सुनील कुमार (संपादक, डेली छत्तीसगढ़ )
छत्तीसगढ़ के कांग्रेस और भाजपा नेताओं में शराब को लेकर बहस चल रही है। भाजपा के एक बड़े नेता, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने शराब के मिलावटी होने का आरोप लगाया, तो जवाब में कांग्रेस के लोग टूट पड़े कि कौशिक शराब पीते हैं।
इस बयानबाजी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कांग्रेसियों के लगाए आरोपों को खराब बताया है कि नेता प्रतिपक्ष को जो शिकायतें मिलीं उनके आधार पर उन्होंने बयान दिया है, इसे इस तरह बताया जा रहा है कि मानो धरमलाल कौशिक शराब पीते हैं।
अब शराब हिन्दुस्तान में एक हकीकत भी है, और जनधारणा उसके खिलाफ इस तरह है कि खुद तो लोग शराब पीना चाहते हैं, लेकिन अपने नेताओं से उम्मीद करते हैं कि वे शराब न पिएं। यह भी हो सकता है कि उनकी नेताओं से ऐसी उम्मीद न हो, क्योंकि उनको हकीकत का अहसास हो, लेकिन नेता खुद ही अपनी ऐसी तस्वीर पेश करना चाहते हों कि वे शराब नहीं पीते हैं।
यह देश शराब के मामले में असभ्य देश है, कोई पार्टी हो, या कहीं और मुफ्त की शराब हो, लोग गिरने-पडऩे तक पीने लगते हैं, कि मानो कोई अगला सबेरा होना ही नहीं है। दुनिया के बहुत से ऐसे देश हैं जहां शराब पीना रोजमर्रा की संस्कृति है, और लोग परिवार के साथ बैठकर शराब पीते हैं, लेकिन बहकने के पहले थम जाते हैं, और वहां रिहायशी इलाकों के बीच भी शराबखाने रहते हैं, सरकारी या सामाजिक संस्थाओं की पार्टियों में भी शराब रखी जाती है, लेकिन शराब वहां गंदी चीज नहीं बन पाई है, जैसी कि हिन्दुस्तान में है।
एक तरफ तो हिन्दुस्तान में इक्का-दुक्का नेताओं को छोडक़र कोई भी सार्वजनिक रूप से यह मंजूर नहीं करते कि वे शराब पीते हैं। कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री रहे, और उन्होंने अपने शराब पीने की बात कभी नहीं छुपाई। शिवसेना के बाल ठाकरे बियर पीते थे, और उन्होंने वह बात नहीं छुपाई।
बाल ठाकरे ने एक आमसभा में शरद पवार पर यह आरोप लगाया था कि वे रोज शाम अपने पूंजीपति दोस्तों के साथ बैठते हैं, और विदेशी शराब पीते हैं। अपने खुद के बारे में उन्होंने कहा- मैं राष्ट्रवादी हूं, और मैं सिर्फ हिन्दुस्तानी बियर पीता हूं, रोज दो बोतल बियर मेरा पेट ठीक रखती है।
लेकिन राष्ट्रीय स्तर के कोई और नेता एकबारगी याद नहीं पड़ते जिन्होंने अपने पीने के बारे में खुलकर मंजूर किया हो। हालत यह है कि लोग अपने विरोधियों की ऐसी तस्वीरें जुटाने में लगे रहते हैं जिनमें कांच के पारदर्शी ग्लास में वे दारू के रंग का कुछ पीते दिख रहे हैं, फिर चाहे वह काली या लाल चाय ही क्यों न हों।
हिन्दुस्तान में दारू पीने की संस्कृति और सभ्यता न होने से यह नौबत आई है कि दारू इतनी बदनाम हो गई है। वरना जिन लोगों को ब्रिटिश संसद जाना नसीब हुआ है, वे अगर इसके बारे में पहले से पढ़े बिना जाते हैं, तो यह देखकर हक्का-बक्का रह जाते हैं कि वहां निम्न और उच्च सदन, दोनों के सदस्यों के लिए अलग-अलग शराबखाने संसद भवन के भीतर ही हैं।
वहां मीडिया के लिए भी अलग से शराबखाना है, और शायद मंत्रियों के लिए या अधिकारियों के लिए भी अलग से बार है। हिन्दुस्तान में कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकते कि संसद भवन के अपने कमरे में भी कोई शराब पी ले, और वह बात उजागर हो जाए।
हिन्दुस्तान की राजनीति और सार्वजनिक जीवन में शराब ही अकेला पाखंड नहीं है, और भी बहुत सी चीजें यहां लोगों को बदचलन या बुरा साबित करने के लिए इस्तेमाल होती हैं। नेहरू के जो विरोधी राष्ट्रवादी होने के लिए मेहनत करते रहते हैं, उन्हें नेहरू की सिगरेट पीते हुए दो-तीन तस्वीरें इतनी पसंद हैं कि अपने माता-पिता की फोटो भी उन्हें उतनी पसंद नहीं होगी।
