नमोशिवराज .. शिवराज सिंह चौहान ने दर्शा दिया कि जननायक यूँ ही नहीं कहलाते। संयम से अपने कर्म में जुटे रहकर उन्होंने अपनी जगह फिर पा ली।खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से कहा -मैं शिवराज को दिल्ली ले जाना चाहता हूँ, पहले चरण में कम मतदान के बाद दिल्ली की निगाह शिवराज की लोकप्रियता पर गई। अब अगले सभी चरण में प्रदेश में प्रचार का स्टार चेहरा शिवराज ही होंगे। वे भीड़ और वोट दोनों जुटाने की ताकत रखते हैं
पंकज मुकाती Politicswala
अटल जी की पंक्तियाँ हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा। इन पंक्तियों को यदि हकीकत में किसी ने जीया तो वो एक ही शख्स है। वो हैं शिवराज सिंह चौहान। शांत, संयत साथ में योद्धा। अंत तक किला लड़ाते रहने वाले योद्धा। कभी हार नहीं मानते। विधानसभा चुनाव के पहले एक वक्त आया जब सबने उन्हें सिरे से ख़ारिज कर दिया।
उनके लिए खड़ाऊ के आर्डर भी कर दिए गए। बस, अब वानप्रस्थ की तरफ ही बढ़ना है। सिंहासन पर बीस साल से जमे शिवराज जानते थे कि आसानी से ख़ारिज नहीं कर सकता कोई भी उन्हें। वे फिर लौटेंगे। पटरी से उतरने के बाद वापसी का कोई शार्ट कट नहीं होता। शिवराज ने भी शार्ट कट नहीं चुना। वे फिर बन गए पाँव-पाँव वाले भैया। प्रदेश में घुमते रहे।
स्टार प्रचारकों में उनकी सबसे ज्यादा मांग है। भीड़ से आज भी मेरे भैया, मामा के शब्द गूंजते हैं। अपनी कड़ी मेहनत और जनता के जुड़ाव से शिवराजफिर लौटे। इस बार 29 में से लोकसभा के 15 टिकट उनकी ही मर्जी से हुए। बुधवार को प्रदेश में शो मोदी का था पर पूरे वक्त केंद्र में रहे शिवराज सिंह चौहान।
ऐसे योद्धा को किनारे करने के मायने हैं, बहुत कुछ खो देना। पहले चरण में मतदान के कम प्रतिशत ने भी मोदीशाह के माथे पर बल तो ला ही दिया होगा। ऐसे में बुधवार को प्रधानमंत्री ने सभा में भरे मंच से कहा कि मैं शिवराज को दिल्ली ले जाना चाहता हूँ। भीड़ ने जो तालियां बजाई यदि उसको डेसिमल में नापा जाता तो शायद वो आईपीएल में धोनी की एंट्री पर होने वाले शोर जितनी ही होती। मोदी ने इसके जरिये जनता को वापस जोड़ा और बचे हुए चुनाव के लिए शिवराज को चेहरा बना गए।
अगले कई चरण में शिवराज प्रदेश के चुनाव में सभाओं में दिखाई देंगे। वे अपने अंदाज़ में भीड़ भी जुटाएंगे और वोट भी। ये दिल्ली भी जानती है। शिवराज ने राजनीति में धैर्य के मायने भी समझाए। वे पद छूटने के बाद थोड़े दिन नाराज से दिखे, फिर ट्रैक पर आ गए।
हम प्रदेश में ही देखें तो धैर्य न रखने के नतीजे में कई बड़े नेता अपना सम्मान खो बैठे। सबसे बड़ा उदाहरण तो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ही हैं। इसके पहले वीरेंद्र सकलेचा भी ऐसे ही कारणों से पार्टी में किनारे कर दिए गए। भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा भी उसी राह पर है।
एक शब्द में कहें तो शिवराज के लिए दिल्ली दूर नहीं। मोदी कैबिनेट में वे मजबूत मंत्री बनेगे। शपथ के पथ पर वे बढ़ चुके हैं।