Justice Yashwant Verma

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जस्टिस वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से झटका: अब बचे हैं सिर्फ 2 रास्ते, इस्तीफा सौंप दें या महाभियोग का सामना करें

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Justice Yashwant Verma: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ चल रही कार्रवाई को रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

जस्टिस वर्मा पर नकदी घोटाले यानी “कैश कांड” में गंभीर आरोप लगे हैं।

उनके घर से जली हुई नकदी की गड्डियां मिलने के बाद एक इन-हाउस कमेटी ने जांच की थी और उन्हें दोषी पाया था।

इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन चीफ जस्टिस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी।

जस्टिस वर्मा ने इस पूरी प्रक्रिया को चुनौती दी थी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई और जांच अवैध है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि जांच सही तरीके से की गई थी और प्रक्रिया का पालन हुआ है।

अब उनके पास सिर्फ दो ही रास्ते बचे हैं – या तो वे इस्तीफा दे दें या फिर संसद में महाभियोग की कार्यवाही का सामना करें।

नहीं रुकेगा जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से नकदी की गड्डियां बरामद हुई थीं, जिन्हें जला दिया गया था।

इस घटना के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने एक तीन सदस्यीय इन-हाउस कमेटी बनाई थी, जिसने इस मामले की जांच की।

जांच में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया गया, इसके बाद सीजेआई ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की सिफारिश की।

इस सिफारिश के खिलाफ जस्टिस वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और याचिका दायर कर कहा कि इन-हाउस कमेटी की जांच अवैध है और उनके खिलाफ कार्रवाई रोक दी जाए।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि प्रक्रिया के सभी नियमों का पालन हुआ। जस्टिस वर्मा ने समय रहते इस प्रक्रिया को चुनौती नहीं दी।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने स्पष्ट किया कि जांच समिति का गठन सही तरीके से किया गया था।

तत्कालीन सीजेआई द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र असंवैधानिक नहीं था। इस फैसले के बाद अब जस्टिस वर्मा के पास कोई और कानूनी विकल्प नहीं बचा है।

जस्टिस वर्मा के पास बचे हैं 2 रास्ते

पहला: इस्तीफा दें

अगर जस्टिस वर्मा खुद इस्तीफा दे देते हैं, तो वे महाभियोग की प्रक्रिया से बच सकते हैं। साथ ही, उन्हें रिटायर्ड जज के तौर पर पेंशन और अन्य लाभ भी मिलेंगे।

दूसरा: महाभियोग का सामना करें

अगर वे इस्तीफा नहीं देते और संसद में उनके खिलाफ महाभियोग पास हो जाता है, तो उन्हें न केवल पद से हटाया जाएगा बल्कि उन्हें पेंशन और अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी।

हालांकि, जस्टिस वर्मा पहले ही इस्तीफा देने से इनकार कर चुके हैं और उन्होंने खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताया है।

संसद के दोनों सदनों में महाभियोग का नोटिस

जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद के दोनों सदनों में महाभियोग का नोटिस दिया जा चुका है।

लोकसभा में 152 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। वहीं राज्यसभा में 54 सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन किया है।

हालांकि, अब तक इन प्रस्तावों को किसी भी सदन में औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है।

राज्यसभा के तत्कालीन सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को पुष्टि की थी कि उन्हें महाभियोग प्रस्ताव मिला है और प्रस्ताव पर 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर हैं।

लेकिन उसी दिन शाम को उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया।

अब नए उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए 9 सितंबर की तारीख तय की गई है। ऐसे में राज्यसभा में महाभियोग की प्रक्रिया फिलहाल अटकी हुई है।

कानूनी जानकारों का कहना है कि अगर कोई हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज खुद पर लगे आरोपों को गलत मानता है, तो वह सदन के सामने बयान देकर इस्तीफा दे सकता है।

ऐसी स्थिति में उसका मौखिक बयान ही इस्तीफा माना जाएगा। इससे वह महाभियोग जैसी सख्त कार्रवाई से बच सकता है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जस्टिस वर्मा के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।

अब देखना होगा खुद से इस्तीफा देते हैं या संसद में महाभियोग की कार्यवाही का सामने करते हैं।

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