वे सोते-जागते नेहरू की सिगरेट पीती तस्वीर को पोस्ट करके उन्हें बदचलन साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं। और नेहरू थे कि एक से अधिक मौकों पर उन्होंने बंद कमरे के बाहर भी सिगरेट पी थी और उनको आसपास कैमरे होने का भी अहसास था।
लेकिन राजनीति के साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी आम लोगों की खास लोगों से कई उम्मीदें बंध जाती हैं। चाल-चलन को लेकर आम लोग यह उम्मीद करते हैं कि उनके नेता का चाल-चलन ठीक रहे, फिर चाहे आम से लेकर खास तक तमाम लोगों का चाल-चलन हकीकत में बिगड़ा हुआ ही क्यों न रहे।
यह बात महज हिन्दुस्तान में नहीं है, ब्रिटेन से लेकर अमरीका तक बहुत से ऐसे देश हैं जहां पर नेताओं को अपने विवाहेतर संबंधों को लेकर पद छोडऩा पड़ा हो, सार्वजनिक रूप से अफसोस जाहिर करना पड़ा हो, या अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की तरह संसद में महाभियोग का सामना करना पड़ा हो।
जिन पश्चिमी देशों को हिन्दुस्तानी लोग सेक्स-संबंधों के मामलों में बड़ा उदार और खुला हुआ मानते हैं, वहां पर एक-एक सेक्स-संबंध को लेकर लोगों को कुर्सियां छोडऩी पड़ जाती हैं, अगर उनका नाम डोनल्ड ट्रंप न हो। जहां तक ट्रंप का सवाल है, तो वे सार्वजनिक जीवन के किसी भी पैमाने से ऊपर हैं, और हर पैमाने के लिए उनके मन में भारी हिकारत है।
छत्तीसगढ़ में शराब को लेकर शुरू हुई बहस शराब के बहुत से दूसरे पहलुओं तक जा सकती थी, जहां तक जानी चाहिए थी, लेकिन पूरी बहस महज इस मुद्दे पर पटरी से उतर गई कि धरमलाल कौशिक शराब पीते हैं या नहीं। क्या कांग्रेस और भाजपा के लोग अपनी पार्टी के बारे में ऐसा दावा कर सकते हैं कि उनकी पार्टी के नेताओं में शराबी कम हैं?
लोगों ने छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस के एक मंत्री के पैर विधानसभा के भीतर लंच के बाद लडख़ड़ाते हुए देखे हैं, हालांकि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए यह बात विधायकों में अब मजाक के रूप में भी ठंडी पड़ गई है। प्रदेश के आबकारी मंत्री, और आज के कांग्रेस के एक बड़े आदिवासी नेता कवासी लखमा खुलकर इस बात को मंजूर करते हैं कि वे शराब पीते हैं, और यह आदिवासी संस्कृति का एक हिस्सा है।
लेकिन बारीकी से समझें तो यह बात साफ है कि वे आदिवासी के रूप में इस बात को कहते हैं जिनकी जिंदगी में छुपाने को कुछ नहीं होता, और जिनके पास दारू पीने के लिए बंद कमरा भी नहीं होता। कवासी लखमा एक कांग्रेस नेता के रूप में इस बात को ठीक उसी तरह छुपा लेते जिस तरह भाजपा के तमाम लोग अपने इतिहास के एक सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में छुपा लेते हैं। हालांकि उनके करीबी लोगों का यह मानना है कि उन्होंने खुद कभी इस बात को नहीं छुपाया, यह एक अलग बात है कि इस बात को शब्दों में मंजूर भी नहीं किया।
हमारा ख्याल है कि सार्वजनिक जीवन में जो लोग हैं अगर वे शराब पीना चाहते हैं तो उन्हें नशे में धुत्त हुए बिना शराब का आनंद लेना आना चाहिए। और इसके साथ-साथ उनमें इतना नैतिक मनोबल भी होना चाहिए कि वे इस बात को मंजूर कर सकें। यह वैसे तो लोगों की निजी जिंदगी की बात है, लेकिन इसे सार्वजनिक मुद्दा बना ही दिया गया है, तो पाखंडी होने के बजाय हौसलेमंद होना बेहतर है। हमारा ख्याल है कि हिन्दुस्तान में जिस प्रदेशों में शराबबंदी नहीं हैं, वहां लोग अपने नेता को हौसलेमंद देखना चाहेंगे, बजाय पाखंडी देखने के।