍िंदगीभर उनसे जूझते र‍हते हैं। लड़ते, गि‍रते, उठते और संभलते हुए। लेक‍िन तुम्‍हें तो अपने ख्‍वाब की दुन‍िया हासिल हो चुकी थी सुशांत स‍िंह। तुम्‍हें तो ख्‍वाबों का एक पूरा संसार हासिल हुआ था, जहां तुम सांस लेते थे। गाते थे और नाचते थे पहाड़ों और नद‍ियों के आसपास।

तुम्‍हारे पास तो परीखानों का एक हसीन संसार था। तुम उसके आसमान के स‍ितारे से थे। तुम उस द‍िलकश दुन‍िया में थे, ज‍िसकी माया और चकाचौंध को हम आंखें मूंदकर देखते हैं, फ‍िदा होते हैं उस पर। उसके चमकते कांच के टुकडों को हम अपनी जर्जर हथेल‍ियों से छूना चाहते हैं। आंखों से देखकर उस पर यकीन करना चाहते हैं। हम यकीन करना चाहते हैं क‍ि ऐसी भी एक दुन‍िया है हकीकत के इस संसार से परे, जहां ख्‍वाब भी टांगों पर चलते हैं।

हम इस दुन‍िया के लोग अपनी तकलीफों और मजबुर‍ियों को भुलाने के ल‍िए बार-बार तुम्‍हारे ख्‍बाब की उस दुन‍िया में दस्‍तक देते हैं। कभी नींद में हमने तुम्‍हारी उस दुन‍िया की सैर की तो कभी माया नगरी के स्‍टेशन पर उतरकर अपनी आंखों में उसे करीब से नि‍हारना चाहा। लेक‍िन तुम अपनी ज‍िंदगी के साथ हमारे ख्‍वाबों का भी गला घोंट गए।

ख्‍वाब की ज‍िस दुन‍िया में हम जीना चाहते हैं, तुम उसी ख्‍वाब को तोड़कर चले गए। तुम्‍हारे पास जीने के बहाने थे लेक‍िन तुमने अपने ल‍ि‍ए चुना प्‍यासा का गुरुदत्‍त हो जाना। तुमने चुना अवसाद का प्रतीक होना। जि‍स तकलीफ से तुम गुजर रहे थे उसे साया करने के लि‍ए क्‍या तुम्‍हारे पास कोई एक यार तक नहीं था। कोई राजदार नहीं था। जो तुम्‍हारे गम को दो घड़ी बांटकर तुम्‍हारे द‍िल को बादल कर देता। उसे क‍िसी पेड़ के पत्‍ते में तब्दील कर देता।

क्‍या तुम्‍हारे पास कोई एक अपना न था जो तुम्‍हारे करीब आती हुई उस मनहूस आहट को सुनकर उसे दूर कर देता। धीमे-धीमे अपने सपनों और कामयाबी की ऊंचाई नापते हुए क्‍या तुम्‍हें एक बार भी नहीं लगा क‍ि अपनी फ‍िल्‍म के द एंड की तरह तुम भी अपने दुख से बाहर आ सकते हो।

तुम्‍हारे पास तो मौके थे जीने के। तुम क‍िसी पहाड़ के पास गीत गा लेते। ठंडी हवाओं में क‍िसी झरने में बहा आते अपनी फ‍िक्र। गैर मुकम्‍मल ज‍िंदगी में भी मौत गैरजरूरी होती है। क्‍योंक‍ि जीना तो है। क्‍योंक‍ि जीने के बहाने जीना होता है। हमारे पास जीने के मौके नहीं थे, नहीं थी कोई वजह ज‍िंदगी की। फि‍र भी हम जी रहे हैं अपनी हकीकत की दुन‍िया में। हमने जीने के बहाने पैदा कर ल‍िए हैं। हमने अपनी हकीकतों को भी खरोंच नहीं मारी, तुम तो अपने सपनों की दुन‍िया का ही गला घोंट गए। सुशांत स‍िंह।

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